कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा का अभियान इतना खराब था कि विश्वास करना मुश्किल है। कन्नड़ समाचार वैबसाइट ईडिना ने 41000 से अधिक मतदाताओं का सर्वेक्षण किया और पाया कि उनमें से केवल 12 लोग ही बोम्मई सरकार की एक कल्याणकारी योजना का नाम बता सकते थे।
यह सबसे दिलचस्प सर्वेक्षण अकेले ही आपको बताता है कि क्यों भाजपा न केवल हार गई बल्कि बुरी तरह से हार गई। संयोग से ईडिना सर्वेक्षण कई दिनों पहले चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करने में सक्षम था।
कर्नाटक में भाजपा का खराब चुनावी अभियान आश्चर्यजनक था क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा आमतौर पर प्रचार और छवि बनाने में बहुत अच्छी है। बोम्मई सरकार द्वारा किसी भी अच्छी कल्याणकारी योजनाओं का अभाव या कम से कम उनका प्रचार, उन कई कारणों में से एक था जिनकी वजह से भाजपा के अभियान में एक सुसंगत पिच दिखाई नहीं दी। डबल इंजन सरकार के थके हुए पुराने घिसे-पिटे शब्दों को छोड़ कर, लोगों को यह बताने में असमर्थ थी कि उन्हें भाजपा को वोट क्यों देना चाहिए।
उनके लिए उपलब्धि के रूप में दिखाने के लिए बहुत कुछ नहीं था और न ही उनके पास भविष्य की योजनाओं के बारे में कोई ठोस वायदा था। अभियान का नारा था ‘भाजपा पर भरोसा’। भाजपा के जादुई सपनों को बेचने का क्या हुआ? चुनाव भविष्य के बारे में होता है। अगले 5 साल के लिए सरकार चुनने के बारे में चुनाव होता है। यह एक बैंक में फिक्स डिपॉजिट की तरह है। आप उस बैंक को चुनते हैं जो सर्वोत्तम ब्याज दर का वायदा करता है। लेकिन आपको यह विश्वास करने में भी सक्षम होना चाहिए कि बैंक इसे वितरित करेगा। बोम्मई सरकार का खराब प्रदर्शन उस भरोसे को जीतने में विफल रहा और इसके साथ ही चुनावी अभियान निवेश पर सर्वश्रेष्ठ रिटर्न का वायदा करने में विफल रहा।
कल्याणकारी योजना का अभाव :
एक मजबूत कल्याण केंद्रित आख्यान की कमी विशेष रूप से अजीब थी, यह देखते हुए कि मोदी सरकार केंद्र में कितना अच्छा कार्य कर रही है। उदाहरण के लिए 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी मुफ्त राशन का ठोस, मूर्त, सुसंगत कारक था, जिसके साथ स्विंग मतदाता भाजपा पर कल्याणकारी विश्वास करने का कारण ढूंढ सकते थे। महामारी के बाद की अर्थव्यवस्था में ‘के-आकार’ की रिकवरी ने अमीरों को और अमीर और गरीबों को और गरीब कर दिया है। छोटे वाहनों की बिक्री घटी, बड़ी कारों की ज्यादा हुई। 2023 का भारत नए सिरे से कल्याणकारी योजनाओं की मांग करता है। बोम्मई सरकार ने एक भी कल्याणकारी योजना बनाने से इंकार कर दिया। यहां तक कि चुनावी साल का अंतरिम बजट भी आज की आॢथक वास्तविकताओं के प्रति इतना उदासीन था कि ऐसा महसूस ही नहीं होता था कि यह चुनावी साल का बजट है।
आज गरीब बेरोजगारी और महंगाई की दोहरी समस्या से जूझ रहा है। एल.पी.जी. सिलैंडर की ऊंची कीमतों की शिकायतें पूरे भारत में सुनी जा रही हैं। भाजपा ने इन मुद्दों को हल करना जरूरी नहीं समझा। कांग्रेस ने विभिन्न जनसांख्यिकी के लिए नकद प्रोत्साहन का वायदा करके इस अवसर का फायदा उठाया, जिससे कांग्रेस का अभियान भाजपा की तुलना में अधिक सकारात्मक दिखाई दिया। नतीजों में यह बात सामने आई है कि कांग्रेस को शहर की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में, दक्षिण की तुलना में उत्तर और मध्य कर्नाटक में अधिक बढ़त मिली है। भाजपा ने सोचा कि भाजपा संगठन कल्याणकारी कमजोरियों को दूर करेगी और मोदीकारक एक लोकप्रिय स्थानीय चेहरे की कमी को पूरा करेगा।
नकारात्मक का मुकाबला नहीं करना :
उदाहरण के लिए भाजपा सरकार की नकारात्मक छवि को संबोधित करने के लिए उन्होंने इसे आवश्यक भी नहीं समझा। एक साल पहले की बात है जब ’40 प्रतिशत भ्रष्ट सरकार’ की कहानी एक ठेकेदार की आत्महत्या से शुरू हुई थी। चूंकि भाजपा ने भ्रष्टाचार के आख्यान को संबोधित करना महत्वपूर्ण नहीं समझा इसलिए चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने के कांग्रेस के प्रयास निर्विरोध हो गए।
वहीं, भाजपा का कहना है कि उनका वोट शेयर अपरिवर्तित है और कांग्रेस जनता दल (एस) की कीमत पर जीती है। यह सच नहीं है। इंडिया टुडे द्वारा पेश वोट शेयर का एक क्षेत्रवार विश्लेषण दिखाता है कि भाजपा ने कर्नाटक के 6 क्षेत्रों में से 4 में वोट शेयर खो दिया है जिसमें तटीय कर्नाटक का ङ्क्षहदुत्व वर्चस्व वाला क्षेत्र भी शामिल है। फिर भी राज्यव्यापी वोट शेयर अपरिवर्तित दिखता है क्योंकि भाजपा ने बेंगलुरू क्षेत्र के साथ-साथ जद (एस) प्रभुत्व वाले पुराने मैसूर क्षेत्र में भी अपना वोट शेयर बढ़ाया है। विडम्बना यह है कि पुराने मैसूर में भाजपा के आक्रामक आक्रमण ने केवल कांग्रेस की मदद की। यहां तक कि भाजपा का हिंदुत्व मुद्दा भी उलझा हुआ लग रहा था।
अंतत: भाजपा ने नेतृत्व के मुद्दे पर एक के बाद एक गलती की। न केवल उन्होंने एक सम्मानित लिंगायत नेता को हल्के वजन वाले नेता से बदल दिया बल्कि उन्होंने उनकी छवि बनाने और उन्हें एक लोकप्रिय नेता बनाने की जरूरत नहीं समझी। उन्होंने टिकट वितरण में महत्वपूर्ण लिंगायत नेताओं की करीब-करीब सर्जरी की जिससे उनका अपना मूल आधार अलग हो गया। कर्नाटक की हार भाजपा द्वारा हिमाचल प्रदेश में की गई गलतियों की पुनरावृत्ति थी। जब तक मोदी की रैलियां शुरू हुईं तब तक बहुत देर हो चुकी थी।-sabhar pk