आप सभी को ज्ञात ही है भगवान विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण जी वृंदावन में गोपियों के साथ रासलीला करते थे।
अब माता पार्वती विष्णु भगवान जी की बहन होने के कारण महारास में आमंत्रित की जाती थी, वो वहां से आकर बहुत प्रसन्न दिखाई देती थी और निरन्तर सभी से अनुपम घटना का वर्णन करती थी ।
अब भगवान शिव ठहरे भोले भंडारी उन्हें भी उस रास में जाने की उत्कण्ठा जागृत हुई।
माता पार्वती को निमंत्रण आया वो जाने के लिए उद्धत हुई भगवान शिवजी हठ करने लगे कि मुझे भी ले कर चलो,
माता पार्वती ने उत्तर दिया वहाँ एकमात्र पुरुष मेरे भाई है और गोपियों को आप के सामने लज्जा आएगी।
महारास इतना अद्भुत होता है कि किसी को अपनी सुधबुध नही रहती आप कृप्या हठ न करे परन्तु बाबा ने तो सोच लिया जा कर ही मानेंगे उन्होंने अपना अंतिम दाव खेला कि ठीक है आप भी मत जाओ यदि आप मुझे नही ले जा रही।
अब माता के पास कोई और मार्ग न था उन्होंने कहा, आप चलिए परन्तु महारास की मर्यादा बनी रहे अतः आप स्त्री के वेश में आ सकते हैं बाबा का तो सब जानते है कितने भोले है वो इस पर भी मान गए।
उन्होने यमुना जी मे स्नान किया
और स्त्री का वेश धारण किया, आप उस मोहक रूप के अप्रतिम सौंदर्य की कोई उपमा नही दे सकते सम्पूर्ण ब्रह्मांड उस रूप पर मोहित हो गया।
अब माता को लगा इतनी सुंदर गोपी को कोई पहचान न ले तो उन्होने भोले बाबा का घूंघट नीचे करवाया और अपने साथ ले गई , महारास आरम्भ हुआ।
भोले बाबा भगवान विष्णु जी के भक्त भगवान विष्णु जी भोले बाबा के भक्त अब कृष्ण जी बांसुरी बजाए जाए भोले बाबा नृत्य करे जाए l
उस क्षण की आप कल्पना नही कर सकते थे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सम्पूर्ण सृष्टि ठिठक कर ये विहंगम दृश्य आत्मसात कर रही हो।
प्रत्येक सुंदर घटना का अंत होना ही है अतः ये सब परिवर्तित हुआ, भोले बाबा का घूंघट खुल गया ।
वो विलक्षण सौंदर्य सहस्त्रों सूर्यो की किरणों के समान सब स्थानों को प्रकाशित करने लगा।
सभी रुक गए तो भोले बाबा की तन्द्रा टूटी देखा तो सब उन्हें निहार रहे हैं उन्होंने शीघ्रता से वहाँ से जाने की चेष्टा की।
*परन्तु भगवान कृष्ण भी क्या उन्हें ऐसे ही जाने देते उन्होंने झट से भगवान शिव का हाथ पकड़ लिया और वचन ले लिया वही निवास करने का, जिसकी सहमति भोले बाबा ने दे दी।*
*भगवान ने गोपी का रूप धरा था अतः वो गोपेश्वर महादेव के नाम से वही स्थित हुए।*
मान्यता यह है कि वृंदावन की कालिंदी के समीप निकुंज बन के पास गोपेश्वर के रूप में स्थापित महादेब के दर्शन के अभाव में कुंज बिहारी का दर्शन अपूर्ण है।