कोरोना से डर लहीं लगता साहेब, लॉक डाउन से लगता है…!
(देव कुण्डल):
गुरमीत के तीन रेस्टोरेंट पिछले लॉक डाउन में बंद हो गए। कर्ज अलग हो गया। जैसे-तैसे तीन महीने पहले कर्ज लेकर एक छोटा रेस्टोरेंट शुरू किया। अब वह भी बंद हो गया। शहर में टॉकिजों की संख्या पहले ही दहाई से घटकर इकाई में आ गई था। लॉक डाउन के चलते अब वे भी बंद होने की कगार पर हैं। कमोवेश ऐसे ही हालात टेंट, मैरिज गार्डन, कपड़ा, कंस्ट्रक्शन, स्टेशनरी, बर्तन, होटेल, टिफिन सेंटर, लांड्री से लेकर ठेले-खोमचे और सिलाई-बुनाई तक सैकड़ों काम-धंधों से जुड़े लाखों व्यावसायियों एवं उनके करोड़ों कर्मचारियों के हैं। चार महीने देशव्यापी लॉक डाउन के बाद भी कोरोना खत्म नहीं हुआ। सालभर बाद भी महामारी अपने चरम पर है। यदि लॉक डाउन से कोरोना खत्म होना होता तो हो चुका होता। हां, लॉक डाउन कुछ खत्म हुआ तो वह है लोगों के काम-धंधे और रोजगार। शुरूआत में जरूर लोग कोरोना से बेहद भयभीत थे लेकिन अब वे इससे डरते नहीं है। शायद पेट की आग ने कोरोना के भय को कमतर कर दिया है। बीमारी से अधिक संताप लोगों को रोजगार खोने का सता रहा है। शहर से लेकर देश में एक बार फिर लॉक डाउन का सिलसिला शुरू हो चुका है। इसके भयावह नतीजे भी दिखने लगे हैं। महाराष्ट्र से रोज हजारों वाहन प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं। यही हाल रहा तो रोजगार और पढ़ाई कर भविष्य बनाने इंदौर पहुंचे युवाओं का दोबारा पलायन शुरू हो जाएगा। लॉक डाउन से खौफजदा आम आदमी आज यही कह रहा है कि कोरोना से डर नहीं लगता, लॉक डाउन से लगता है साहेब। सवाल यह भी उठ रहा है कि लॉक डाउन से कोरोना घटेगा या बढ़ेगा? यदि दुकानें केवल सुबह 9 बजे तक ही खुली रहेंगी तो भीड़ उमड़ेगी। सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ेंगी। इससे तो कोरोना विस्फोट हो सकता है। इतनी छोटी सी बात पांचवीं कक्षा का बच्चा भी समझता है। आपने भी यह सवाल हल किया होगा कि एक दीवार को 10 मजदूर मिलकर एक दिन में बना देते हैं तो उसी दीवार को दो मजदूर कितने दिन में बनाएंगे? मतलब साफ है यदि कोरोना रोकना है तो लॉक डाउन की बजाय 24 घंटे बाजार खुले रखने की रणनीति पर काम करना चाहिए। इससे बाजारों में भीड़ कम होगी और लोग अपनी सुविधा अनुसार फ्री समय में सामान खरीद सकेंगे। इससे न लॉक डाउन का भय इंसान को भीतर से खाएगा और न कोई बेरोजगार होगा। सरकारी नौकरी वालों को तो पहली तारीख को वेतन मिल जाता है लेकिन लॉक डाउन से जो कारोबार खत्म होंगे औप उनसे जुड़े कर्मचारी बेरोजगार होंगे उनके लिए क्यों नहीं सोचा जाता? शराब दुकान बंद रखने पर सरकार शराब कारोबारियों को हर्जाना भरती है तो बाकियों पर जुर्माना क्यों लगाती है? व्यापारियों के साथ यह भेदभाव क्यों? जबकि अन्य दुकानदारों को भी सारे टैक्स और कर्ज की किश्तें चुकाना ही हैं। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि शासन-प्रशासन ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए लॉक डाउन का सहारा लिया है। लॉक डाउन लग जाएगा तो न कोई सड़क पर उतर पाएगा न कोई आंदोलन कर पाएगा। पीड़ितों की आवाज को दबा दिया जाएगा। आज कई लोगों ने भीगी आंखों से अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि भले ही चंद जिम्मेदार लोग लॉक डाउन की रस्सी से उनका गला घोंट दें लेकिन उन्हें उनकी हाय जरूर लगेगी। बिना कोई राहत दिए कारोबार बंद रखने के फरमान से जिन परिवारों में आर्थिक संकट गहराएगा वहां से बुरी खबरें भी निकलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। चार लोग पूरे शहर का फैसला करें यह आम जनता से लेकर सामाजिक संगठनों और व्यापारियों को हजम नहीं हो रहा है।