असमानता अब चरम की ओर…?

 

दुनिया में बढ़ती असमानता अब चरम की ओर जाती दिख रही है और यह न केवल देशों में अराजकता ही नहीं, अपितु अपराधों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी का कारण भी बन सकती है। आक्सफैम ने वल्र्ड इकॉनोमिक फोरम की वार्षिक बैठक के दौरान अपनी वार्षिक असमानता रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि दुनिया के एक फीसदी अमीरों की दौलत बीते दो सालों में दुनिया के बाकी 99 फीसदी लोगों की तुलना में करीब दोगुनी तेजी से बढ़ी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के अमीरों की दौलत हर दिन 22 हजार करोड़ रुपए हर दिन बढ़ी है। वहीं दूसरी तरफ दुनिया के 170 करोड़ मजदूर उन देशों में रहते हैं, जहां महंगाई, मजदूरी से ज्यादा है।
सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2020 से दुनिया में करीब 42 ट्रिलियन यूएस डॉलर की संपत्ति कमाई गई है, जिसमें से करीब दो तिहाई संपत्ति दुनिया के सिर्फ एक फीसदी अमीरों के हिस्से में गई है। पिछले दशक में दुनिया के एक फीसदी अमीरों ने दुनिया भर में कमाई गई कुल संपत्ति में से आधी पर कब्जा किया था। दुखद पहलू यह है कि बीते 25 सालों में अमीरों और गरीबों के बीच में असमानता ज्यादा देखने को मिली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां एक आम आदमी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में रोजाना बलिदान दे रहा है, वहीं अमीर लोग दिनों दिन और अधिक अमीर होते जा रहे हैं। बीते दो वर्ष अमीरों के लिए खास तौर पर फायदेमंद रहे हैं।
कोरोना महामारी के दौरान कमाई गई कुल संपत्ति में से 26 ट्रिलियन यूएस डॉलर पर पूरा कब्जा एक फीसदी अमीरों का रहा था। वहीं बाकी 99 फीसदी लोगों के हिस्से में 16 ट्रिलियन डॉलर की ही संपत्ति आई थी। अमीरों की संपत्ति में साल 2022 के दौरान तेजी से बढ़ोतरी हुई। इसकी वजह बढ़ती महंगाई और ऊर्जा क्षेत्र से मिलने वाला मुनाफा रहा। रिपोर्ट के अनुसार, बीते साल 95 फीसदी खाद्य और उर्जा कंपनियों ने दोगुने से भी ज्यादा मुनाफा कमाया है। यानि कह सकते हैं कि कोरोना में कमाई के नाम पर जनता को लूटा गया है।
दुनिया में अमीरी और गरीबी के फर्क को लेकर लंबी बहस छिड़ी हुई है। और तमाम कथित परियोजनाओं के बावजूद भारत जैसे विकासशील देश में भी यह अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। ऑक्सफैम की हालिया रिपोर्ट में इससे जुड़े कई खुलासे भी हुए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 21 सबसे अमीर अरबपतियों के पास मौजूदा समय में देश के 70 करोड़ लोगों से ज्यादा दौलत है। 2020 में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद से नवंबर 2021 तक जहां अधिकतर भारतीयों को नौकरी संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा और सेविंग्स बचाने के लिए जूझना पड़ा, वहीं पिछले साल नवंबर तक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 121 फीसदी का इजाफा देखा गया। कोरोना महामारी के इस दौर में भी भारत के अरबपतियों की दौलत में प्रतिदिन 3 हजार 608 करोड़ रुपये हर दिन बढ़े हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में भारत के पांच फीसदी लोगों का देश की कुल संपत्ति में से 62 फीसदी हिस्से पर कब्जा था। वहीं, भारत की निचली 50 फीसदी आबादी का देश की महज तीन फीसदी संपत्ति पर कब्जा रहा। भारत में जहां 2020 में अरबपतियों की संख्या 102 थी, वहीं 2022 में यह आंकड़ा 166 पर पहुंच गया है। 100 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति 660 अरब डॉलर (करीब 54 लाख 12 हजार करोड़ रुपये) के पार जा चुकी है। विश्लेषण के अनुसार अगर भारतीय अरबपतियों की कुल संपत्ति पर सिर्फ दो फीसदी टैक्स ही लगाया जाए तो इससे अगले तीन साल तक कुपोषण का शिकार बच्चों के लिए सभी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।
पिछले 10 सालों में भारत में पैदा हुई संपत्ति के गैर-बराबर बंटवारे के मुद्दे पर इसमें कहा गया है कि 2012 से 2021 के बीच भारत में जितनी भी संपत्ति अस्तित्व में आई, उसका 40 प्रतिशत देश के सबसे अमीर एक फीसदी के हाथ में गया और 50 फीसदी जनता के हाथ में महज तीन फीसदी संपत्ति ही आई है। हम जहां बराबरी की बात कह रहे हैं, वहां आर्थिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। आत्मनिर्भर भारत का मतलब क्या एक प्रतिशत अमीरों को ही आगे बढ़ाना है? वैसे तो हो सकता है कि हमारे देश के सरमायेदार इस रिपोर्ट को ही खारिज कर दें। उनकी योजनाएं गरीबों तक कितनी पहुंच रही हैं, शायद इसके आंकड़े भी फर्जी ही लगते हैं, क्योंकि आक्सफेम की रिपोर्ट में फर्जीवाड़े की गुंजाइश बहुत कम ही होती है। सर्वे तो हमारे यहां ज्यादा फर्जी और हवा में ही किए जाते हैं। इस रिपोर्ट की आलोचना भले ही की जाए, लेकिन ये आंकड़े केवल भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में एक नई जंग की तैयारी का संकेत दे रहे हैं। बढ़ती आर्थिक असमानता लूट और चोरी जैसे अपराधों के साथ ही अन्य तमाम अपराधों में भी बढ़ोत्तरी का कारण बनती है और अराजकता को भी जन्म देती है। श्रीलंका और पाकिस्तान के हालात केवल वहां के राजनीतिक कारणों से नहीं बने हैं। और भी कई देशों में अंदरूनी हालत खराब होती जा रही है। इसे नहीं रोका गया, तो विश्व शांति के लिए खतरा और बढ़ जाएगा।
-संजय सक्सेना

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