दिनांक 06 मार्च, 2020,
केंद्र की भाजपा सरकार ने देश को आर्थिक बदहाली की कगार पर ला खड़ा किया है। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि देश की जीडीपी में लगातार सात तिमाही से गिरावट दर्ज की गई हो। भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी की गई अक्टूबर-दिसम्बर 2019 तिमाही की विकास दर मात्र 4.7 प्रतिशत पर आ गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था आईसीयू में नहीं बल्कि कोमा में है। भारत की वित्त मंत्री सीतारमन का कहना है कि उन्हें Green Shoots Of Economic Revival दिखाई दे रहा है। इस स्थिति में तो The Rest Of The World Is Colour Blind. क्योंकि विकास दर की वर्तमान वृद्धि भी सरकारी खर्च के कारण दिखाई दे रही है अन्यथा यह वृद्धि दर मात्र 3.7 प्रतिशत है। अगर विकास दर लगातार गिरती रही और मुद्रास्फीति बढ़ती रही तो देश मुद्रास्फीतिजनित मंदी की अनिश्चितता में फस जाएगा।
एनडीए सरकार पर निशाना साधते हुए संजय झा ने कहा कि भारत की विकास दर पिछले 11 वर्षों में अपने निचले स्तर पर है, इनवेस्टमेंट पिछले 17 सालों के, मैन्युफेक्चरिंग पिछले 15 सालों के, प्रायवेट डिमांड पिछले 7 सालों के और कृषि विकास पिछले 4 सालांे के अपने न्यूनतम स्तर पर है। बेरोजगारी का आलम तो यह है कि पिछले 45 वर्षों की भीषणतम बेरोजगारी की मार भारत झेल रहा है और यही कारण है कि दिल्ली को भीड़तंत्र में बदलकर हिंसा का तांडव बीते दिनों किया गया, ताकि एनडीए सरकार अपनी नाकामी पर पर्दा डाल सके।
जाबलेसनेस ने भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश पर बहुत बड़ा कुठाराघात किया है। बेरोजगारी की वजह से भारत को बहुत बड़ी कीमत सामाजिक संदर्भों में चुकानी पड़ी है। भारत के युवाओं को देश की सरकार अपने कुटिल उद्देश्यों के लिए दिग्भ्रिमित कर देश में अराजकता की स्थिति पैदा कर रही है। एक तरफ समूचा विश्व कोरोना वायरस की परेशानियों से जूझ रहा है तो वहीं भारत की सरकार नियोजित रूप से नफरत का वायरस देश में फैला रही है। आर्थिक प्रगति की अनिवार्य शर्त है सामाजिक सौहार्द। भारत को बांट कर, दंगे कराकर, दलितों पर हमला कर, भारत के प्रबुद्धजनों और युवा छात्रों पर आक्रमण कर देश को आर्थिक प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। भाजपा यह भूल जाती है कि हम सिर्फ अर्थव्यवस्था में नहीं रहते, पहले हम एक सामाजिक व्यवस्था में रहते हैं।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हमेशा की तरह सुर्खियों के प्रबंधन में लगे रहते हैं और वर्ष 2024 तक भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन डाॅलर पर पहुंचाने की बात करते हैं। भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन डाॅलर पर पहुंचाने के लिए 10.5 प्रतिशत विकास दर की आवश्यकता है। वर्तमान विकास दर के आधार पर तो हम वर्ष 2032 तक भी 5 ट्रिलियन डाॅलर की जीडीपी तक नहीं पहुंच पायेंगे। किसानांे की इनकम भी वर्ष 2022 तक दोगुनी करना एक भ्रामक प्रचार मात्र है। सच्चाई यह है कि भारत की प्रायवेट इन्वेस्टमेंट एक्टीविटी पर भी गहरा आघात लगा है और ग्रास फिक्सड केपिटल फार्मेशन गिरकर जीडीपी का 29 प्रतिशत रह गया है जो कि वर्ष 2010 मंे 39 प्रतिशत था।
झा ने बताया कि मेन्युफेक्चरिंग सेक्टर पिछले दो क्वाटर से लगातार सिकुड़ता जा रहा है, जबकि कंस्ट्रक्शन और रियल स्टेट सेक्टर मुर्झा रहा है। एनडीए सरकार एमएसएमई सेक्टर को बढ़ावा देने में नाकामयाब रही है और भारत को एक गंभीर आर्थिक संकट में डाल दिया गया है।
केंद्र की भाजपा सरकार विनाशकारी आर्थिक स्थिति को महत्वहीन बताकर इसे साइक्लिक समस्या बता रही है। जबकि केंद्र सरकार असफलता के मूल मुद्दे को पहचानने में ही असमर्थ है, विशेष रूप से बड़ी डिफाल्टिंग कंपनियों की ट्वीन बैलेंस शीट समस्या और पीएसयू बैंकों का बढ़ता एनपीए।
एनडीए सरकार में बैंकों का एनपीए 400 गुना तक बढ़ गया है, जिसमें एनबीएफसीस शामिल नहीं है, जैसे एचडीआईएल, डीएचएफएल, पीएमसी बैंक इत्यादि। शेडो बैंकिंग इंडस्ट्रीज भी आईएलएफएस में भीषणतम धोखाधड़ी से तबाह हुई है।
कल्पना कीजिए कि रेलवे की क्लर्क की नौकरी के लिए 28 मिलियन लोग आवेदन देेते हैं, जिसमें इंजीनियर, एमबीए, पीएचडीधारी तक शामिल होते हैं, इसी से देश में बेरोजगारी की गंभीर समस्या का पता लग जाता है। मगर मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने की अपेक्षा देश को जाति, भाषा, धर्म, खानपान के आधार पर बांटने में व्यस्त हैं।
झा ने बताया कि मोदी सरकार को चाहिए कि वे अपना ध्यान भारत के निर्यात को बढ़ाने, कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को बढ़ाने, रोजगार के नये अवसर सृजित करने, निवेश को लाने, शिक्षा-स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर केंद्रित करें।
हम इस आर्थिक वर्ष की समाप्ति तक बहुत बड़ा हुआ राजकोषीय घाटा देखेंगे, क्योंकि मोदी सरकार ने रेवेन्यु स्टीमेंट को बढ़ाचढ़ाकर बताया है जो कि जीडीपी ग्रोथ के साथ समरसता नहीं रखता।
संजय झा ने आगाह करते हुए कहा कि अगर कोरोना वायरस की महामारी और अधिक बुरी अवस्था मंे पहुंचती है तथा तेल की कीमत बढ़ती है तो आने वाला समय भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत कठिनाईयों से भरा होगा।