अरुण दीक्षित:
हर दीन दुखी की मनोकामना पूर्ण करने वाले भगवान महाकाल इन दिनों बड़े धर्मसंकट में बताए जा रहे हैं!सुना है कि वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं किसकी मनोकामना पूर्ण करें..राजा की या फिर महाराजा की!क्योंकि दोनों ने उनसे ही मांग की है!दोनों ही भगवान को अपने पक्ष में देखना चाहते हैं।
यह अलग बात है राजा महाराजा की लड़ाई में प्रदेश के मुखिया भी कूद गए हैं। और उन्होंने एक बार फिर “गद्दार” शब्द को महाराज से जोड़ दिया है।यह शब्द सदियों से महाराज के परिवार के लिए एक घातक पीड़ा की तरह रहा है।
यहां बात ग्वालियर के “महाराज” और वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके जागीरदार राघौगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह की हो रही है।
महाकाल को बीच में लाने से पहले आपको यह बता दूं कि करीब साढ़े तीन साल पहले तक महाराज सिंधिया कांग्रेस के बड़े नेता थे।2018 का विधानसभा कांग्रेस ने उनके चेहरे को आगे करके लड़ा था।वे चुनाव अभियान समिति के मुखिया थे।तब सरकार भी कांग्रेस की बनी थी।कमलनाथ मुख्यमंत्री बनाए गए थे।
करीब सवा साल तक सरकार कांग्रेसी शैली में चलती रही।इस बीच सिंधिया गुना से लोकसभा चुनाव हार गए।यह उनके लिए बहुत बड़ा झटका था।उससे भी बड़ी बात यह थी कि सिंधिया उस व्यक्ति से चुनाव हारे थे जो किसी जमाने में उनका ही प्रतिनिधि रहा था।
चुनाव हारने के बाद सिंधिया उस पूरी पीड़ा से गुजरे जिससे बीजेपी का वर्तमान नेतृत्व अपने हर विरोधी को गुजारता है।प्रदेश में तो महाराजा की मानहानि हुई ही,दिल्ली में भी उनसे सरकारी घर खाली करा लिया गया।
उसी समय राज्यसभा के चुनाव भी आ गए।कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का भी कार्यकाल खत्म हो रहा था।
दिग्विजय चाहते थे कि उनको दुबारा राज्यसभा भेजा जाए!जबकि सिंधिया चाहते थे कांग्रेस नेतृत्व उन्हें राज्यसभा भेज कर उनका खोया सम्मान वापस दिलाए।हालांकि अगर मुख्यमंत्री कमलनाथ चाहते तो कांग्रेस राज्यसभा की दो सीटें जीत सकती थी।लेकिन हुआ यह कि कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को दुबारा प्रत्याशी घोषित कर दिया।
इस बीच घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला कि गुजरात के गायकवाड राजघराने के दामाद ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने वह कदम उठाया जिसकी किसी को कल्पना नही थी।वे अपने साथी नेताओं के साथ अपने पिता की पार्टी (कांग्रेस) छोड़ अपनी दादी मां की पार्टी (बीजेपी) में चले गए!
फिर वही हुआ जो होना था।कमलनाथ कुछ दिन के संघर्ष के बाद “शहीद” हो गए।उनकी सरकार गिर गई।उधर 15 महीने पहले हारे शिवराज सिंह फिर मुख्यमंत्री बन गए।
राज्यसभा चुनाव में दिग्विजय और ज्योतिरादित्य दोनों ही राज्यसभा में पहुंचे।लेकिन अलग अलग दलों से।बाद में सिंधिया केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।उनके साथ कांग्रेस छोड़ने वाले ज्यादातर नेता शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्य पहले ही बन गए थे।
इस दल बदल का एक मजेदार पहलू यह भी था खुद दिग्विजय सिंह के करीबी कुछ विधायक भी सिंधिया के साथ बीजेपी में चले गए थे।
उसके बाद से ही कमलनाथ और पूरी कांग्रेस सिंधिया को “गद्दार” कहती आ रही है।सिंधिया के जागीरदार दिग्विजय ने भी कई मौकों पर अपने महाराज को इसी श्रेणी में रखा।
पिछले तीन साल में लगातार सिंधिया परिवार पर हमले होते रहे हैं।परिवार पर “गद्दारी” के आरोप भी खुलकर लगे।चाहे झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का मामला हो या महात्मा गांधी की हत्या में प्रयोग की गई पिस्तौल का,सिंधिया रियासत का नाम हमेशा जोड़ा जाता रहा है।कांग्रेस का हर छोटा बड़ा नेता उनके लिए “गद्दार” शब्द का इस्तेमाल करता रहा है।
अब बात महाकाल के संकट की! दरअसल दो दिन पहले दिग्विजय उज्जैन के दौरे पर थे।वहां मीडिया ने उनसे पूछ लिया कि यदि इस बार भी चुनाव जीतने के बाद सिंधिया की तरह कोई नेता बीजेपी में चला गया तो क्या करोगे!
