कोरोना होने के बाद हमें कितने दिनों तक दोबारा इंफेक्शन नहीं होगा? मुझे कोरोना की दोनों डोज लग चुकी हैं, अब मैं कितने दिनों के लिए कोरोना से सुरक्षित हूं?
कोरोना से जुड़े इन दोनों सवालों के जवाब अमेरिका में तलाश लिए गए हैं। पिछले दिनों साइंस जर्नल नेचर में पब्लिश हुई दो स्टडीज के मुताबिक कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी कम से कम एक साल से लेकर ज्यादातर मामलों में उम्र भर बनी रहती है। ये इम्यूनिटी वैक्सीनेशन के बाद और सुधर जाती है।
कोरोना से उबरे लोगों को वैक्सीन के बूस्टर डोज की जरूरत नहीं
दोनों स्टडीज में साफतौर पर यह पता चलता है कि कोरोना से उबर चुके ज्यादातर लोग, जिन्होंने बाद में वैक्सीन लगवाई, उन्हें बूस्टर डोज की जरूरत नहीं होगी। हालांकि ऐसे लोगों को बूस्टर या दूसरी डोज की जरूरत होगी, जो संक्रमित नहीं हुए या जिनमें संक्रमित होने के बावजूद मजबूत इम्यूनिटी विकसित नहीं हुई। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम होती है।
दोनों ही रिपोर्ट्स ने ऐसे लोगों को स्टडी किया जिन्हें एक साल पहले कोरोना हुआ था।
वायरस को याद रखने वाली कोशिकाएं जरूरत पड़ने पर बनाती हैं एंडीबॉडीज
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के जैक्सन एस टर्नर, एलिजावेता कालाइदिना, चार्ल्स डब्ल्यू गॉस आदि की पहली रिपोर्ट के मुताबिक वायरस को याद रखने वाली कोशिकाएं बोन मैरो यानी हडि्डयों के भीतर स्पंज जैसे टिशू में बनी रहती हैं और जरूरत पड़ने पर एंडीबॉडीज बनाना शुरू कर देती हैं।
बायोलॉजी रिसर्च वेबसाइट BioRxiv पर ऑनलाइन पोस्ट की गई दूसरी रिसर्च के अनुसार B सेल्स नाम की ये कोशिकाएं इन्फेक्शन होने के कम से कम 12 महीनों तक परिपक्व और मजबूत होती रहती हैं।
कोरोना के इंफेक्शन या वैक्सीनेशन से बनी इम्यूनिटी लंबे समय तक रहती है
यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया में इम्यूनोलॉजिस्ट स्कॉट हेन्सले का कहना है कि यह दोनों रिसर्च पेपर लगातार सामने आ रहीं उन रिसर्च से मेल खाते हैं जो यह बताते हैं कि कोरोना के इंफेक्शन या वैक्सीनेशन से पैदा होने वाली इम्यूनिटी लंबे समय तक बनी रहती है।
बूस्टर डोज के बिना ही वायरस के वैरिएंट्स को नाकाम कर देते हैं B cells
न्यूयॉर्क की रॉकफेलर यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट मिशेल नसनवेग कहती हैं कोरोना इंफेक्शन के चलते पैदा होकर वैक्सीनेशन से और मजबूत होने वाले B सेल इतने ताकतवर होते हैं कि ये बूस्टर डोज के बिना ही वायरस के वैरिएंट्स को भी नाकाम कर सकते हैं।
रॉकफेलर कोशिकाओं के मेमोरी मेचुरेशन यानी स्मृति परिपक्वता पर रिसर्च कर चुके हैं।
डॉ. नसनवेग का कहना है कि जिन लोगों को कोरोना हुआ और उन्हें वैक्सीन भी लगी, उनमें जबरदस्त एंटीबॉडीज थे, क्योंकि उनके एंटीबॉडीज भी लगातार विकसित होते रहते हैं। उम्मीद है यह एंटीबॉडीज लंबे समय तक कायम रहेंगे।
जिन्हें कोरोना नहीं हुआ, उन्हें वैक्सीन के बाद बूस्टर डोज की जरूरत
