प्रकाश भटनागर:
डॉ. मिश्रा की पीड़ा एक और है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आयी। कमलनाथ के शपथ लेने के बाद से मिश्रा राज्य में फिर BJP की सरकार बनाने के अपने तई सभी प्रयास करते रहे और इस दौरान उनकी एक निगाह श्यामला हिल्स पर बने मुख्यमंत्री निवास पर भी जाहिर है कि लगी हुई थी। सरकार तो गिरी, लेकिन उसका इकलौता तत्व बनकर ज्योतिरादित्य सिंधिया हीरो बन गए।
विश्लेषण: क्या गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा अब कैलाश विजयवर्गीय की राह पर आगे बढ़ गए हैं। कैलाश विजयवर्गीय ने शिवराज मंत्रिमंडल में असहज स्थिति में आने के बाद सरकार से किनारा कर संगठन का रास्ता पकड़ लिया था। सरकार में असहज तो नरोत्तम मिश्रा भी नजर आ रहे हैं लेकिन क्या वे उस रास्ते पर आगे बढ़ पाएंगे, जिस पर कैलाश विजयवर्गीय एक पहचान बनाने में भी कामयाब हो गए। गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के प्रशंसक उन्हें सचमुच नरों में उत्तम मानते हैं। मगर लगता है कि गृह मंत्री खुद ही अपने सियासी ग्रह बिगाड़ने पर आमादा हैं। और अगर ऐसा ही रहा तो उनके मौजूदा उत्तम दिन खतरे में पड़ने के संकेत हैं। मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में जो अमंगलकारी घटनाक्रम हुए, वह शिवराज के लंबे कार्यकाल में एक नई बात हैं। हां, ये जरूर होता रहा है कि यदि कोई मंत्री सत्ता के शीर्ष से नाराज है तो फिर वह नौकरशाही की बैंड बजाकर उसका शोर अपने आका के कान तक पहुंचा देता है।
केबिनेट में नरोत्तम ने जो मामला उठाया था तकनीकी तौर पर उसमें वे सही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हैं लेकिन इस मामले में शायद वे खुद को सुपर सीएम प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर गए। पर हर बार विवाद के धागे के अंतिम छोर को संगठन के दरवाजे पर बांध देना आत्मघाती साबित हो सकता है। कल वल्लभ भवन से तमतमाते हुए निकले मिश्रा सीधे भाजपा प्रदेश मुख्यालय में वीडी शर्मा और सुहास भगत से मिलने पहुंच गए। किसी अखबार के डिजीटल एडिशन में यह खबर भी छप गई कि वीडी ने नाराज नरोत्तम को मनाया। विष्णुदत्त शर्मा या सुहास भगत ने नरोत्तम को कितना सुना, कितना अनसुना किया, कितना उन्होंने अपना दुखड़ा रोया, ये तीनों ही जाने। हो सकता है अपने तैश में आने को उन्होंने संगठन में जस्टिफाई करने की कोशिश की हो। लेकिन लगता नहीं कि सरकार के मामले में संगठन तत्काल कोई सीख शिवराज को देने निकल पड़ा होगा। मीडिया तमाम ज्ञात कारणों से मंगलवार वाली घमासान की पूरी खबर नहीं छाप सका। मगर प्रकाशित और प्रसारित अर्द्ध सत्य से भी यह तो पूरी तरह सामने आ गया कि बैठक में दरअसल हुआ क्या होगा।
डॉ. मिश्रा की पीड़ा एक और है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आयी। कमलनाथ के शपथ लेने के बाद से मिश्रा राज्य में फिर BJP की सरकार बनाने के अपने तई सभी प्रयास करते रहे और इस दौरान उनकी एक निगाह श्यामला हिल्स पर बने मुख्यमंत्री निवास पर भी जाहिर है कि लगी हुई थी। सरकार तो गिरी, लेकिन उसका इकलौता तत्व बनकर ज्योतिरादित्य सिंधिया हीरो बन गए। मामला भाजपा का है। इसलिए सिंधिया के इस आगमन की नागपुर तथा दिल्ली के अलावा और किसी को भनक भी नहीं लग सकी। यह जरूर हुआ होगा कि शिवराज को इस घटना का हिंट दे दिया गया होगा। बाकी नरोत्तम सहित किसी अन्य भाजपाई को इसकी जानकारी रही होगी, ये कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ऐसे में जब तक सिंधिया एपिसोड ने हुकूमत पलटी, तब तक नरोत्तम के प्रयास भी पूरी तरह एक्सपोज होकर असफल हो चुके थे। फिर जब सिंधिया के कारण पांसा पलटा तो चौथी बार भी शिवराज ही नेतृत्व के लिए उपयुक्त पाए गए। महत्वाकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ होने का फर्स्टेशन ऐसे भी सामने आता है। नंबर दो तो नरोत्तम फिर भी माने ही जाते हैं लेकिन शायद वे सुपीरियरटी काम्पलेक्स के शिकार भी हो गए। इसीलिये मंगलवार को जो गुस्सा फूटा, हो सकता है कि उसके लिए आवश्यक रसद का बंदोबस्त शिवराज की वजह से ही हुआ हो।