इस पर दिग्विजय ने भगवान महाकाल के सामने अपनी झोली फैलाई!उन्होंने कहा – हे प्रभु ..हे महाकाल..कांग्रेस में कोई दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया पैदा न हो!!
यह खबर जैसे ही ग्वालियर महाराज तक पहुंची,उन्होंने तत्काल ट्वीट पर चह चहाते हुए लिखा – हे प्रभु महाकाल दिग्विजय जैसे देशविरोधी और मध्यप्रदेश के बंटाधार भारत में पैदा न हों!
आपको यह भी बता दें कि महाकाल की नगरी उज्जैन ग्वालियर राज्य का ही हिस्सा थी।आज भी महाकाल की सावन में निकलने वाली सवारी का स्वागत सिंधिया राज परिवार का मुखिया ही करता है।
राजा और महाराजा की इस गुहार पर महाकाल कोई फैसला कर पाते इससे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह मैदान में कूद पड़े!सिंधिया की वजह से ही अपना खोया “ताज”
(मुख्यमंत्री की कुर्सी) हासिल करने वाले शिवराज ने कहा – सिंधिया गद्दार नही खुद्दार हैं।यही नहीं एमपी के नए “बॉस”(जैसा कि उनके समर्थकों ने जन्मदिन पर भोपाल में पोस्टर लगाकर बताया) बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो दिग्विजय को मतिभ्रष्ट तक बता दिया।
यहां एक मजे की बात यह है कि इस बार दिग्विजय ने अपने महाराज सिंधिया को गद्दार नही कहा था।लेकिन शिवराज ने बचाव में कह दिया कि वे गद्दार नही खुद्दार हैं।
रोचक तथ्य यह भी है कि कुछ साल पहले खुद शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया राजपरिवार की “गद्दारी” का उल्लेख चुनाव प्रचार में किया था।तब सिंधिया कांग्रेस के प्रमुख नेता थे।
विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे के निधन के बाद भिंड जिले की अटेर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था।शिवराज मुख्यमंत्री की हैसियत से बीजेपी प्रत्याशी अरविंद भदौरिया का चुनाव प्रचार करने गए थे।उन्होंने अपने भाषण में सिंधिया की गद्दारी का जिक्र किया।
शिवराज के बयान का तब कांग्रेस के साथ साथ उनके मंत्रिमंडल की वरिष्ठ सदस्य और ज्योतिरादित्य की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया ने भी विरोध किया था।बाद में बीजेपी वह उपचुनाव हार गई थी।
यह भी संयोग है कि इस बार भी जो बात दिग्विजय ने इशारों में कही उसे शिवराज ने खुल कर कहा है।
अब फिर महाकाल की बात! चूंकि राजा और महाराजा दोनों उनके दरबार में अपनी अपनी गुहार लगाई है इसलिए उम्मीद की जाती है कि फैसला वे ही करेंगे!उनका फैसला क्या होगा,कब होगा,यह तो वे ही जाने!लेकिन सुना है कि वे असमंजस में हैं!उनके कुछ पुजारियों के “पेट में दर्द” की भी खबर है। वे चाहते हैं कि उनके “राजा” को राजनीति में न घसीटा जाए!
इस सबके बीच एक बात तो तय है कि महाकाल के फैसले के बारे में शायद ही कभी कोई जान पाए!कौन कहां पैदा होगा इसका पता बताएगा कौन?यह तभी संभव होगा जब कोई अपने पूर्व जन्म का किस्सा सुनाए!
फिलहाल महाकाल के साथ साथ सिंधिया की पीठ पर चिपका “गद्दारी” का पर्चा और दिग्विजय के नाम से जुड़ा “बंटधार” चर्चा में है।महाकाल की माया महाकाल ही जाने..लेकिन इतना तय है कि अपना एमपी गज्जब है।यहां राजा और महाराजा दोनों उन्हीं के सामने खड़े हैं!है न गज्ज़ब!