यूक्रेन में फंसे भारत के ज्यादातर छात्र वहां मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे. इसलिए कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि यूक्रेन में ऐसा क्या है कि वहां इतनी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं? आइए आपको समझाते हैं इसका कारण. भारत में मेडीकल की पढ़ाई आसान नहीं है ।
दरअसल भारत में मेडिकल की पढ़ाई करना मुश्किल भी है और काफी महंगा भी. हमारे देश में मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए छात्रों को NEET की परीक्षा देनी होती है. हर साल औसतन 15 लाख छात्र NEET की परीक्षा देते हैं, जिनमें से लगभग 7.5 लाख छात्र ही इसमें पास हो पाते हैं. यानी Passing Percentage 50% के आसपास होता है. इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि हर साल साढ़े सात लाख छात्र NEET की परीक्षा में फेल हो जाते हैं और उन्हें मेडिकल कॉलेजों में Admission नहीं मिल पाता. जो छात्र इस परीक्षा में पास हो जाते हैं, उनकी मुश्किलें भी कम नहीं होती. हमारे देश के सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में कुल मिला कर 1 लाख 10 हजार ही सीट्स मौजूद हैं. यानी NEET की परीक्षा में पास तो 7 लाख छात्र होते हैं लेकिन दाखिला केवल 1 लाख 10 हजार बच्चों को ही मिलता है और इस तरह लगभग 14 लाख छात्र मेडिकल कॉलेजों में दाखिला ही नहीं ले पाते. अब सोचिए, ये छात्र जाएंगे कहां, क्योंकि इन्हें तो मेडिकल की पढ़ाई करनी है. इसलिए ये यूक्रेन जैसे देशों का रुख करते हैं. हालांकि इसके पीछे फीस भी एक बड़ी वजह है. भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में MBBS की पढ़ाई का 1 साल का खर्च 3 लाख रुपये है. जबकि प्राइवेट कॉलेजों में 1 साल का यही खर्च औसतन 20 लाख रुपये है. ऊपर से प्राइवेट कॉलेजों में छात्रों के माता-पिता को Donations भी देनी पड़ती है, जो लाखों रुपये में होती है▪️