जिस प्रकार भोर की प्रथम सूर्य की किरणों के साथ कुछ पुराने फूल झड़ जाते हैं और नयें फूल खिल उठते हैं व प्रकृत्ति को सुवासित करते हैं, कुछ सूखे पत्ते पेड़ से जमीन पर गिर जाते हैं और नयीं कोंपलें फूट पड़ती हैं व प्रकृत्ति को श्रृंगारित करती हैं।
उसी प्रकार एक नया दिन एक नईं ऊर्जा और एक नयें विचार के साथ आता है। एक नया दिन आता है तो साथ में नया उल्लास और नईं आश लेकर भी आता है ताकि हम अपने जीवन को नयें विचारों से सुवासित एवं उल्लासित कर सकें।
समय के साथ साथ जो पुराना है, जो ताज्य है और जो अनावश्यक है उसका परित्याग करना भी अनिवार्य हो जाता है। जिस प्रकार सफेद मार्बल पर रोज रोज सफाई एवं धुलाई की जरूरत होती है ताकि उसकी चमक बनी रहे। उसी प्रकार मानव मन को भी रोज रोज सद्विचार और सत्संग रूपी साबुन से सफाई की जरूरत होती है ताकि कुविचारों की कलुषिता को अच्छे से साफ करके जीवन को उज्ज्वलता और धवलता प्रदान की जा सके। जिससे विचारों की कलुषिता का मार्जन हो सके।
अगर घड़े का पानी रोज का रोज साफ न किया जाए तो हम पाएंगे कि धीरे-धीरे वो पानी सड़ रहा है और जहर बनता जा रहा है। इसी प्रकार अगर बुद्धि को परिमार्जित करते हुए उसमें भी रोज के रोज साफ करके कुछ श्रेष्ठ विचार, कुछ सद्विचार न भरे जाएं तो हमारे वही कलुषित विचार जीवन के लिए जहर बनकर उसकी आत्मिक उन्नति में बाधक बन जाते हैं। सदा सत्संग के आश्रय में रहो ताकि हृदय की निर्मलता और विचारों की पवित्रता बनी रहे।