( भाग – 1 )
प्रयाग में युक्त उपसर्ग प्र का तात्पर्य प्रकृष्ट तथा याग का अर्थ यज्ञ है। वह विशिष्ट स्थल जहां विशेष प्रकार के यज्ञों को संपन्न किए जाने की कीर्ति चारों दिशाओं में व्याप्त हो, वह प्रयाग है। सनातनियों ( हिंदुओं ) का यह विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।
जब भारत में विदेशी एवं विधर्मी आक्रामक आए, तो उन्होंने कई स्थानों के नाम बदल दिए। इसका प्रमुख उद्देश्य हिंदुओं को अपमानित करना था। इसी मानसिकता के कारण मुगल शासक अकबर ने 1583 में प्रयागराज को बदलकर इलाहाबाद कर दिया था। उत्तर प्रदेश में महंत योगी आदित्यनाथ के नेतृत्वाधीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 16 अक्टूबर 2018 को इलाहाबाद से पुनः प्रयागराज कर दिया। यह हम सभी सनातनियों के लिए गर्व का विषय है।
*श्री रामचरितमानस में प्रयागराज का माहात्म्य*
श्री रामचरितमानस के अयोध्याकांड में भक्त तुलसीदास जी लिखते हैं –
_प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई।_
प्रभु श्री राम जी ने सवेरे प्रातः काल की सब क्रियाएं करके जाकर तीर्थ के राजा प्रयाग के दर्शन किए।
_सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी।।_
_चारि पदारथ भरा भंडारू। पुन्य प्रदेस देस अति चारू।।_
उस राजा का सत्य मंत्री है, श्रद्धा प्यारी स्त्री है और श्रीवेणीमाधव-सरीखे हितकारी मित्र हैं। चारों पदार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – से भंडार भरा है और वह पुण्यमय प्रान्त ही उस राजा का सुंदर देश है।
_छेत्रु अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहु नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा।।_
_सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा।।_
प्रयाग क्षेत्र ही दुर्गम मजबूत और सुंदर गढ़ ( किला ) है। जिसको स्वप्न में भी ( पापरूपी ) शत्रु नहीं पा सके हैं। संपूर्ण तीर्थ ही उसके श्रेष्ठ वीर सैनिक है, जो पाप की सेना को कुचल डालने वाले और बड़े रणधीर हैं।
_संगम सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मन मोहा।_
_चवंर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा।।_
( गंगा, यमुना और सरस्वती का ) संगम ही उसका अत्यंत सुशोभित सिंहासन है। अक्षय वट छत्र है, जो मुनियों के भी मन को मोहित कर लेता है। यमुना और गंगा की तरंगे उसके ( श्याम और श्वेत ) चवंर हैं। जिनको देखकर ही दुःख और दरिद्रता नष्ट हो जाती है।
_सेवहिं सुकृती साधु सुचि पावहिं सब मनकाम।_
_बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम।।_
पुण्यात्मा, पवित्र साधु उसकी सेवा करते हैं और सब मनोरथ पाते हैं। वेद और पुराणों के समूह भाट हैं, जो उसके निर्मल गुणगणों का बखान करते हैं।
_को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।_
_अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा।।_
पापों के समूहरूपी हाथी को मारने के लिए सिंहरूप प्रयागराज का प्रभाव ( माहात्म्य ) कौन कह सकता है ? ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के सागर रघुकुलश्रेष्ठ श्री राम जी ने भी सुख पाया।
_कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई। श्रीमुख तीर्थराज बड़ाई।।_
उन्होंने ( श्रीराम ) अपने श्री मुख से सीता जी, लक्ष्मण जी और सखा गुह से तीर्थराज की प्रशंसा की।
ऐसे पावन प्रयागराज में कौन जाना नहीं चाहेगा ?