एनसीईआरटी की किताबों से गांधीजी और आरएसएस से
जुड़ी सामग्री हटाना चूक थी या जानबूझ कर हटाई गई..?
नई दिल्ली: नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) ने दावा किया है कि 2023-24 के पाठ्यक्रम से हटाई गई सामग्री- जिसमें गांधी के प्रति हिंदू कट्टरपंथियों का रवैया, आरएसएस पर प्रतिबंध और गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता के आह्वान के प्रभाव शामिल है- के बारे में घोषणा न करना एक ‘चूक’ थी. बुधवार को द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कक्षा 12 के छात्रों को 15 वर्षों से अधिक समय से पढ़ाई जाने वाली राजनीतिक विज्ञान की किताबों से कुछ महत्वपूर्ण अंशों को एनसीईआरटी द्वारा पिछले साल जून में जारी ‘तर्कसंगत बनाई गई सामग्री (कंटेंट) की सूची’ में दिए बिना ही हटा दिया गया.
हटाए गए अंश में वे पैराग्राफ थे, जिनमें बताया गया था कि गांधी को ‘उन लोगों द्वारा विशेष रूप से नापसंद किया जाता, जो हिंदुओं से बदला लेना चाहते थे या जो चाहते थे कि भारत हिंदुओं का देश बन जाए, जैसे कि पाकिस्तान मुसलमानों के लिए बना था,’ ‘कैसे गांधी के हिंदू-मुस्लिम एकता के आह्वान ने हिंदू चरमपंथियों को उनकी हत्या के प्रयास के लिए उकसाया’, और कैसे ‘उनकी हत्या के कारण सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले संगठनों के खिलाफ कार्रवाई हुई और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया.’
कक्षा 12 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक से वह अंश भी हटाया गया है, जिसमें गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को पुणे का ब्राह्मण बताया गया था, जो एक हिंदू कट्टरपंथी अख़बार का संपादन करता था, जिसमें गांधी को ‘मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाला’ कहा था.
चुपचाप हटाई गई इस सामग्री की खबर सामने आने के बाद एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने कहा कि इसे ‘तर्कसंगत बनाई गई सामग्री’ की सूची में न रखना एक चूक हो सकती है और इसे लेकर राई का पहाड़ नहीं बनाया जाना चाहिए.
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘विषय विशेषज्ञ पैनल ने गांधी पर कुछ टेक्स्ट को हटाने की सिफारिश की थी. इसे पिछले साल ही स्वीकार किया गया था. असावधानी के चलते तर्कसंगत बनाई गई सामग्री की सूची में इसका जिक्र नहीं किया गया था. इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए. रातों-रात कुछ भी हटाया नहीं जा सकता, इसके लिए उचित प्रक्रियाएं हैं और पेशेवर नैतिकता का पालन करना होता है. कुछ भी जानबूझकर नहीं किया गया है.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि सकलानी से पूछा गया था कि क्या किन्हीं अन्य विषयों में भी इस तरह चुपचाप कोई बदलाव किए गए हैं, जिसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘हम उनके बारे में जल्द ही सूचित करेंगे.’
द हिंदू से सकलानी ने कहा कि सामग्री को ‘तर्कसंगत’ बनाने की प्रक्रिया कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू हुई थी और गणित, विज्ञान और वाणिज्य की पाठ्यपुस्तकों में भी बदलाव किए गए हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि एनसीईआरटी इस मुद्दे पर एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है और इन बदलावों के बारे में अधिसूचना देने के अलावा यह उन्हें सही ठहराने के लिए विषय विशेषज्ञों को भी मैदान में उतार सकती है.’
यह सामग्री हटाए जाने की खबर तब आई है जब कक्षा 12 के लिए एनसीईआरटी इतिहास की किताबों में संशोधन से मुगल साम्राज्य, 2002 के गुजरात दंगों और चर्चित आंदोलनों पर अध्याय हटा दिए जाने की जानकारी सामने आई है.
ऐसा पहली बार नहीं है, जब एनसीईआरटी ने ऐसा कोई कदम उठाया हो. बीते वर्ष, एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटा दिए थे, जिस पर शिक्षकों ने विरोध जताया था.
इसी तरह, कोविड के समय एनसीईआरटी ने समाजशास्त्र की किताब से जातिगत भेदभाव से संबंधित सामग्री हटाई थी. इससे पहले कक्षा 12 की एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की किताब में जम्मू कश्मीर संबंधी पाठ में बदलाव किया था.
वहीं, कक्षा 10वीं की इतिहास की किताब से राष्ट्रवाद समेत तीन अध्याय हटाए थे. उसके पहले 9वीं कक्षा की किताबों से त्रावणकोर की महिलाओं के जातीय संघर्ष समेत तीन अध्याय हटाए गए थे.वहीं, 2018 में भी एक ऐसे ही बदलाव में कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में ‘गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगों’ में से ‘मुस्लिम विरोधी’ शब्द हटा दिया था.