ऊपर एक्सटेंशन तो नीचे काहे का टेंशन।

 

बने रहेंगे वी.डी. भईया

2024 के लोकसभा चुनाव की दूरदृष्टि रखते हुये भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा को जून 2024 तक का एक्सटेंशन भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने दे दिया।अटकलें लगाई जा रही थीं कि प्रदेश की सत्ता व संगठन में भी बदलाव होगा।लेकिन कार्यसमिति के फैसले के बाद एक दम शांति सी छा गई है।अभी भी कयासों का दौर जारी है।उल्लेखनीय है कि फरवरी में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री विष्णु दत्त शर्मा का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है।संगठन में बदलाव तो हो जाता लेकिन चुनावी साल में ऊपर एक्सटेंशन देकर नेतृत्व ने प्रदेश का टेंशन दूर कर दिया है।अब लग रहा है कि न सत्ता बदल रही है और न संगठन।जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा और इसी सत्ता व संगठन के बूते नवम्बर 2023 का विधानसभा चुनाव होना है।नेतृत्व का निर्णय भाजपा के देवदुर्लभ कार्यकर्ता को मानना ही है सो यथा स्थिति बनी रहेगी।सत्ता व संगठन के बूते विधानसभा में परिणाम क्या और कैसे होंगे?यह तो समय के गर्त में है।लेकिन सारा दारोमदार टिकिट वितरण पर निर्भर है।एंटी इनकंबेंसी को नकारा नहीं जा सकता।मात्र सवा साल के शासन को छोड़ दें तो 21 साल 9 माह तक भाजपा का लंबा शासन रहा है और इतने लंबे कार्यकाल के बाद कार्यकर्ताओं और जनता के बीच विरोध होना स्वाभाविक है।इसी विरोध के चलते 2018 में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़े थे।ये अलग बात है कि येन केन प्रकारेण भाजपा फिर सत्ता पर काबिज हो गई ,परंतु सत्ता तो छिन ही गई थी।इतने लंबे समय मे सिर्फ संगठन में फेरबदल हुआ,सत्ता की बागडोर तो मामा ही थामे रहे हैं।नवम्बर 2023 का विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिये अहम है।कांग्रेस को 2018 में थोड़ी संजीवनी बूटी मिल गई थी जिससे कार्यकर्ता टूटकर भी जुड़ गया।लेकिन 2023 मे कांग्रेस के लिए चुनाव अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर होगा।कांग्रेस के लिये यह चुनाव जीने मरने की स्थिति वाला है।यद्यपि उसके पास खोने को कुछ नहीं है और पाने के लिये सत्ता है।सत्ता पर काबिज होने के लिये कांग्रेस जोर तो लगाएगी ।परन्तु सबको साथ लेकर न चलने का कमलनाथ का स्वभाव है और स्वभाव बदलना मुश्किल है फिर सत्ता कैसे मिलेगी?कमलनाथ का असल फोकस सर्वे पर रहता है।सर्वे में जिसका नाम आएगा उसका टिकिट पक्का।फिर जिन नेताओं का जनाधार है और वर्षों से धरातल पर काम करने वाले नेताओं की बात नहीं मानी गई तो सर्वे में आये नाम कोई गुल नही खिला पाएंगे।
अब भाजपा की बात करें तो चुनाव जीतना भाजपा की प्राथमिकता है इसके लिये कई तरह के सर्वे चल रहे हैं और उनकी रिपोर्ट भी आ रही हैं।इंटेलिजेंस भी अपनी रिपोर्ट दे ही रहा है ऐसे में भाजपा भी फूंक फूक कर कदम रखेगी।टिकिट उसी को दिया जाएगा जिसका नाम प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के सर्वे में आएगा।इस हिसाब से लगभग तीस से चालीस टिकिट कटने की संभावना बनी हुई है।गुजरात की तर्ज पर सभी को बदल देने का नुस्खा मध्यप्रदेश में नही चल पाएगा।क्योंकि गुजरात और मध्यप्रदेश में अंतर है पर कुछ मंत्रियों को बदले जाने की संभावना बनी हुई है।क्योंकि कि इनके रिपोर्ट कार्ड भी कुछ ऐसे हैं कि बदलना ही एकमात्र विकल्प है।चुनाव के लिए अब ज्यादा समय नहीं रह गया है।सरकार को छः माह का समय ही खुलकर काम करने के लिये बचा है।इतने समय में बेरोजगारों की भर्ती भी करना है,कर्मचारियों को भी खुश रखना है,पुरानी पेंशन बहाली, संविदा कर्मियों का नियमतिकरण और कार्यकर्ताओं के साथ साथ जनता का भी ध्यान रखना है।इन सभी पर यदि पार्टी खरी उतर गई और उसके प्रयास कारगर हुए तो भाजपा फिर से सत्ता में आ जायेगी ।अन्यथा 2018 जैसा फिर हो जाएगा।इतने सालों में भाजपा ने चुनाव लड़ना और जीतना भी अच्छे से सीख लिया है।

सुबोध अग्निहोत्री

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