स्त्रियों के लिए नागा साधु बनने की प्रक्रिया पुरुषों के समान ही है। लेकिन, इसमें कुछ विशेषताएँ और अलग नियम भी होते हैं। महिलाएँ भी अखाड़ा परंपरा का भाग बन सकती हैं और नागा साध्वी (स्त्री नागा साधु) बनकर त्याग, तपस्या और आध्यात्मिकता का जीवन जी सकती हैं।
1- स्त्री नागा साधु बनने की प्रक्रिया:-
(1) सांसारिक जीवन का त्याग (सन्यास ग्रहण):-
* स्त्री नागा साधु बनने के लिए, सबसे पहले महिलाओं को सांसारिक जीवन, परिवार, रिश्तों और भौतिक सुखों का पूर्ण त्याग करना पड़ता है।
* उन्हें, अपने जीवन को भगवान शिव और आध्यात्मिक साधना के प्रति समर्पित करना होता है।
(2) गुरु की शरण में जाना :-
* किसी मान्यता प्राप्त अखाड़े में जाकर, एक गुरु को स्वीकार करना होता है। गुरु ही, उनका मार्गदर्शन करता है और दीक्षा प्रक्रिया में सहायता करता है।
(3) दीक्षा प्रक्रिया (नागा दीक्षा):-
नागा साधु बनने की प्रक्रिया में वीरज होम नामक विशेष यज्ञ होता है, जिसमें दीक्षा ली जाती है। इस प्रक्रिया में उनकी सांसारिक पहचान का अंत माना जाता है।
उन्हें नया नाम और आध्यात्मिक जीवन का लक्ष्य दिया जाता है।
यह प्रक्रिया कुंभ मेले या अन्य विशेष अवसरों पर संपन्न होती है।
(4) भस्म का लेपन:-
* दीक्षा के बाद, स्त्रियाँ अपने शरीर पर भस्म का लेपन करती हैं, जो सांसारिक मोह-माया और मृत्यु के प्रति जागरूकता का प्रतीक है।
(5) नग्नता का त्याग या परंपरागत वस्त्र:-
* पुरुष नागा साधु प्रायः नग्न रहते हैं। लेकिन, स्त्रियों के लिए यह अनिवार्य नहीं है।
* स्त्री नागा साधु साधारण सफेद वस्त्र या भस्म से आच्छादित रहती हैं। यह उनकी सरलता और त्याग का प्रतीक है।
(6) निर्वाण दीक्षा:-
* यह अंतिम चरण है, जिसमें स्त्री साध्वी , अपने बालों का त्याग करती हैं, जो सांसारिक मोह का अंतिम चिह्न होता है।