आत्मनिर्भर भारत की नयी तस्वीर बनाएगा कृषि क्षेत्र

हृदयनारायण दीक्षित:
आत्मनिर्भरता सबसे बड़ा सुख है। आत्मनिर्भर समाज और राष्ट्र अपने निर्णयों में दबावमुक्त रहते हैं। सशक्त राष्ट्र अपने समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य रखते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास लगातार किया है। आत्मनिर्भर होने की प्राथमिक शर्त है-अन्न आत्मनिर्भरता। पर्याप्त अन्न राष्ट्र की आधारभूत आवश्यकता है। अन्न अभाव का संकट बड़ी राष्ट्रीय चुनौती होता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अन्न संकट के कारण देशवासियों से एक वक्त भोजन छोड़ने की अपील की थी। कृषि क्षेत्र के लिए ढांचागत सुविधाएं, सिंचाई, खाद-बीज की सुविधा और पर्याप्त पूंजी बुनियादी जरूरतें हैं। भारतीय किसान परिश्रमी हैं। ऋग्वेद में कृषि कार्य का उल्लेख है। तब कृषि सम्मानजनक कार्य थी। देव भी कृषि कर्म से जुड़े हैं। ऋग्वेद (8.22.6) के अनुसार “अश्विनी देव भी भूमि जोतते हैं।” इन्द्र और वरूण भी कृषि से जुड़े हैं। कृषि तत्कालीन समाज का अनिवार्य कर्म है। ऋषियों के मन में कृषि उपकरणों के प्रति प्रेम भाव है। भूमि जोतने में हल में लोहे का फाल प्रयुक्त होता है। ऋषि “हल के फाल से सुखपूर्वक जमीन जोतने की इच्छा व्यक्त करते हैं।” (वही 4.57.8) अन्यत्र (वही 10.101.3-8) कहते हैं, “हे मित्रों! हल में बैल जोड़ो। बीज बोओ। खूब अन्न उत्पादन हो। बैलों को घास खिलाओ, खेत जोतो। उपज ढोने वाले रथ तैयार करो।”
अथर्ववेद में भी कृषि का विकास समुन्नत है। अथर्ववेद (कृषि सूक्त, 3.17) में कृषि कार्य के विवरण हैं। यहां इन्द्र देव भी कृषि कार्य में सहयोगी हैं। कहते हैं, “इन्द्र जोती हुई भूमि-सीता का संरक्षण करें। पूषा देव इसे सम्हालें। यह धरती श्रेष्ठ धान्य व जल से परिपूर्ण रहे। हमारे लिए अन्न का दोहन करें।” (वही 4) कहते हैं “कृषक बैलों के पीछे सुखपूर्वक चलें। कृषक प्रसन्न मन खेत जोतें।” (वही 5 व 6) ऋग्वेद व अथर्ववेद में जोती गई भूमि का नाम सीता है। ऋषि सीता से कहते हैं, “हे सीते! हम आपको प्रणाम करते हैं। आप हमारे लिए श्रेष्ठ फल देने वाली हों।” (वही 8) रामायण की सीता का सम्बंध भी जोती गई भूमि से है। ऋषि जुती हुई भूमि से भी स्तुति करते हैं। अपनी मधुप्रियता घृतप्रियता का उल्लेख करते हैं। “यहां जुती हुई भूमि भी मधु और घृत सिंचित बताई गई है। (वही 9)
अथर्ववेद के रचनाकाल में कृषि विकास विज्ञान का रूप ले चुका था। कृषि कार्य के विशेषज्ञ ‘अन्नविद्’ कहलाते थे। पूर्वजों ने कृषि कार्य के तमाम नियम बनाए थे। अथर्ववेद में उन्हें ‘याम’ कहा गया है। कहते हैं “कृषि कार्य से जुड़े लोग जो नियम – यद् यामं मानते क्रियान्वित करते रहे हैं, वे अन्नविद् अन्नवान हों।” (6.116.1) एक मंत्र (6.30.1) के अनुसार “सरस्वती तट पर देवों ने मनुष्यों को मधु रस आपूरित जौ दिया- देवा इमं मधुना संयुतं यवं। भूमि में अन्न उपजाने के लिए मरूदगणों ने खेती की। इन्द्र हल के अधिष्ठाता बने।” लेकिन कृषि विशेषज्ञ इस देश में पीछे कई दशक से कृषि उत्पादन के लिए पूंजी का अभाव रहा है। कृषि उत्पादन लागत ज्यादा रही है। कृषि आय भी प्रोत्साहक नहीं रही। किसान हताश रहे हैं। मोदी के नेतृत्व में किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य पहले से ही तय था। केन्द्र की किसान समर्थक नीतियों के चलते पर्याप्त अन्न भंडार है। कोरोना की चुनौती के दौरान जारी 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में किसानों की खुशहाली के लिए कृषि क्षेत्र को काफी धन देने की घोषणा की गई है। किसानों में खुशी की लहर है।
