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अभी आपके पास सब कुछ है, फिर भी भविष्य के लिए आप धन चाहते हैं। यदि आपको भविष्य का विचार करना ही है तो फिर अधूरा विचार क्यों करो ? मरने के बाद का भी विचार करो |
मरने के बाद क्या दशा होगी ? वहाँ क्या प्रबन्ध होगा ? भविष्य के हरेक काम में सन्देह है, पर मरने में कोई सन्देह नहीं है | मृत्यु अनिवार्य है |
इसलिये बुद्धिमान् व्यक्ति के लिये विचार करने की आवश्यकता है कि मरने के बाद कहाँ जायँगे ? जाना तो अनिवार्य है |
अन्य काम हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता—इस तरह अन्य कार्यों में दो पक्ष हैं, पर मरने में दो पक्ष नहीं हैं |
मरने के बाद का विचार अब नहीं करोगे तो कब करोगे ? नहीं करोगे तो हानि किसकी होगी ?
शरीर अनित्य है, पर शरीर को धारण करने वाला नित्य है |
शरीर के मरने पर हमारी सत्ता नहीं मिटेगी, नहीं तो श्राद्ध-तर्पण आदि क्यों करते हैं ? मरने पर हमारे साथ जाने वाली चीज क्या है—यह कभी सोचा है ? कौन सहायता करेगा ? दो आदमी एक साथ मर जायँ तो भी वे साथ नहीं रहेंगे |
व्यक्ति अकेला ही जायगा |
मरना कोई चाहता नहीं, पर मरना पड़ता है | मरने पर हमारे साथ जाता है—स्वभाव, आदत |
अपना स्वभाव ऐसा बना लो, जिसमें पराधीनता न हो | हरेक परिस्थिति में अपना निर्वाह कर सके—ऐसा स्वभाव बना लो |
सन्तों का सब आदर इसलिये करते हैं कि उनका स्वभाव अच्छा है, वे सबका हित चाहते हैं |
अच्छे स्वभाव वाले को सब चाहते हैं, पर खराब स्वभाव वाले को उसके घरवाले भी नहीं चाहते |
बिगड़ा या सुधरा स्वभाव ही साथ चलेगा | इसलिये अपना स्वभाव शुद्ध बनाओ |
धन एक कौड़ी साथ नहीं जायगा और भजन एक कौड़ी पीछे नहीं रहेगा |
आपका घर यहाँ नहीं है | आपका घर परमात्मा का परमधाम है | यहाँ तो धर्मशाला है |
आप स्वयं अविनाशी हो, फिर नाशवान्-के भरोसे कबतक बैठोगे ?
दो कामों में ही मनुष्यता है—सेवा करो और भगवान्-को याद करो |
ये दोनों बातें आपके स्वभाव में आ जायँ तो निश्चय ही आपका जीवन बन जायेगा |