कोविड दि क्रिमिनल

अभिषेक आदित्य:

मैंबचपन में रेलगाड़ी से दिल्ली से देहरादून जाया करता था। कई बार उन दिनों मन में ये खयाल आता था, कि अगर हम इस रेल की पटरी पर चलने लगे, तो शायद, हम भी कुछ दिनों में पैदल दिल्ली से देहरादून पहुंच जाएंगे। हम से तो यह हो न सका, मगर सरकार ने ‘आत्मनिर्भरता’ जैसा भारी भरकम  शब्द को कुछ प्रवासी मजदूरों के जीवन में अंकित कर दिया। लोग आज अपने-अपने घर पैदल ही चल पड़े हैं। आप इसे पलायन कहें या आत्मनिर्भरता? यह आपकी मर्जी।

पैदल चलते-चलते जब मजदूरों के चप्पल टूट गए, तब उन्होंने पानी के बोतल को अपने पैरों में रस्सी से बांध कर ‘मेक इन इंडिया’ का उत्कृष्ट नमूना पेश कर दिया। भारत अपनी इस जुगाड़ तकनीक के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस दृश्य को देख कर लोगों का मन पसीज गया होगा। सरकार राहत पैकेज के बदले अगर 20 लाख करोड़ राशि की सौगात तत्काल लोगों को मुहैया करवा देती, तो शायद प्रवासी मजदूर पैदल न जाकर रोलर स्केटिंग करते हुए पिज्जा-बर्गर खाते और अपने बच्चों को खिलाते अपने घर पहुंच जाते। आखिर, 13 शून्य कम तो नहीं होते हैं न?

डूबते को तिनके का सहारा सुना तो था हमने.. मगर, डूबते को दारू का सहारा होते साक्षात हमने देखा। कई वायरल वीडियो आपने भी देखें होंगे। जरूरत से ज्यादा पीकर कैसे देश के विकास में सहयोग का उम्दा प्रवचन ये दारू प्रेमी कर रहे थे। एक बार शायर सम्राट जफर, मिर्जा गालिब से खुश होकर सोने की एक सौ अशर्फियों का इनाम दिया। गालिब साहब सीधे चांदनी चौक की शराब की दूकान पर गए और पूरे एक सौ अशर्फियों की जितनी शराब आ सकती थी, छकड़ों पर लादकर ले आये। उनकी बेगम ने पूछा कि छकड़ों में भरकर शराब तो ले आये। लेकिन, घर में खाने के लिए एक दाना तक नहीं है। मिर्जा साहब ने कहा कि इस्लाम में सबको खाना तो अल्ला-ताला ही देगा, लेकिन, शराब का इंतजाम अल्ला-ताला करेगा इसका तो कोई जिक्र नहीं है इसीलिए शराब ले आया। बेगम ने अपना माथा ठोंक लिया। बादशाह जफर को जब मिर्जा के कारनामे का पता चला तब उन्होंने कुछ बोरियां अनाज भिजवाई। गालिब ने बेगम से कहा कि देखो अल्ला ने खाना भेज दिया।

कृषि उत्पादन की अगर बात की जाए, तो प्याज आज भी राजनीति के लिए घातक है। महामारी के इस काल में, रेड जोन, ऑरेंज जोन, ग्रीन जोन मानों ऐसे हैं, जैसे कि, हर दिन होली का त्योहार हो। अगर पिंक जोन का निर्माण भी कर दिया जाता, तो महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में चार चांद लग जाते।

अब एक नजर उन लोगों पर भी जो लोग गृहस्थी के जंजाल में फंसे पड़े हैं। 60 दिन से अधिक के लॉकडॉउन की अवधि में, जिन विवाहित जोड़ों में लड़ाई ना हुई हो। सरकार ऐसे पुरुषों को परमवीर चक्र से सम्मानित करे एवं महिलाओं को शांति पुरस्कार से सम्मानित करेंक आखिर ‘सबका साथ, सबका विकास’ को साकार बनाने में विवाहित लोगों का योगदान सराहनीय है! वहीं प्रकृति इस लॉकडाउन के जरिए, अपना सेहत दुरुस्त करने में संलग्न है। कहीं उन्होंने ओजोन लेयर को ठीक किया, तो कहीं डॉल्फिन के दर्शन भी हुए। इसी बीच काले हिरण को मुंबई के बांद्रा नामक इलाके में भी देखा गया। एक जगह हाईवे पर गाड़ी की जगह चीता दौड़ता नजर आया। नोएडा में नील गायें शहर का सैर कर रही हैं क

महामारी के इस काल में, जब विश्व की अर्थव्यवस्था कि नब्ज कुछ रुक सी गई है; वहीं कुछ पत्रकार समाज की वर्ण व्यवस्था का उदहारण दे कर ज्ञान बांट रहे हैं कि एक ओर विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों को सरकार हवाई जहाज से भारत वापस ला रही है, वहीं प्रवासी मजदूरों के आवागमन के लिए सरकार बस तक का इंतजाम नहीं कर रही है। गौर करने वाली बात तो यह भी है, कि, ये वही पत्रकार हैं, जो कि महामारी खत्म होने के बाद सरकार से सवाल-जवाब करेंगे कि रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले और ज्यादा क्यों घट गई ? ‘कुछ तो लोग कहेंगे, वरना जीवित कैसे रहेंगे’ – इस वाक्य को सार्थक करते हुए विदेशी मूल के मीडिया हाउस में कार्यरत कुछ भारतीय पत्रकार भी शामिल हैं। ये पत्रकार कम सरकार के प्रति सास की तरह के बर्ताव वाली मानसिकता रखते हैं। अगर सरकार बस की व्यवस्था कर भी दे, तब भी ये लोग ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ की आड़ में सरकार को कोसना बंद नहीं करेंगे।

सरकार की रचनात्मकता को भी सराहने की आवश्यकता है, 22 मार्च को थाली बजवा कर ‘साउंड चेक’ भी हुआ, फिर 5 अप्रैल को मोमबत्तियों के संग ‘लाईट चेक’ भी करवाया गया। इंतजार तो अब ‘अंताक्षरी’ खेलने की है। भाई… मानना ही पड़ेगा ‘भारत के मुखिया’ सेलिब्रिटीज के दिलों में ही नहीं, बल्कि ‘डिस्क जॉकी’ के दिलों में भी धड़कते हैं! जब ये महामारी का आलम समाप्त हो जाएगा, और विश्व आर्थिक मंदी से जूझ रही होगी, तब शहजादे को आलू से सोना बनाने की विधि संसार को बतानी ही पड़ेगी ताकि मानव कल्याण के लिए उनकी इस पहल को यह कदम दुनियां युगों-युगों तक याद रखे। शायद विद्यार्थियों के पुस्तकों में भी एक अध्याय उनके रचनात्मक छवि पर जोड़ी जा सके।

एक दो बॉलीवुड नगरी के अभिनेता भी इसी इंतजार में हैं, कि कब ये महामारी खत्म हो, और हम ‘कोविड – दी क्रिमिनल’ जैसी चलचित्र में सूत्रधार का किरदार निभाते नजर आयें और लोगों का मनोरंजन करें।

 

 

 

साभार युगवार्ता

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