श्रीगोपाल गुप्ता:
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं बैसे-बैसे चम्बल संभाग का राजनीतिक पारा उछाल मारने लग गया है.हाल ही में प्रदेश विधानसभा में अभूतपूर्व जीत से भरपूर लबरेज भारतीय जनता पार्टी खुद के किले में परिवर्तित हो चुकीं चम्बल की दोंनो लोकसभा मुरैना-श्योपुर व भिण्ड-दतिया सीट पर अपनी जीत का परचम यथावत दोहराने के काम पर लग गयी है तो वहीं प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी एतिहासिक हार से डगमगाई कांग्रेस भी नये प्रदेश सदर जीतू पटवारी व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिगार के नेतृत्व में भाजपा की काट ढूंढकर अपनी खोई हुई जमीन पर वापिस परचम लहराने की जुगत में सक्रिय हो गयी है.मगर उससे पहले नये-नवेले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को चम्बल के चुनावी गणित और इतिहस पर एक नजर डाल लेनी चाहिये कि कांग्रेस की जीत की डगर इतनी आसान व सहज नहीं है.चम्बल संभाग की दोंनो लोकसभा सीटें जो कभी कांग्रेस की धरोहर थीं वो अब भाजपा का मजबूत किला बन गयी हैं. इनमें से चम्बल संभाग मुख्यालय मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र तो पिछले ढाई दशक से भाजपा की मिलकियत बन चुकी है.
कांग्रेस ने आखरी दफा सन् 1991में बारेलाल जाटव के रुप में जीत दर्ज कराई थी.उसके बाद कांग्रेस ने सन् 1996,1997 व 1998 में दिग्विजय सिंह सरकार के होते हुये भी और दिग्गज कांग्रेस नेता स्व.माधवराव सिंधिया व उनके पुत्र केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (जो कि अब भाजपा में हैं) के रहते व ऐड़ी-चोटी का जौर लगाने के बाद भी आखरी सन् 2019 के आम चुनाव तक यहां से कांग्रेस को फतह नहीं दिलवा सके.
हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में स्थिति बदली हैं और कांग्रेस मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराने में लगभग सफल रही है? सन् 2018 में मुरैना विधानसभा पर दो दशक का सूखा खत्म करते हुये रघुराज सिंह कंषाना के हाथों विजय हांसिल की थी इसके साथ ही मुरैना जिले की सभी 6 सीटों पर उसे सफलता मिली. रघुराज कंषाना के भाजपा में चले जाने से हुये उप चुनाव में भी कांग्रेस ने मुरैना विधानसभा सीट अपने पास यथावत बनाये रखी और अभी हाल ही में सपन्न हुये प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने चम्बल संभाग मुख्यालय मुरैना विधानसभा पर अपना कब्जा बरकरार रखा. वर्तमान में मुरैना-श्योपर संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास मुरैना जिले की 3 और श्योपुर जिले की दोंनो सीट हैं. ऐसे में ढाई दशक से एक अदद सीट के लिये तरसती कांग्रेस के पास अगामी अप्रैल-मई में होने वाले आम चुनाव में मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र पर बंजर हो चुकी चम्बल की जमीं को फिर से उपजाऊ बनाने का मौका है? आगर वो उम्मीदवार चयन में सावधानी बरते और जनता की पंसद का ध्यान रखते हुये स्थानीय उम्मीदवार पर दांव लगाये. यहां कांग्रेस नेतृत्व को यह भी ध्यान रखना होगा कि विधानसभा चुनाव में दिमनी और सुमावली की तरह प्रत्याशी घोषित करने के बाद फिर बदलने की नौटंकी न करे आन्यथा सूखा यथावत बना रह सकता है. क्योंकि उसे चुनाव में भाजपा के जोश से भी बचना है?