अरविंद कुमार राय:
कोरोना महामारी व लॉकडाउन ने किस-किस तबके को तबाह किया, इसका आकलन लंबे समय तक होता रहेगा। देश में एक ऐसा भी तबका है, जिसकी गिनती किसी सरकारी आंकड़े में नहीं होती। उसको कोई जानता भी नहीं है। यह वह तबका है जो दैनिक व साप्ताहिक हाट बाजारों में सामान बेचता है। इन बाजारों के दुकानदार और खरीददार, दोनों के जीवन पर यह सीधा असर डालता है। कोरोना काल के लॉकडाउन में यह तथ्य साफ-साफ उभरकर सामने आया है।
भारत विविधताओं वाला देश है। यहां भाषा, रहन-सहन, पहनावा, बोलियों में काफी भिन्नता के बावजूद समानता है। आज देश का शहरी इलाका तेजी से विकास की सीढ़ियां चढ़ रहा है। शहरों के आसपास के ग्रामीण इलाकों की तस्वीर भी काफी तेजी से बदली है। लेकिन, दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों की हालत कितनी खस्ताहाल है, इसका अंदाजा लगाना कठिन है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ऐसे लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
देश के पिछड़े इलाकों में दैनिक व साप्ताहिक बाजारों में ग्रामीण आबादी सामान खरीदने के लिए पहुंचते हैं। ऐसे बाजारों पर एक बड़ी आबादी का जीवन निर्भर है। बाजारों में सामान बेचने वाले अपनी साइकिल, छोटे वाहनों के साथ-साथ सिर पर सामान लेकर प्रतिदिन बाजार व साप्ताहिक हाट बाजारों में दुकान लगाते हैं। जहां ग्रामीण खरीददार अपनी जरूरत की सामग्री खरीदने के लिए पहुंचते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाला यह ऐसा तबका है, जिसकी हिम्मत बड़े-बड़े शहरों में पहुंचकर सामान खरीदने की नहीं होती है। प्रतिदिन लगने वाले बाजार या साप्ताहिक हाट बाजारों में दुकान लगाने वाले तथा खरीददार दोनों इस व्यवस्था से खुश हैं। दोनों का इस बाजार से भला हो जाता है। लेकिन, कोरोना काल में इस तबके पर सबसे बड़ी मार पड़ी है। अनलॉक-1 में शहरों की दुकानें तो खुल गई लेकिन भीड़ के डर से प्रशासन साप्ताहिक बाजार व दैनिक हाट बाजारों को खोलने की इजाजत नहीं दे रहा है।
असम के चाय बागान इलाकों में आज भी दैनिक व साप्ताहिक बाजारों पर बड़ी आबादी का जीवन निर्भर है। चाय बागानों में काम करने वाले लोग छह दिनों तक काम करते हैं, सातवें दिन साप्ताहिक हाट-बाजारों में अपनी जरूरत की सामग्री की खरीददारी करते हैं। लेकिन, इन बाजारों के न लगने से दुकानदार व खरीददार दोनों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इन बाजारों में दुकान लगाने वालों के पास रोजी-रोटी का और कोई जरिया नहीं है। इसलिए ये दुकानदार इन दिनों काफी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। लॉकडॉउन के दौरान ऐसे परिवारों की पूरी तरह से कमर टूट गयी है। सरकार के निर्देश के बाद लगभग सभी दुकानें खुल गई हैं। लेकिन, दैनिक व साप्ताहिक हाट बाजार नहीं खुलने की वजह से दैनिक बाजार में दुकान लगाकर अपनी जीविका चलाने वाले लोगों का हाल काफी बुरा है। लगभग 4 महीने से व्यापार बंद होने की वजह से अब बाजार में दुकान लगाने वाले लोगों की हालत बद से बदतर होती जा रही है।
इन दुकानदारों के सामने रोजी-रोटी की किल्लत हो गई है। सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे तो जरूर किए जा रहे हैं लेकिन दैनिक बाजारों में दुकान लगाने वालों का एक ऐसा तबका है जिनको चाहकर भी सरकारी मदद संभवतः मिलना मुश्किल है। कारण उनका कोई स्थायी ठौर-ठिकाना नहीं है। उनकी कोई स्थायी पहचान नहीं है। जिसकी वजह से उनको सरकारी मदद मिलना नामुमकिन दिखाई दे रहा है। ऐसे लोग मायूस होकर अपने घरों में बैठे हैं। उन्हें अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)