ईओडब्ल्यू में अफसरों का संकट

भोपाल एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में तेजी से कार्रवाई चाहती है, तो दूसरी तरफ ऐसे मामलों की जांच करने वाली प्रमुख एजेंसी ईओडब्ल्यू को अफसर तक नहीं दिए जा रहे हैं, जिसकी वजह से एजेंसी को अफसरों के साथ ही स्टाफ की कमी से जूझना पड़ रहा है। इस वजह से अब एजेंसी का काम काज भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। जांच में हो रही देरी की वजह से भ्रष्टाचारियों की पौ बारह बनी हुई है। खास बात यह है कि एजेंसी द्वारा कई बार शासन से अफसरों की मांग की जा चुकी है , लेकिन इसके बाद भी अफसर उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। दरअसल बीते साल शासन ने इस एजेंसी में पदस्थ निरीक्षक से लेकर डीएसपी स्तर के अफसरों के बड़े पैमाने पर तबादले कर दिए थे , लेकिन उनकी जगह नए अफसरों की पदस्थापना करने में रुचि ही नहीं ली जा रही है। यह हाल उस एजेंसी का बना हुआ है, जो बड़े पैमाने पर होने वाली आर्थिक अनियमितताएं, भ्रष्टाचार और घोटालों की जांच करने वाली बेहद अहम मानी जाती है। इसकी वजह से एजेंसी के हालात ऐसे बन गए हैं कि घोटालों की जांच पर तकरीबन ग्रहण लग गया है। अफसरों की कमी की वजह से बीते साल के सितंबर माह से ईओडब्ल्यू ने कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है। अफसरों की माने तो सितंबर के बाद जांच एजेंसी ने एक भी अधिकारी-कर्मचारी को रिश्वत लेते रंगे हाथ नहीं पकड़ा है और उसके बाद किसी के ठिकानों पर छापामार कार्रवाई भी नहीं की गई है। पुराने मामलों की जांच भी ठंडे बस्ते में है। ऐसा इसलिए कि तकरीबन सभी मामलों की जांच करने वाले उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) और निरीक्षक (इंसपेक्टर) स्तर के अफसरों को ईओडब्ल्यू से हटाकर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कर दिया गया था। ईओडब्ल्यू में पदस्थ अधिकारियों को जब हटाया गया, तो विकल्प के तौर पर अफसरों की नई पदस्थापना नहीं की गई। यह स्थिति तब है, जब ईओडब्ल्यू में पूरी जांच डीएसपी और इंस्पेक्टर स्तर के अफसर करते हैं। जिन अफसरों को हटाया गया था, उनमें एक दर्जन डीएसपी और तकरीबन डेढ़ दर्जन इंसपेक्टर थे। यह बात सही है कि जिन अफसरों को हटाया गया है, वे लंबे समय से ईओडब्ल्यू में पदस्थ थे। बहरहाल गृह विभाग और पीएचक्यू की जिम्मेदारी यह भी है कि अगर किसी अधिकारी को वहां से हटाया जा रहा है, तो विकल्प भी देना था। ईओडब्ल्यू से तो अधिकारी थोक में हटाए गए हैं और उनकी जगह पर पदस्थापना एक की भी नहीं की गई है।  सूत्र बताते हैं कि ईओडब्ल्यू की सागर इकाई में दो अधिकारी पूरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कमोबेश इसी तरह की स्थिति भोपाल, इंदौर, रीवा, ग्वालियर और जबलपुर में भी है।
एक टेबिल से दूसरी टेबिल पर घूम रही फाइल
अधिकारियों का तबादला होने के बाद उनके एवज में पदस्थापना करने के लिए डीएसपी और इंसपेक्टर स्तर के कुछ अफसरों के नाम भेजे हैं। अफसरों के नाम रिकार्ड के आधार पर भेजे गए हैं, लेकिन लंबा वक्त गुजर जाने के बावजूद अभी तक पदस्थापना नहीं की गई है। बताते हैं कि नई पदस्थापना के लिए फाइल एक टेबिल से दूसरे टेबिल में घूम रही है, लेकिन उस पर फैसला नहीं हो पा रहा है। इसका सीधा असर जांच एजेंसी की विवेचना पर पड़ रहा है। खास बात यह है कि यह हालात तब बने हैं, जबकि स्वयं मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि सरकार की नीति भ्रष्टाचार के मामलों में जीरो टालरेंस की है और  अब भ्रष्ट पुलिस वालों पर इओडब्ल्यू के छापे पड़ेंगे। यही नहीं उनके द्वारा भ्रष्ट पुलिस अफसरों के खिलाफ गोपनीय तौर पर जानकारी जुटाने को भी कहा गया है। माना जा रहा है कि गृह और पुलिस महकमा शायद मुख्यमंत्री की मंशा से इत्तेफाक नहीं रखता है, अन्यथा तबादले करने के साथ ही इस एजेंसी में रिक्त चल रहे पदों को पहले ही भर दिया जाता।
इन मामलों की लंबित हैं जांचे
प्रदेश में ईओडब्ल्यू के पास अभी देश के सबसे चर्चित ई-टेंडर घोटाले से लेकर कन्यादान घोटाला, प्याज घोटाला, राशन घोटाला, जबलपुर चर्च के पूर्व बिशप पीसी सिंह, जबलपुर आरटीओ संतोष पाल की अनुपातहीन संपत्ति का मामला, महिला बाल विकास विभाग का आयरन फ्रेम घोटाला, बालाघाट के बिजली कंपनी के सहायक यंत्री दयाशंकर प्रजापति की अनुपातहीन संपत्ति का मामला, भोपाल के स्वास्थ्य विभाग के क्लर्क हीरो केसवानी के घर भारी मात्रा में मिली नगदी सहित कई मामलों की जांच

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