पिछले चार- पांच बड़े आयकर छापों की बात करें तो हम पाऐंगे कि लगभग एक तरह के लेनदेन द्वारा करोड़ों की आयकर चोरी की गई.
सबसे पहले अदकारा तापसी पन्नु और डायरेक्टर अनुराग कश्यप के ठिकानों पर आयकर छापा जिसमें 650 करोड़ रुपये के लेनदेन कर चोरी के दायरे में आये.
उसके बाद पिछले महीने राजकोट के बिल्डर ग्रुप के ठिकानों और केरल एवं तामिलनाडू के माइनिंग व्यवसायी के पूरे भारतवर्ष में स्थित ठिकानों पर छापा जिसमें लगभग 700 करोड़ रुपये के लेनदेन संदेह के दायरे में पाए गए.
और इसी महीने पश्चिम बंगाल स्थित टेक्सटाइल ग्रुप के पूरे देश में स्थित ठिकानों से 350 करोड़ रुपये के संदिग्ध लेनदेन, इसी तरह सोनू सूद द्वारा 20 करोड़ रुपये के फर्जी लेनदेन और हाल में ही सूरत के हीरे व्यापारी के ठिकानों पर छापे के बाद 900 करोड़ रुपये के संदिग्ध लेनदेन का पाया जाना.
एक और लेनदेन जो चर्चा और जांच के दायरे में है- वो है ई-कामर्स कंपनी आमेजन द्वारा 8267 करोड़ रुपये के लीगल खर्च पिछले 3 वर्षों में भारत में किया गया.
इन सभी लेनदेनों में 5 बातें एकसमान है जो हमें बताती है कि हमें अपने व्यापार में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि आयकर विभाग की टेढ़ी नजर न पड़े:
1. शेयरों के फर्जी मुल्यांकन:
तापसी पन्नु केस में 650 करोड़ रुपये के शेयरों का फर्जी मूल्यांकन पाया गया. विभिन्न बेनामी कंपनियों के शेयर मूल स्तर 10 रूपये में खरीदे गए और इसे अपनी ग्रुप कंपनियों में बेहद उच्च मूल्य पर ट्रांसफर किए गए ताकि निवेश का स्वरूप दिखें न कि खरीद बेच का और आयकर से छिपाए गए.
शेयरों का फर्जी मूल्यांकन और इनका विभिन्न बेनामी कंपनियों में ट्रांसफर कर काले धन को सफेद करने का तरीका आयकर विभाग की प्राथमिकता में है और हर व्यापारी को ऐसे लेनदेन से बचना चाहिए.
कोशिश ये करनी चाहिए कि शेयरों के मूल्यांकन सही और मापदंडों के तहत सरकार द्वारा नामित विशेषज्ञों के करवाना चाहिए एवं ऐसे लेनदेन का पुरा जिक्र आयकर विवरणी में भी हो, सुनिश्चित करना चाहिए.
2. मुखौटा कंपनियों के माध्यम से विदेशी निवेश:
हाल में ही टेक्सटाइल ग्रुप कंपनी द्वारा अपनी विभिन्न मुखौटा कंपनियों जो विदेश में स्थित थी, उनके माध्यम से करोड़ों रुपये का निवेश करवाया गया.
असल में यह पैसा भारत से ही फर्जी माध्यमों से विदेश भेजा गया और वहाँ से बांड के स्वरूप में लोन लिया गया. फिर भारतीय कंपनी द्वारा लोन नहीं चुकाने के कारण इसे शेयरों में कंवर्ट कर दिया गया और शेयरों के मूल्यांकन बढ़ाकर करोड़ों में निवेश लिया गया.
मुखौटा कंपनियों से लेनदेन खासकर विदेशी निवेश इस समय आयकर विभाग के रेडार पर है और हर व्यापारी को कोशिश करनी चाहिए कि विदेशी निवेश कानूनी तरीके से लिया गया हो और निवेशक की केवाईसी एवं विभाग को सूचना देकर निवेश लिया जावे.
3. प्रापर्टी में निवेश और फर्जी लेनदेन:
लगभग सभी छापों में बड़ी मात्रा में जमीनों एवं प्रापर्टी में बेनामी और फर्जी लेनदेन पाया गया, करोड़ों रुपये की जमीनों को बेहद ही सस्ते दामों में खरीदा गया और बहुत सी जमीनों की रजिस्ट्री भी बेनामी निकली.
प्रापर्टी और जमीनों के लेनदेन आयकर विभाग की नजर में होने के कारण सभी को कोशिश यह करनी चाहिए कि यह सभी लेनदेन सरकार सूचना और मूल्यांकन के आधार पर हो एवं कोशिश यह करनी होगी कि प्रापर्टी के लेनदेन में कैश का लेनदेन न हो.
प्रापर्टी डीलिंग में कैश का लेनदेन आम बात है और इस पर आयकर विभाग छोटी डील को भी शक की नजर से देखता है. यह छापे का एक आम आधार है और इसलिए जमीनों की खरीद फरोख्त में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.
4. खातों में फर्जी खर्चे दिखाना:
व्यापारिक खातों में फर्जी खर्चे डालना आम बात है और ये आसानी से उचित साक्ष्य नहीं होने के कारण पकड़े जाते हैं. अत्यधिक प्रशासनिक खर्चे, वेतन, फर्जी लोगों और संस्थान के नाम पर दिखाए गए खर्चे, कैश में दिए गए खर्चे, आदि.
हर व्यापारी को कोशिश करनी चाहिए कि व्यापारिक खर्चे पूरी तरह से साक्ष्यों पर निर्भर हो और कैश लेनदेन न हो तो ज्यादा अच्छा.
हम पाऐंगे कि लगभग सभी छापों में करोड़ों रुपये के खर्च जो खातों में डाले गए, वे न केवल साक्ष्य विहीन थे बल्कि उनकी प्रासंगिकता व्यापारिक मापदंड से मेल भी नहीं खाती थी.
5. खातों के बाहर कैश लेनदेन:
काले धन का कैश के रूप में भरपूर प्रयोग इन छापों में पाया गया. हवाला छापों में पाया गया कि सभी शहरों में बड़े स्तर पर कैश लेनदेन हो रहा है जो शायद हमारी एक समांतर अर्थव्यवस्था की तरफ इशारा करता है.
सरकार और आयकर विभाग की पूरी कोशिश है इस कैश लेनदेन व्यवस्था को तोड़ दे और हमेशा इनकी नजर इस पर होती है एवं सरकारी खुफिया विभाग कैश लेनदेन पकड़ने में लगा रहता है. ऐसे में हमें कैश लेनदेन को खासकर जो खातों में नहीं दिखाने है, नहीं करने चाहिए.
उपरोक्त लेनदेनों में सावधानी बरत कर ही आयकर विभाग की छापे कार्यवाही से बच सकते हैं और अपना उचित एवं न्यायोचित योगदान देशहित में दे सकते हैं.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर