अडानी के 20 हजार करोड़ रुपये के एफपीओ
लेने वालों की सेबी के पास जानकारी नहीं: रिपोर्ट
नई दिल्ली: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कहा है कि उसके पास अडानी एंटरप्राइजेज के 20,000 करोड़ रुपये के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) की सदस्यता लेने वालों की जानकारी नहीं है. बिजनेस स्टेंडर्ड ने अपनी रिपोर्ट में इस संदर्भ में जानकारी दी है.पूंजी बाजार नियामक ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में यह बात कही. अखबार के मुताबिक, आवेदन में निवेशक-वार और राशि-वार सब्सक्रिप्शन विवरण और एफपीओ को रद्द करने का कारण मांगा गया था.
प्रसेनजीत बोस ने 31 जनवरी और 8 फरवरी को दो आरटीआई आवेदन दायर किए थे. रिपोर्ट के अनुसार, इन दो आवेदनों के लिए सेबी की प्रतिक्रिया प्रस्तुत की गई थी.मुख्य लोक सूचना अधिकारी ने पहले आरटीआई आवेदन पर जानकारी देने से इनकार कर दिया, जिसमें अडानी एंटरप्राइजेज की शेयर बिक्री के विवरण की मांग की गई थी. अखबार ने बताया कि बोस ने इस आधार पर अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर की थी.
समाचार पत्र के अनुसार अपीलीय प्राधिकारी ने अपील को खारिज करते हुए कहा, ‘प्रतिवादी ने उपरोक्त प्रश्नों के जवाब में सूचित किया है कि मांगी गई जानकारी सेबी के पास उपलब्ध नहीं है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘जहां मांगी गई जानकारी किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है और जहां ऐसी जानकारी को किसी कानून या सार्वजनिक प्राधिकरण के नियमों या विनियमों के तहत मेंटेन रखने की आवश्यकता नहीं है, अधिनियम सार्वजनिक प्राधिकरण पर ऐसी गैर-उपलब्ध जानकारी एकत्र करने और फिर इसे आवेदक को उपलब्ध कराने का दायित्व नहीं डालता है.’
दूसरे आरटीआई आवेदन में हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों पर सेबी द्वारा की गई किसी भी जांच का विवरण मांगा गया था. इसमें यह भी पूछा कि क्या सेबी को अडानी समूह के खिलाफ शेयर की कीमतों में धोखाधड़ी, लेखा धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग आदि के संबंध में कोई शिकायत मिली थी.
अखबार ने बताया कि इस जानकारी को भी प्राधिकरण द्वारा यह कहते हुए देने से इनकार कर दिया गया कि ‘वे स्पष्टीकरण या राय मांगने की प्रकृति की हैं और इसे ‘सूचना’ के रूप में नहीं देखा जा सकता है.’अखबार ने सेबी के हवाले से लिखा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के अडानी समूह की कंपनियों में जोखिम की जानकारी नियामक द्वारा नहीं रखी जाती है.
कड़ियों का जाल
24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें अडानी समूह पर स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे. जिसके बाद कंपनी के शेयरो में भारी गिरावट देखी गई थी.इसके बाद 1 फरवरी को समूह ने 20,000 करोड़ रुपये के अपने पूरी तरह सब्सक्राइब्ड हो चुके एफपीओ को वापस ले लिया था.
फोर्ब्स ने फरवरी में बताया था कि अडानी एंटरप्राइजेज के एफपीओ में शेयर खरीदने वाले तीन निवेश फंडों का समूह से संबंध है.फोर्ब्स ने अपने विश्लेषण में कहा था कि ‘मॉरीशस स्थित दो फंड, आयुष्मान लिमिटेड और एल्म पार्क फंड और भारत के एविएटर ग्लोबल इन्वेस्टमेंट फंड, एंकर निवेशकों के लिए उपलब्ध सभी शेयरों का 9.24 फीसदी साथ खरीदने के लिए सहमत हुए थे. यह प्रतिशत केवल 66 मिलियन डॉलर के निवेश का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन अडानी को अपने से संबद्ध पक्षों से मदद मिलने का अधिक प्रमाण है.’
एंकर निवेशक संस्थागत निवेशक होते हैं, जिन्हें शेयर बिक्री खुलने के एक दिन पहले शेयर आवंटित किए जाते हैं. एंकर निवेशकों के निवेश से खुदरा निवेशकों में विश्वास पैदा होता है.गौतम अडानी ने कहा था कि शेयर बिक्री को ‘बाजार की अस्थिरता’ के कारण बंद करना पड़ा और उन्होंने निवेशकों को उनके पैसे वापस करने का आश्वासन दिया था.
सेबी गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी से संबंधित ऑफशोर कंपनियों के साथ अडानी समूह के संभावित ‘संबंधित पार्टी’ लेनदेन की जांच कर रहा है. हालांकि, हिंडनबर्ग द्वारा अपनी रिपोर्ट जारी करने से बहुत पहले जुलाई 2021 में सेबी ने अडानी समूह की छह फर्मों में शेयर रखने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के संरक्षकों को पत्र लिखकर उनके ‘अंतिम लाभार्थी मालिकों’ के बारे में जानकारी मांगी थी.
इन फंडों में अल्बुला इंवेस्टमेंट फंड, क्रेस्टा फंड और एपीएमएस इंवेस्टमेंट फंड शामिल थे.इन फंडों का एक ही पता है, जैसा कि द वायर द्वारा रिपोर्ट किया गया था. रिपोर्ट में विश्लेषण किया गया था कि समूह की कुछ कंपनियों में समूह के अधिकांश निवेश ऑफशोर फंड से आए हैं.
मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट द्वारा किए एक विश्लेषण के अनुसार, ‘यदि आप इन (ऑफशोर) फंडों को हटा दें, तो अडानी एंटरप्राइजेज में प्रभावी (सार्वजनिक) शेयरहोल्डिंग गिरकर केवल 10 प्रतिशत पर आ जाती है.’ अडानी ट्रांसमिशन में, ‘प्रभावी सार्वजनिक बहाव लगभग 7-8 फीसदी है.’
गौरतलब है कि सूचीबद्ध कंपनियों को 25 फीसदी न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी बनाए रखने की जरूरत होती है. सूचीबद्ध होना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह किसी कंपनी को बाजार से धन जुटाने की अनुमति देता है.हालांकि, इन फंडों का स्वामित्व अज्ञात है, क्योंकि मॉरीशस एक टैक्स हैवन है.