_*।। कुंभ 2025 ( प्रयागराज ) ।।*_
प्रयागराज का यह कुंभ अब धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहा है अतः पुनः इसका आध्यात्मिक आधिभौतिक और आधिदैविक रूप देख लिया जाये ।
पौराणिक कथा से कुंभ और अमृत का पुनः स्मरण कर लिया जाये ।
ऋषि दुर्वासा के गले में एक माला था और उन्होंने वह माला इंद्र के गले में डाल दी। इंद्र को लगा कि मैं सबसे ऐश्वर्यवान मैं किसी गंदे संदे कपड़ा पहने व्यक्ति की माला क्यों पहनूँ ?
उसने वह माला ऐरावत के गले में डाल दी और ऐरावत ने अपने सूँड़ से माला खींची और अपने पैरों तले रौंद दिया । और यह सब एक पलक झपकते हो गया ।
दुर्वासा जी को लगा कि ऐश्वर्य का यह अभिमान ? तो शाप दे दिया कि तुम्हारा ऐश्वर्य नष्ट हो जाये और अगले ही पल ऐरावत भी समुद्र में लीन हो गया ।
अब देवता घबराये । भागे भागे ब्रह्मा जी के पास पहुँचे । ब्रह्मा अर्थात् हमारा अंतःकरण ( मन बुद्धि चित्त अहंकार ) ।
और ब्रह्मा जी ने कहा कि इस समस्या का हल “ व्यापक दृष्टिकोण “ से ही हो सकता है । व्यापक दृष्टिकोण अर्थात् विष्णु ।
अब देखा जाये कि इंद्र भी तब तक नारायण की शरण में नहीं जाता है जब तक उसे चोंट न लगें जैसे हम सभी मनुष्य अपनी इंद्रिय सुख में लगे रहते हैं और जब चोंट लगती है तब भगवान याद आते हैं ।
श्री नारायण ने कहा कि विवेक की मथानी से कारणवारि का मंथन करना पड़ेगा ।
कारणवारि के मंथन से ही हम और आप सब उत्पन्न हुये हैं। सूक्ष्म रूप से वीर्य और रज का मंथन ही सभी जीव जंतुओं वनस्पतियों की उत्पत्ति का कारण है ।
विवेक का प्रतीक मंदराचल और सभी प्रकार की शक्तियों को ( सतो गुणी , रजो गुणी और तमों गुणी ) को इकट्ठा किया गया ।
विवेक ( मंदराचल ) समाधिस्थ न हो जाये ( डूब न जाये ) तो श्री भगवान ने कच्छप का सहारा दिया अन्यथा विवेक या डूब सकता था ( समाधिस्थ ) अथवा छोटी छोटी बातों में उछलने लगता ।
और यहां तक कि कपट तक का सहारा लिया गया । देवतागण, बलि के सम्मुख निशस्त्र होकर गये , सहायता मांगने और गठबंधन करने के लिये। ध्यान रहे कि देवता जब गठबंधन कर रहे थे तब भी उन्हें पता था कि अंततः इन दैत्यों को हम अमृत नहीं पीने देंगे ।
मित्रों, जीवन में अमृत प्राप्त करना है तो हमें एकोन्मुख होकर विवेक का मंथन करके हुये सनातन धर्म की रक्षा करनी है । और उस क्रम में बहुत से ऐसे अवसर आयेंगे जब हमें असुरों से भी सहायता कुछ देर के लिये लेनी पड़ेगी । हम उस अस्थायी गठबंधन से विचलित न हों । कभी भी ।