कांग्रेस का धर्म संकट

प्रकाश भटनागर:

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को बड़ी दुविधा में ला दिया है। राम शिला पूजन के राज्यव्यापी आयोजन की बात प्रमुख विपक्ष के लिए चुनौती बन सकती है। भाजपा ने जो कार्यक्रम तय किया है, उसके हिसाब से प्रदेश के गांव-गांव में पूजी जाने के बाद ये शिलाएं अयोध्या रवाना की जाएंगी। जाहिर है कि अयोध्या का रास्ता राज्य के उन 27 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगा, जहां जल्दी ही उपचुनाव होने हैं। शिवराज सरकार में मंत्री गोविंद राजपूत के विधानसभा क्षेत्र सुरखी से यह सिलसिला शुरू हो गया है। यह कांग्रेस के लिए उलझन की स्थिति है

उसने बीते दिनों राज्य में जो धार्मिक रूप प्रदर्शित किया है, उसके चलते वह भाजपा के इस आयोजन की निंदा नहीं कर सकती। खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने राम मंदिर के लिए पार्टी की तरफ से चांदी की ग्यारह ईंटें अयोध्या भेजने की घोषणा कर चुके हैं। इसलिए रामशिला वाले कार्यक्रम के विशुद्ध राजनीतिक स्वरुप में कोई संदेह न होने के बावजूद नाथ की पार्टी इसका विरोध नहीं कर सकती है। उलटे, यह भी हो सकता है कि भाजपा के इस दांव की काट तलाशने के लिए पार्टी को इसी तरह का कोई कदम उठाना पड़ जाए।

लेकिन शशि थरूर जैसे नेताओं द्वारा कांग्रेस को ‘वही अल्पसंख्यकों वाली पार्टी’ बताए जाने के बाद इस कांग्रेस की मुश्किल होगी कि वह यह सब किस तरह करे। थरूर ने यह बात उस समय कही थी, जब कमलनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का समर्थन किया। वे भगवा चोला ओढ़कर ऐसा कहते दिखाए गए। उनकी सरकार में मंत्री रहे पीसी शर्मा ने वीडियो जारी कर बताया कि वे अस्पताल में बैठकर भी हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे थे। पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई का यही बदला स्वरुप थरूर को चुभ गया था।

 

तो अब यदि कांग्रेस राम शिला जैसा कोई कदम उठाती है तो हिंदुत्व को लेकर इस दल के नेताओं का मतभेद एक बार फिर सतह पर आ जाने की संभावना है। थरूर जैसे धाकड़ नेता को विचार प्रकट से रोक पाना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। कुल जमा स्थिति यह कि प्रदेश में प्रतिष्ठापूर्ण उपचुनावों में भी धर्म का तड़का लग गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का हाथ थामकर कांग्रेस से भाजपा में आए गोविंद सिंह राजपूत के विधानसभा क्षेत्र सुरखी से राम शिला पूजन के आयोजन की शुरूआत हो गई। खरामा-खरामा यह कार्यक्रम अन्य जगहों पर भी होगा।

 

देहाती इलाकों में आज भी धर्म के नाम पर राजनीतिक कर्मकांडों की सफलता असंदिग्ध रहती है। फिर राज्य में जहां उपचुनाव होने हैं, वहां बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी निवास करती है। जाहिर है कि कांग्रेस को भी इस दिशा में ‘काउंटर’ करने वाले कदम उठाने ही होंगे। तो क्या हम चांदी की ग्यारह ईंटों के प्रदेशव्यापी पूजन का भी आयोजन देखने को तैयार रहें? राज्य में मुख्य विपक्षी दल चाहे जो भी करे, यह तय है कि भाजपा की हिन्दू वाली छवि से आगे निकलने के लिए उसे जी-तोड़ मेहनत करना होगी। उसे पसीना तो इस बात के लिए भी बहाना होगा कि दिग्विजय सिंह की हिन्दू-विरोधी छवि की वह काट निकाल सके। साहित्यकार शम्भुनाथ सिंह ने लिखा था, ‘समय की शिला पर मधुर चित्र कितने, किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए।’ राम शिलाओं पर भाजपा ने तो सियासी चित्र बना दिए हैं, अब देखना यह होगा कि कांग्रेस इन चित्रों को मिटाएगी या फिर अपने लिए नए चित्र बनाने का काम कर सकेगी। फिलहाल यह पार्टी धर्म को लेकर विचित्र संकट में घिरी हुई दिख रही है।

 

Shares