सभी की काम करने की अपनी-अपनी शैली होती है। शिवराज से टकराव तो कैलाश विजयवर्गीय का भी हुआ था। इंदौर में सार्वजनिक रूप से शोले फिल्म के ठाकुर के कटे हाथ वाली विजयवर्गीय की टिप्पणी इसी से उपजी तकलीफ का नतीजा थी। होने यह भी लगा था कि मां अहिल्या की इस नगरी में कैलाश के इर्द-गिर्द उनके राजनीतिक विकल्पों की नयी फसल खड़ी कर दी गयी थी। बहरहाल, कैलाश विजयवर्गीय जल्दी ही हवा का रुख भांप गए। उन्होंने कोई गलतफहमी नहीं पाली। शिवराज मंत्रिमंडल से अलग हुए। अमित शाह (Amit Shah) से उनकी नजदीकी थी ही लेकिन हरियाणा (Hariyana) में सरकार (Government) बनवाने का करिश्मा कर उन्होंने संगठन की गुड बुक में अपना नाम दर्ज करवा लिया।
परिणाम यह कि इंदौर से महू का रुख करने के बीच विजयवर्गीय ने बेटे आकाश (Akaksh) के लिए राजनीति के आकाश में परवाज भरने का इंतजाम करवा दिया। विजयवर्गीय से जुड़ा ये इतना लंबा फ्लैशबैक (flashback) इसलिए कि नरोत्तम भी कहीं न कहीं उनके ही नक़्शे-कदम पर चलने की ताक में दिख रहे हैं। वे कई मौकों पर शिवराज के लिए अप्रत्यक्ष रूप से विजयवर्गीय जैसे तेवर दिखाते हैं और फिर हर बार ऐसा होने के बाद वे दन्न से भाजपा संगठन में उस दरवाजे पर प्रकट हो जाते हैं, जिसके भीतर संघ का कोई रसूखदार चेहरा बैठा होता है। इससे नरोत्तम ये भ्रमपूर्ण सन्देश (delusional message) और संकेत देने में सफल हो जाते हैं कि वे जो कर रहे हैं, उसे दरअसल संघ की शह मिली हुई है। लेकिन यह RSS का मामला है। जो इस्तेमाल होना नहीं जानता। इसलिए इस संभावना में दम दिखता है कि हर विवाद के बाद संघ की यह परिक्रमा अब मिश्रा के पैरों में छाले पैदा करके उनके और आगे चलने की ताकत को कम कर सकती है। क्योंकि न तो प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और न ही संगठन महामंत्री सुहास भगत और न ही संघ से जुड़ा कोई भी पदाधिकारी यह जोखिम उठाएगा कि मिश्रा की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं (political ambitions) की बलि वो खुद चढ़ जाए। इसलिए आने वाले समय में यदि मिश्रा की सियासी सेहत कुछ खराब दिखने लगे तो किसी को इसके लिए हैरत नहीं होनी चाहिए।
नरोत्तम जी को चाहिए कि अंगारों पर चलने का यह क्रम जरा थाम लें। वरना जिस्म में छाले बनने, उनके कायम रहने और फिर फूटने तक की प्रक्रिया की असहनीय तकलीफ को झेलना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। जहां तक शिवराज का सवाल है, किस्मत और उनकी मेहनत अपनी जगह लेकिन जब तक RSS और नेतृत्व का विश्वास है, उनका बाल बांका होने से रहा। BJP में किसी हो हल्ले का कोई मतलब नहीं है। जिस दिन होना होगा, Shivraj भी बिना किसी हो हल्ले के अगला रास्ता तय कर लेंगे। वे भाजपा और संघ दोनों को ही बेहतर तरीके से जानते हैं। लेकिन अब यह भी कौन कह सकता है कि नरोत्तम कुछ कम जानते हैं?
प्रकाश भटनागर:
मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।साभार
https://www.webkhabar.com/विश्लेषण-narottam-will-have-to-be-expensive-to-walk-on-coals/