सूर्य नारायण की पूजा से संसार का हर सुख प्राप्त होता है

सूर्य नारायण की पूजा से संसार का हर सुख प्राप्त होता है। पंच प्रमुख महाशक्तियों में भगवान सूर्य नारायण का महत्वपूर्ण स्थान है उनके बिना इस संसार में जीवन ही नहीं। सूर्य और अग्नि देव प्रत्यक्ष देवता हैं। बड़े से बडा पितृ दोष , बड़े से बड़ा श्राप, कुंडली से दुर्योग भगवान सूर्य के 1008 नाम पाठ से व उनके हृदय पाठ से अपने दुष्प्रभाव को छोड़ देते हैं। नवग्रहों में राजा भगवान सूर्य की सेवा से बिना दैविक सिद्धियां प्रभाव नहीं देतीं इसी कारण हर वर्ण को नित्य सूर्य अर्घ्य देने का नियम बताया गया है। रात्रि कालीन दोषों का परिहार प्रातः सूर्य नारायण को अर्घ्य देने मात्र से हो जाता है। अब आप 30 साल उपद्रव मचाकर कल एक दिन का अहसान वाला पूजा करके इतनी होशियारी वाला फल की कामना ना करें की त्वरित कल के कल फल मिल जायेगा। लेकिन यह अवश्य है की कल से शुभारंभ कर अब नित्य अगर सूर्य पूजन करें तो ध्यान रहें सूर्य नारायण के हर राशि परिवर्तन के साथ आपके समर्पण अनुसार जीवन में भी परिवर्तन होना ही होना है। प्रत्येक मासिक संक्रांति पर भगवान सूर्य का जप तप हवन आपको शीघ्र ही सक्षम बना देगा‌। अतः कल के दिव्य पर्वकाल को व्यर्थ ना जानें दें। स्वयं यथासंभव तीर्थ स्नान जप तप हवन दान आदि करके लाभ लें।

कल से नित्य इन बारहों नाम श्लोक का 12 पाठ हर कोई कर सकते हैं। कल 108 बार कर लिजिए फिर 12 बार रोज।
जिनका लग्न सिंह हो ,राशि सिंह हो, महादशा अंतर्दशा सूर्य नारायण का चल रहा हो वह तो अवश्य इनका पाठ करें।

https://drive.google.com/file/d/1tXV2oamtZcrkSGcKPWfl0xRdv5qV4TmJ/view?usp=drivesdk

श्री सूर्य कवच का मूल पाठ केवल 6 श्लोकों का है। उसकी ही 108 आवृत्ति करनी है। फलश्रुर्ति केवल अंतिम पाठ में एक बार।
कवच का pdf download करें 👇
https://drive.google.com/file/d/1tVujlYqNbWC2GerX12BQ42A8MtzA-Onh/view?usp=drivesdk

श्री सूर्य अष्टोत्तर नामावली pdf 👇
https://drive.google.com/file/d/1tVEWr0ANrbj8YaUvAJVfv0f2ouRehxCd/view?usp=drivesdk

भगवान सूर्य नारायण को नित्य अर्घ्य देकर उनके 12 नामों का पाठ तो अवश्य ही सभी को करना चाहिए चाहे आप किसी भी महाशक्ति के भक्त हों।
स्त्रियों को पीतल के लोटे में जलभर उसमें अक्षत गुड़ व लाल पुष्प डालकर भगवान सूर्य को देखते हुये अर्घ्य देना चाहिए तथा पुरुषों को ताम्र धातु के लोटे में जल भरकर , अक्षत, रोली , गुड़ व लाल पुष्प डालकर।
और कुछ नहीं तो अक्षत व गुड़ डालकर दें अथवा केवल जल से भी अर्घ्य दे सकतें हैं।
नित्य जाप करने वाले साधक साधिका अवश्य करें।

ताम्र पात्र में गुड़ डालने पर या मीठा कुछ भी डालने पर विष हो जायेगा क्या वह स्वीकार्य है ?
अर्घ्य पात्र को बढ़िया से घस कर चमका कर नित्य अर्घ्य हेतु सभी सामग्री डालकर अर्घ्य देना है। उसमें सामग्री डालकर ऐसे ही रख नहीं देना है की आराम से देंगे अर्घ्य। त्वरित कार्य करें। बहुत से वयोवृद्ध साधकों द्वारा यह विषय इसी कारण से कहा गया है की स्त्री ताम्र धातु से ना दें अर्घ्य। वैधव्य योग को बल मिलता है। अतः अर्घ्य पात्र का और समय का विशेष ध्यान रखें।

 

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