कानून की खामियां का फायदा उठाती चीनी कंपनियां

मेक इन इंडिया के तहत भारत सरकार का साफ मकसद है कि विदेशी कंपनियां यहाँ आये, व्यापार करें और यही अपना उत्पादन करें, निर्माण करें और सेवाऐं दें. देश में ही सारी व्यवस्था उपलब्ध होगी ताकि पैसे विदेश न जावें और देश में ही व्यापार और रोजगार बढ़े.

हाल में ही ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी ने इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी टेस्ला को भारत में उत्पादन युनिट स्थापित करने का न्यौता दिया. चुंकि टेस्ला का 20% मार्केट चीन में है और निर्माण युनिट वही बने होने से उसने भारत में युनिट स्थापित करने से मना कर दिया. ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी का फिलहाल देश में आना संभव नहीं है.

इसी तरह भारत में शाओमी इंडिया जो की एक मोबाइल कंपनी है, उसके करोड़ों ग्राहक है।

कंपनी पर हुई ईडी की कार्रवाई

रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार चीनी कंपनियों को स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रही है। सरकार चाहती है कि चीनी कंपनियां विदेश में स्थित अपने सहयोगियों से सेवाएं लेने की बजाए भारत में ही सभी सेवाएं ले, जिससे यहां का कारोबार समृद्ध हो सके। चीन के साथ सीमा पर तनाव के चलते भी सरकार विदेशों से आने वाले निवेश पर नियमों को सख्त कर रही है।

एमआई, रेडमी और पोको ब्रैंड नेम से भारत में मोबाइल फोन बेचने वाली कंपनी शाओमी इंडिया इन दिनों विवादों में है।

इस चीनी कंपनी का विवादों से नाता कोई नया नहीं है। अक्टूबर 2020 में शाओमी के वेदर ऐप से अरुणाचल प्रदेश गायब हो गया था। उस समय सोशल मीडिया पर बॉयकॉट शाओमी ट्रेंड होने लगा था।

गलवान हिंसा के बाद भी बायकॉट शाओमी ट्रेंड हुआ था। इसके बाद शाओमी पर टैक्स चोरी के आरोप लगे।

इसी साल जनवरी में शाओमी पर 653 करोड़ रुपये की आयात शुल्क चोरी का आरोप लगा।

इसके बाद ईडी (ED) ने फरवरी में अवैध रमिटेंसेज से जुड़ी जांच शुरू की।

आरोप लगा कि कंपनी रॉयल्टी के आड़ में भारत से पैसा चीन भेज रही थी। यह पैसा उन कंपनियों को भेजा जा रहा था, जिनसे शाओमी ने कोई सेवा ही नहीं ली थी।

शाओमी इंडिया चीनी बेस्ड शाओमी ग्रुप की सब्सिडियरी कंपनी है। यह साल 2014 में भारत आई थी। इसी साल कंपनी ने भारत में अपना पहला फोन MI-3 लॉन्च किया था।

कंपनी ने पहले ऑनलाइन मार्केट में और फिर ऑफलाइन मार्केट में अपना दबदबा बनाया। इस कंपनी ने भारत में कम कीमत में अधिक फीचर्स वाले फोन लॉन्च किए।

इससे भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और जो भारतीय मोबाइल कंपनियां थीं, उनका कारोबार धीरे-धीरे सिमटने लगा।

क्या है हालिया विवाद

प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने शाओमी इंडिया के 5,551.27 करोड़ रुपये जब्त किये हैं।

कंपनी पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है और विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून के तहत कार्रवाई हुई है।

ईडी के अनुसार शाओमी इंडिया चीन में अपनी मूल कंपनी को साल 2015 से ही पैसे भेज रही थी।

शाओमी ने अपनी मूल कंपनी सहित दो अमेरिका की कंपनियों को 5,551.27 करोड़ रुपये भेजे।

ये पैसे रॉयल्टी के नाम पर भेजे गए। जबकि शाओमी इंडिया ने इन कंपनियों से कोई सेवाएं नहीं ली थीं।

अंतत: इन तीनों कंपनियों को भेजे गए पैसे का फायदा शाओमी ग्रुप को ही हुआ है।

ईडी की कार्रवाई के बाद शाओमी इंडिया ने कहा, ‘भारत के लिए प्रतिबद्ध ब्रैंड होने के नाते हमारे सभी काम भारतीय नियम और कानूनों के दृढ़ पालन के तहत होते हैं।

हमने सरकारी अधिकारियों के आदेश का ध्यान से अध्ययन किया है। हमें भरोसा है कि हमारी रॉयल्टी पेमेंट और स्टेटमेंट पूरी तरह से सही और वैध हैं।

शाओमी की तरफ से रॉयल्टी का भुगतान इन-लाइसेंस्ड टेक्नोलॉजी और आईपी के लिए किया गया, जिनका इस्तेमाल हमारी भारतीय वर्जन के प्रोडक्ट्स में हुआ।

रॉयल्टी का भुगतान करना शाओमी इंडिया की वैध कमर्शियल व्यवस्था है।

हालांकि, हम सरकारी अथॉरिटीज के साथ प्रतिबद्धता से काम कर रहे हैं, ताकि किसी भी तरह के कनफ्यूजन को दूर किया जा सके।

साफ है सालों से कई मौकों पर सरकारी कार्यवाही के बाद भी आज तक इन चीनी कंपनियों पर किसी भी तरह का आरोप हम सिद्ध नहीं कर पाए और कानूनी दांवपेंच के सहारे ये कंपनियां न केवल भारत में अपने उत्पादों में बादशाह बनी हुई है बल्कि धड़ल्ले से सारा पैसा अपनी चीन स्थित मुख्य कंपनी को ट्रांसफर भी कर रही है.

ऐसा लगातार होना सिर्फ दो कारण से ही संभव है- पहला कानून में व्याप्त खामियां जिसे दूर करने की कोशिश क्यों नहीं हो रही है जबकि बार बार ये कंपनियां फेमा उल्लंघन और मनी लॉन्ड्रिंग में आरोपित हो रही है और दूसरा कारण हमारी व्यवस्था का इन कंपनियों से मिलिभगत होना जिस कारण से आरोप लगते हैं, कार्यवाही होती है लेकिन कुछ साबित नहीं होता और मामला रफा दफा हो जाता है. ये कंपनियां देशी कंपनियों को नुकसान पहुंचाकर हमारे देश में एकाधिकार जमाए हुए हैं.

लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल

Shares