आज दो जून को दो जून की रोटी की तलाश में जब घर से निकला —

 

-श्याम:
आज जब 2 जून को 2 जून की रोटी की तलाश में निकला घर से !
मन रो उठा दो पल के लिए जब देखा! नजारा शहर का !
लगा कुछ समाचार पत्र टीवी चैनल व्हाट्सएप फेसबुक टिक टॉक पर जो देखा गया आंखों से ! सुना गया कानों से! बताया गया पड़ोसी से वह सब क्या गलत था ! यह जो देख रहा हूं वह गलत है !
कुछ अपने तो कह रहे थे फोन पर भी बता रहे थे लोग भूखे मर रहे हैं भूखे सो रहे हैं कोई नहीं है उनका मददगार !
कुछ ने तो यहां तक कहा जिंदा लाश बने हुए हैं सारे के सारे अपने !
नजारा देखा तो ऐसा लगा नजर नही लग जाए मेरे शहर को!
पूरे शहर में मेरे अपने के भाव से लगा कि सब वैसा ही है जैसा पहले था !
जो कुछ भी बदला वह भी हम सबके लिए अच्छा ही था !
जो चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कुछ टीवी चैनल वाले कुछ समाचार पत्र वाले जो लिखा रहे थे टिक टॉक व्हाट्सएप फेसबुक मैसेंजर के माध्यम से प्रचार कर रहे थे !
शहर बदलगे गांव शहर के लोग बदलेंगेअब !
पर ऐसा कुछ नहीं दिखा
सब के सब कुछ वैसे ही थे जो कल थे !
चिंता थी तो केवल रोजगार की व्यापार की जो किया जा रहा था उस कार्य की !
सब के सब तलाश रहे थे अपनों को जो नहीं मिल पाया था !
चिंता थी तो केवल कोरोना को भगाने की उससे निजात पाने की बस !
कुछ जरूर दिखे ऐसे जिन्होंने जहर घोलने की कोशिश की आपसी में!
लेकिन मुस्कुराहट नहीं थी उनके चेहरों पर दुखी थे शहर के भाव को देखकर !
कुछ ने तो अपनों को ही कोसा था कुछ ने राजनेताओं को कोसा था और कुछ ने अपने के विज्ञापन निकाल दिए थे नहीं मिलने के !
लेकिन नजारा जब देखा शहर का तो ऐसा तो कुछ नहीं लगा जैसा कुछ कुछ कह रहे थे !
सबने सब कुछ किया जिससे जो कुछ बना सरकारों ने भी संस्कार वालों ने भी धर्म करने वालों ने भी सामाजिक संगठनों ने भी!
जहर घोलते रहे कुछ-कुछ पर कुछ नहीं पा सके ! मेरे शहर /गांव के अपनों से !
आज जब निकला 2 जून को 2 जून की रोटी के लिए अपने घर से ! मन रो उठा दो पल के लिए कुछ लोगों की आपसी में जहर घोलने वाली बातों से!
जब घर से निकला 2 जून को 2 जून की रोटी की तलाश श्याम !!

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