मनुस्मृति पुरातन भारतीय सामाजिक व्यवस्था का शास्त्र हैं।

 

 

मनुस्मृति को लेकर वे लोग बहुत अधिक बोल जाते हैं, जिन्होंने पढ़ना तो दूर उसे कभी देखा भी नहीं है।

हम सब प्राय: प्रतिदिन ही देखते रहते हैं कि ग्रन्थ को बिना ही पढे लोग उस पर अपना फतवा जारी कर देते हैं।

 

मनुस्मृति की एक पंक्ति को पकड़ लाये, पूछने लगे कि क्या यह ठीक है ?

फिर उसे जला दिया।

 

देशकाल को जाने-समझे बिना।

 

एक-दो पंक्तियां उद्धृत करने से ग्रन्थ का तात्पर्य-निर्णय नहीं हो जाता।

वे यह नहीं समझना चाहते कि देशकाल परिवर्तनशील है।

 

और एक देशकाल का सच दूसरे देशकाल में आकर असिद्ध हो जाता है।

अध्ययन-अनुसंधान की परंपरा कोई आज की तो है नहीं, आगे भी बडे-बडे अध्येता थे, जी हाँ, आपसे भी बड़े थे।

 

उन्होंने बहुत विचार करके तात्पर्य-निर्णय के सिद्धान्त निर्धारित किये।

 

उपक्रमोपसंहारावभ्यासोपूर्वताफलं ।

अर्थवादोपपत्ती च हेतुस्तात्पर्य-निर्णये ।

 

*उपक्रम [ भूमिका ] उपसंहार, अभ्यास [ एक सिद्धान्त को प्रकार-प्रकार से कहना ] अपूर्वता [ मौलिकता ] फल [ चरितार्थता ] अर्थवाद [ पुष्टि-या समर्थन-वाक्य ] उपपत्ति [ युक्ति या तर्क ]*

 

ये छह तत्त्व हैं, जिनसे अध्येता किसी ग्रन्थ का तात्पर्य-निर्णय करते हैं।

 

नस्लवादी इतिहासकारों ने कुछ इस तरह व्याख्या की,

कि किसी एक आदमी ने मनुस्मृति लिखी और सारे समाज ने डंडे के जोर से उसे मान लिया।

 

क्या ऐसा संभव है?

 

लाखों करोड़ों आदिवासी हैं, जो वर्णव्यवस्था में आज भी नहीं हैं।

 

*मनु शब्द कितना व्यापक है कि मनु शब्द के बिना मानव शब्द की सिद्धि नहीं हो सकती। मानव शब्द से फिर मानवता शब्द बनता है।*

 

भारत के प्राचीन साहित्य [ ऋग्वेद आदि ] में मनु को मानवजाति का पिता अथवा आदिपुरुष माना गया है।

वैवस्वत मनु को शतपथ ब्राह्मण में शासक भी कहा गया है।

ऋग्वेद में उल्लेख है कि मनु ने प्रकाश के लिये अग्नि की स्थापना की थी।ऋग्वेद के अष्टम मंडल में वैवस्वत मनु के रचे महत्त्वपूर्ण सूक्त हैं।

मनु की कथा जल-प्रलय से जुड़ी हुई है ।

उत्तरवैदिक साहित्य में यह कथा भिन्न-भिन्न प्रकार से कही गयी है।

कहीं -कहीं तो यह कथा इस प्रकार से है कि देवराज के आदेश से मनु को नौका के द्वारा कहीं भेजा गया था, किन्तु इसी बीच जलप्लावन हुआ और अधिकांश धरती डूब गयी, जिसमें देव-सभ्यता जल में समा गयी।

मनु नाव में थे और एक मत्स्य के आघात से इनकी नौका हिमालय के नौबंधन नामक शिखर पर जाकर रुक गयी।

यहाँ उल्लेखनीय बात यह है कि जलप्लावन की कथा केवल भारतीय-साहित्य में ही नहीं है।

यूनानी साहित्य में ड्यूक्लियन की कहानी यही है।

बेबीलोनिया के साहित्य में जिसथ्रस की कहानी में ऐसा ही जलप्लावन है। बाइबिल में नूह की कहानी है, जिसमें यह नाव अईट पर्वत पर जा कर रुकती है। कुरान में इस पर्वत का नाम जूदी है।

जलप्लावन की कथा किसी न किसी रूप में चीन, ब्रह्मा, असीरिया, न्यूगिनी आदि के पुरा साहित्य में भी है। दक्षिण एशिया की कहानियों में बहुत समानता है। ईसा से ३१०० वर्ष पूर्व जलप्रलय का अनुमान किया गया है।

इस कथा को लेकर जयशंकरप्रसाद ने कामायनी नामक महाकाव्य लिखा है। भारत के पुराणों में राजाओं की वंशावलियाँ मनु से ही प्रारंभ हुई हैं।

लेकिन भारत के पुराणों में मनु एक वैवस्वत ही नहीं हैं ।

चौदह मनुओं के नाम आते हैं >>>>>

स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, सावर्णि आदि।

भारतीय कालगणना में मन्वन्तर का बहुत महत्त्व है। एक मनु एक मन्वन्तर का आदिपुरुष है।

इनके अतिरिक्त प्राचेतसमनु भी हैं।जिन्होंने राजनीति पर एक ग्रन्थ लिखा था। एक मनु कृशाश्व ऋषि का पुत्र था। एक मनु लोमपाद राजा का बेटा था। यह यादव था।

वह कौन सा मनु था, जिस मनु ने स्मृति भी लिखी थी, जिसका उल्लेख निरुक्त में है और उसके अनुसार पिता की संपत्ति में पुत्र और पुत्री का समान अधिकार है।

लेकिन यह स्मृति यास्क के पहले विद्यमान थी।

वर्तमान में उपलब्ध मनुस्मृति किसकी रचना है ? वाचिकपरंपरा से इसने कब लिखित रूप ग्रहण किया ? इसमें प्रक्षिप्त अंश कब-कब जुड़ते रहे ? यह प्रामाणिक रूप में नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें बहुत बाद के संदर्भ [ बुद्ध जिन आ्दि ] जुड़े हुए हैं, यदि यह रचना प्राचीन होती तो ऐसे संदर्भ कहाँ से आ जाते ?

अनेक विद्वानों का मत तो यह है कि यह तीसरी शताब्दी के आसपास की रचना है, जिसमें यथासमय प्रक्षिप्त अंश भी जुड़ते रहे। रांगेयराघव का तो स्पष्ट मत है कि -“मनुस्मृति में जो नियम-व्यवस्था मिलती है, वह परवर्तीकाल के किसी मनु की नियम-व्यवस्था का और भी परवर्ती तथा परिवर्तित रूप है, वैवस्वत मनु के नियमों के लिये हमें वेद तथा पौराणिक-कथाओं में प्रतिबिंबित समाज को देखना चाहिये।”

 

 

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