कोरोना संकट के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था पर संकट है। भारत पर भी इसका असर पड़ रहा है। मोदी के नेतृत्व में भारत आपदा को अवसर में बदल रहा है। 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज भारत की जीडीपी का करीब 10 प्रतिशत है। मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का संकल्प व्यक्त किया है। पैकेज में किसानों, व्यापारियों, गरीबों, श्रमिकों सहित सभी कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान रखा गया है। लेकिन कृषि क्षेत्र को मिले धन आबंटन आकर्षक हैं। पीएम किसान सम्मान योजना के तहत 2-2 हजार रुपये की 1 किस्त 9 करोड़ किसानों को देने की घोषणा की गयी है। किसानों को खरीफ की फसलों की बुआई हेतु नाबार्ड के माध्यम से 30 हजार करोड़ की अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराई गयी है। इससे 3 करोड़ लघु और सीमांत किसानों को लाभ पहुंचेगा। क्रेडिट कार्ड की सुविधा से करीब 2.5 करोड़ किसानों को 2 लाख करोड़ रुपये का रियायती ऋण उपलब्ध होगा। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर सभी योजनाओं के क्रियान्वयन में सक्रिय हैं। कृषि व किसान समृद्धि उनका एजेण्डा है।
कृषि क्षेत्र में बुनियादी ढांचा के लिए 1 लाख करोड़ का प्राविधान सकारात्मक परिणाम देने वाला है। इससे कृषि उपज के भंडारण वैल्यु एडिशन सहित कई तरह की गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। प्राइमरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी, स्टार्टअप, किसान उत्पादक संघ सहित अन्य संगठनों को इस फंड का लाभ मिल सकेगा। छोटी खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लिए 10 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराया गया है। इससे खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में काम करने वाली छोटी इकाइयों को भी फायदा होगा। बिहार में मखाना, कश्मीर में केसर, उत्तर प्रदेश में आम उत्पादन की इकाइयाँ लाभान्वित होंगी। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की गयी है। अगले 5 साल में 70 लाख टन मत्स्य उत्पादन होगा। पशुधन राष्ट्रीय संपदा है। कृषि पशुपालन संविधान का नीति निदेशक तत्व है। पैकेज में राष्ट्रीय पशु बीमारी नियंत्रण कार्यक्रम के लिए 13342 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है। दूध का उत्पादन बढ़ेगा। पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए 15 हजार करोड़ रुपये की धनराशि प्राविधानित है। इसका नाम ‘‘एनिमल हस्बेंडरी डेवलपमेंट फंड होगा।’’ इससे पशुपालन और डेरी उत्पादन की गतिविधियों में निजी निवेश आकर्षित किया जाएगा। किसानों की आय बढ़ेगी। हर्बल पौधों को बढ़ावा देने के लिए 4 हजार करोड़ रुपये की योजना को स्वीकृति प्रदान की गयी है। लगभग 10 लाख हेक्टेयर पर हर्बल प्रोडक्ट्स की खेती होगी। किसानों को 5 हजार करोड़ की अतिरिक्त आय की संभावना है। गंगा तटपर 800 हेक्टेयर भूमि पर हर्बल प्रोडक्ट्स के लिए काॅरिडोर की भी योजना है। इससे परम्परागत आयुर्वेद को बढ़ावा मिलेगा।
मधुमक्खी पालकों को 500 करोड़ रुपये की सहायता उपलब्ध कराई जानी है। आधारभूत संरचना के निर्माण के साथ-साथ 2 लाख मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ेगी। ऑपरेशन ग्रीन के विस्तार के साथ ‘‘टाॅप टू’’ टोटल के लिए 500 करोड़ की धनराशि प्राविधानित की गयी है। पहले टाॅप टू योजना के तहत टमाटर, प्याज और आलू आते थे। अब इस योजना के दायरे में बाकी सभी फल और सब्जियां आयेंगी। इससे जो खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते थे उन्हें बचाया जायेगा। किसानों को दबाव में कम मूल्य पर फसल नहीं बेचनी पड़ेगी। इस योजना में सभी फल और सब्जियों के परिवहन पर 50 फीसदी और स्टोरेज पर 50 फीसदी की सब्सिडी का भी प्रस्ताव है। कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और निवेश बढ़ाने के लिए अधिनियमों में बदलाव भी है। नई घोषणा में प्रावधान है कि किसान जहाँ चाहे वहां अपनी फसल बेच सकता है। कृषि क्षेत्र में राहत पैकेज की घोषणाओं से 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य पूरा होगा। कृषि उत्पादन बढ़ेगा। रोजगार में भी वृद्धि होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में क्रय शक्ति बढ़ेगी। कृषि क्षेत्र संकट की घड़ी में मंदी का मुकाबला करते हुए आत्मनिर्भर भारत बनने के प्रधानमंत्री के संकल्प को नया आयाम देगा।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हैं।)
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