कुम्भ दिव्य स्नान
कुम्भ स्नान का विशेष तिथियों से संयोग होना विशेष महत्त्व रखता है।
इन संयोग के दिनों को शाही स्नान कहा जाता रहा है
यहां शाही शब्द शहंशाह से जुड़ा हुआ है। यह मुगल शासकों और उर्दू फारसी भाषा का प्रभाव है।
इस कुंभ में शाही स्नान की जगह राजसी_स्नान शब्द का प्रयोग करने की सलाह कुछ प्रबुद्ध दे रहे हैं यह सर्वथा अनुचित है क्योंकि यह समस्त कुम्भ पर्व ही राजसी न होकर सात्विकता से भरा हुआ है।
राजसिक शब्द रजोगुण से बना है जो बीच का गुण है। गीता में सत्वगुण रजोगुण और तमोगुण इन तीनों गुणों का विशेष लक्षण और पहचान दी गई है। और कहा गया है कि –
उर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था: अर्थात् सात्विक लोग उर्ध्व के श्रेष्ठ लोकों में गति प्राप्त करते हैं।
कुम्भ में भी ऐसे ऐसे दिव्य महात्मा स्नान करते हैं, ये पर्व तिथियां भी सत्वगुण से भरी होती हैं तो इनको राजसी कहना उपयुक्त नहीं है।
यहां शाही का अभिप्राय भी यही होता था कि जो शहंशाह अर्थात् सबका ईश्वर है उसकी पूर्ण कृपा जिस पर्व में हो उन तिथियों के योग के दिनों को शाही स्नान कहा गया है ।
इसका संस्कृत भाषा में साम्यता देखें तो इसे दिव्य स्नान कह सकते हैं।
क्योंकि सूर्य की धूप रहते जो बारिश होती है उसे भी दिव्य वर्षा कहते हैं।
दिव्य का अर्थ है – आकाश में ग्रह+ तिथि, नक्षत्र, राशि आदि के संयोग से उत्पन्न –
दिव्य – आकाशभवे दिव्यम्।
अतः इन शाही स्नान को दिव्य स्नान कहना अधिक उपयुक्त है न कि राजसिक स्नान!
दिव्य कुम्भ में दिव्य पर्वों का संयोग ही दिव्य स्नान है। यहां तामसिकता और राजसिकता के लिए कोई स्थान नहीं है।
आईये इन दिव्य भव्य तिथियों में कुम्भ स्नान का आध्यात्मिक लाभ लें जहां देवता भी स्नान के लिए आते हैं।
दिव्य स्नान की तिथियां —
13 जनवरी पौष पूर्णिमा
14 जनवरी मकर संक्रांति
29 जनवरी मौनी अमावस्या
2 फरवरी वसन्त पंचमी
12 फरवरी माघ पूर्णिमा
26 फरवरी महाशिवरात्रि