आजीविका के लिए आर-पार की लड़ाई करने को मजबूर बक्‍सवाहावासी

बक्सवाहा जंगल बचाने की मुहिम
मंथन से निकला बक्‍सवाहा जंगल बचाने का अमृत


छतरपुर जिले के बक्‍सवाहा जंगल को बचाने की मुहिम तेज होती जा रही है। धीरे-धीरे कर देश भर के पर्यावरण प्रेमी इस लड़ाई में शामिल हो रहे हैं। हाल ही में नैनागिरी में भारत के 09 राज्यों के पर्यावरणप्रेमियों ने दो दिवसीय मंथन शिविर में शामिल होकर जंगल बचाओ अभियान को बल दिया। इस शिविर में देशभर के पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, जनांदोलन से प्रमुख कार्यकर्ताओं ने शिरकत की।
कार्यक्रम में केन बेतवा बचाओ आंदोलन से जुड़ी विजया पाठक, सामाजिक कार्यकर्ता राजेश यादव, सोशल एक्टिविस्ट डॉ धर्मेंद्र कुमार, वृक्ष मित्र सुनील दुबे, एडवोकेट आराधना भार्गव आदि ने जंगल बचाओ अभियान की आगामी रणनीति पर विचार एवं सुझाव दिए। शिविर में न्याय प्रक्रिया एवं मुख्य पहलू पर चर्चा, कटते जंगल उजड़ता आशियाना, बेजुबान पशु-पक्षी, जीव-जंतु की आवाज कैसे बने? जंगल पर आश्रित परिवारों की दशा और दिशा इन विषयों पर प्रमुखता से मंथन किया गया। शामिल प्रतिभागियों ने मिट्टी तिलक, मिट्टी से स्नान, वृक्षारोपण, हस्ताक्षर अभियान, रात्रि सभा, रात्रि मशाल जुलूस और रैली निकाली एवं माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस परियोजना पर रोक लगाने के लिए एक सुर में आवाज उठाई। सभी ने बचन भी दिया कि हम देश में जहां भी जल, जमीन, जंगल और प्रकृति का हनन होगा वहां पर हम आवाज बनकर प्रकृति के साथ खड़े रहेंगे।
इस अवसर पर वक्‍ताओं ने अपने उदबोधन में कहा कि देश में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा हम सभी ने कोरोनाकाल में सांसों के संकट से हम गुजर चुके हैं। देश में सोना, चांदी, हीरे, ज्वैलरी बेचकर भी हमें ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही थी, हमें प्राकृतिक ऑक्सीजन बैंक बनाने की जरूरत है। बक्सवाहा में जिन 07 स्थानों पर शैलचित्र हैं, उन्हें विश्व धरोहर में शामिल किया जाए और उसके संरक्षण को लेकर सरकार काम करे। मंथन में सभी ने तर्क सहित अपनी बातों को प्रमुखता से रखा।
गौरतलब है कि बक्सवाहा बंदर प्रोजेक्ट के तहत 382.131 हेक्टेयर वनभूमि से 2 लाख 15 हजार 875 पेड़ो की कटाई कर 3.42 करोड़ के हीरे का उत्खनन किया जा रहा है। जिससे बक्सवाहा के ऊपर गहरा संकट मंडरा रहा है। परियोजना में 17 गांवों के सीधे तौर पर 4500 परिवार से 20 हज़ार की जनसंख्या प्रभावित होंगे। वनवासी और जंगल पर आश्रित समुदाय के जीवन पर सांसों व आजीविका का संकट गहराता जा रहा है।
पर्यावरणप्रेमियों ने बक्सवाहा जंगल बचाओ अभियान के तहत उन जंगलों को बचाने के लिए और संघर्ष किया है और सभी का अथक प्रयास से जंगल अवश्य ही बचेंगे। बक्सवाहा में हीरे की खुदाई के लिए करोड़ो पेड़ काटे जाने को लेकर स्थानीय लोगों का संघर्ष अब भी जारी है। आज भी ग्रामीण अपना कामकाज छोड़ दिन भर इधर से उधर जंगल और जमीन बचाने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। पिछले दिनों भी मेरा बक्सवाहा जाना हुआ था। इस दौरान मैंने ग्रामीणों की पीड़ा को करीब से जाना और उनके दर्द की मुख्य वजह को समझा। लगभग 48 घंटे से अधिक समय मैंने उनके साथ बिताया। अपना राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य के साथ प्रदेश सरकार हीरे की खुदाई की परमिशन पहले ही बिड़ला समूह को दे चुकी है। लेकिन सरकार इस बात से अब भी अंजान है कि जिस जमीन को वो चंद हीरों की खुदाई के लिए बिड़ला समूह के सुपुर्द कर चुकी हैं। वहां असल में उसकी एक महत्वपूर्ण धरोहर भी छुपी है। वह धरोहर है आदिमानव काल के शैलचित्र। यह शैलचित्र आज भी वहां देखने को मिलते हैं। जो करीब तीस हजार साल पुराने हैं। इसकी खोज भारतीय पुरात्व विभाग की टीम ने खोज की। यह मामला प्रदेश के हाईकोर्ट के संज्ञान में भी है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद भी इस पर्यटन को बढ़ावा देने को लेकर संवेदनशील रहते हैं, ऐसे में उन्हें इस प्रोजेक्ट पर तुरंत रोक लगाकर इस स्थान को भी भीमबैठिका या अन्य पर्यटन स्थल की तरह विकसित करना चाहिए। साथ ही इस क्षेत्र के हजारों लोगों की आजीविका पर भी ध्‍यान देना चाहिए। यही कारण है कि अब इसके प्रोजेक्‍ट को लेकर बड़े स्‍तर पर विरोध किया जा रहा है।
मशाल जुलूस में शामिल हुए हजारों लोग
बक्‍सवाहा क्षेत्र के आदिवासी गांव मानकी गांव में बड़े स्‍तर पर मशाल जुलूस निकाला। इस जुलूस में हजारों की संख्‍या में लोग शामिल हुए। गांव के 200 परिवारों के लोगों ने खदान आंवटन का विरोध किया। जुलूस में शामिल महिलाओं ने कहा कि हम आखरी दम तक इस प्रोजेक्‍ट का विरोध करेंगे क्‍योंकि यहां के जंगलों के कटने से हमारी रोजी-रोटी ही चली जाएगी।


विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन

Shares