गेहूं और धान की खपत से ज्यादा खरीदी सरकार के लिए मुसीबत बन गई है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में बंटने वाले गेहूं और चावल का खर्चा तो केंद्र से मिल जाता है, इसके अलावा ज्यादा की गई खरीदी का खर्चा राज्य सरकार को उठाना पड़ रहा है।
गोदामों में दो साल से 70 लाख टन गेहूं ऐसा जमा है, इस सरप्लस अनाज को उठाने के लिए केंद्र से कहा गया है। खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम पर 68000 करोड़ रु. का कर्जा है, जिस पर प्रतिदिन 18 करोड़ रुपए ब्याज देना पड़ रहा है। यानी खस्ताहाल स्थिति में हर महीने 540 करोड़ रुपए बैंकों को ब्याज का देना पड़ रहा है। गुरुवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई, जिसमें खाद्य विभाग और खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम के अफसर मौजूद थे।
ऐसे बढ़ रहा कर्जा.. गोदामों का किराया ही 1260 करोड़
केंद्र की ओर से राज्य को पीडीएस में वितरण के लिए खरीदी से लेकर वितरण तक साढ़े पांच महीने का खर्च मिलता है। यानी इस अवधि में गेंहू की खरीदी करे और उसे बंटवाए। इसी तरह धान खरीदी के बाद उसकी मिलिंग कर चावल बनवाए और उसे बंटवाए। यदि इससे ज्यादा समय तक गोदाम में अनाज रखा रहता है तो उसका किराया राज्य को देना होगा। अभी दो साल से 70 लाख टन गेहूं गोदामों रखा है, जिसमें से शुरुआती साढ़े पांच महीने का किराया तो 7.50 रुपए प्रति क्विंटल प्रतिमाह के हिसाब से केंद्र से मिल गया। यानी साढ़े पांच महीने के 262 करोड़ रुपए का भुगतान केंद्र सरकार ने कर दिया। बाकी 998 करोड़ रुपए राज्य सरकार को देना पड़ रहा है।