डॉ. नसनवेग का यह भी कहना कि ऐसे नतीजे केवल वैक्सीन लगवाने वालों में नजर नहीं आएंगे, क्योंकि इम्यून मेमोरी प्राकृतिक रूप से होने वाले इंफेक्शन के मुकाबले वैक्सीन से पैदा होने वाली इम्यूनिटी के मामले में अलग-अलग काम करती है। मतलब यह कि अगर किसी को कोरोना नहीं हुआ है और उसने वैक्सीन लगवाई तो उसे बूस्टर डोज की जरूरत होगी।
नए कोरोनावायरस के लिए स्पेसिफिक B cells को देखने के लिए, सेंट लुइस में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के अली एलेबेडी के नेतृत्व में रिसर्चर्स ने तीन महीने के अंतराल पर एक महीने पहले कोरोना से संक्रमित हो चुके 77 लोगों का ब्लड एनालाइज किया।
इन 77 में केवल 6 लोगों को ही कोरोना के गंभीर संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती किया गया था, बाकि सभी को कोरोना के माइल्ड सिंप्टम्स थे। इन व्यक्तियों में एंटीबॉडी का स्तर संक्रमण के चार महीने बाद तक तेजी से गिरा और बाद के महीनों तक धीरे-धीरे कम होता रहा।
एंटीबॉडी घटना कमजोर इम्यूनिटी
कुछ वैज्ञानिकों ने एंटीबॉडी के इस तरह घटने को कमजोर इम्यूनिटी बताया है। वहीं कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा अपेक्षित है। यदि ब्लड में एंटीबॉडीज ज्यादा होती हैं तो यह जल्दी ही एक मोटी स्लज में बदल जाती है।
डॉ. एलेबेडी कहते हैं कि कोरोना वैक्सीन हर किसी को लगवानी चाहिए, फिर भले ही आप कोरोना से संक्रमित क्यों न हो चुके हों। संक्रमित होने का यह मतलब नहीं कि आपके पास सुपर इम्यून सिस्टम है।
डॉ. एलेबेडी की स्टडी में भाग लेने वालों में से पांच लोग ने संक्रमित होने के सात या आठ महीने बाद बोन मैरो डोनेट किया। जिसमें उन्होंने पाया कि B cells तब तक भी उनके बोन मैरो में स्थिर थे
उम्रभर बनी रह सकती हैं एंटीबॉडी
2007 में हुई एक ऐतिहासिक स्टडी से पता चला कि एंटीबॉडी दशकों तक जीवित रह सकती हैं, शायद औसत जीवन काल से भी ज्यादा। यह इस बात का संकेत है कि मेमोरी B cells लंबे समय तक रहती हैं।
डॉ. नसनवेग की टीम ने इसे करीब से देखा कि समय के साथ B cells कैसे परिपक्व होती हैं। रिसर्चर्स ने 63 लोगों के ब्लड को एनालाइज किया, जो लगभग एक साल पहले कोविड-19 से ठीक हुए थे। ज्यादातर लोगों को माइल्ड सिंप्टम्स थे और 26 को मॉडर्ना या फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की कम से कम एक डोज लग चुकी थी।
न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी 6 से 12 महीनों के बीच भी नहीं बदलती
डॉ. नसनवेग की टीम ने पाया कि दोबारा संक्रमण को रोकने के लिए जरूरी न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी 6 से 12 महीनों के बीच भी नहीं बदलती। जबकि संबंधित लेकिन कम महत्वपूर्ण एंटीबॉडी धीरे-धीरे गायब हो गईं।
डॉ. नसनवेग की स्टडी के रिजल्ट ये कहते हैं कि जो लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और उन्हें वैक्सीन भी लग चुकी है, उनमें वैक्सीन बूस्टर के बिना ही वायरस के खतरनाक वैरिएंट से लड़ने की क्षमता लंबे समय तक रहती है।saabhaar dainik bhaskar