कास का फूलना वर्षा ऋतु की बुढ़ौती का संकेत है।

 

( कांस के फूल उस संधि-सेतु का निर्माण करते हैं जिस पर से होकर एक साथ बरसात विदा होती है और शरद ऋतु का आगमन होता है। )

श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी जी ने ऋतु वर्णन में कास के फूल का बड़ा उत्तम वर्णन किया है।

*बरषा बिगत सरद रितु आई।*
*लछमन देखहु परम सुहाई॥*
*फूलें कास सकल महि छाई।*
*जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥*

हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने ( कास रूपी सफेद बालों के रूप में ) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है॥

ताल के किनारे, नदी के किनारे, रास्तों के किनारे, नम मिट्टी में खिले कांस के फूल इस बात के प्रतीक हैं कि धरती रसयुक्त हो गई है, दो मौसमों के मध्य संधिकाल की श्वेत पताकाएं तान दी गई हैं। संधिकाल की मधुरता का रंग दर्शनीय है, शुभ्र है, इसका स्पर्श स्नेह-युक्त है।

कांस के फूल उस संधि-सेतु का निर्माण करते हैं जिस पर से होकर एक साथ बरसात विदा होती है और शीत का आगमन होता है। कुछ देर के लिए दोनो ऋतुएं एक दूसरे को अंकवार में भरती हैं और रुपहले केशों वाली बारिश, हरीतिम चुन्नी ओढ़े तरूणी शीतल के आंचल को अन्न और त्योहारों से भर देती है।

कांस धरती पर खिले बादलों के फूल हैं जिनकी पंखुड़ियां जल के बिंदुओं से निर्मित हैं। मेघवंशी कांस समय वे वाचक हैं जिन्हे सुनकर मुनि अपनी यात्रा शुरू करते हैं, कहारिन माता भवानी के स्वागत में अंगना बुहारने लगती है, माता दुर्गा की अगवानी में श्वेत सुमन की डलिया लेकर प्रकृति स्वयं उपस्थित होती है।

घनकुमारों को देखकर चक्रवर्ती दिग्विजय के लिए निकलता है, विद्यार्थी पहली तिमाही की तैयारी में लग जाता है। कवि अपनी मोरपंखी लेखनी से ऋतुसंहार लिखने बैठ जाता है ‘फूले हुए कांसों के निराले परिधान, साज नूपुर पहन मतवाले हंस गण के’।

कांस के फूल नीलंबर द्वारा वसुधा को पहनाई वह चांदी की पायल है जिसके घुंघुरू हवाओं में बजते हैं, और धरती छमक छमक कर इठलाती है।

गरमी की धूप बरसते पानी के साथ धरती में समा जाती है, शीत की आहट होते ही उष्णता कांस के फूलों के माध्यम से बाहर झांकने लगते हैं और कुछ समय बाद रुई के सफेद धागों में बदल जाती है, इन्ही धागों में शरद उलझेगी।

कांस के इन्ही फूलों पर चांदनी उतरकर और गाढ़ी हो जाएगी, और धवल हो जाएगी, और निर्दोष हो जाएगी। सुबह होते ही विदा के आंसू ओस की बूंदों में बदलकर फूल के किसी कोने में झलकेंगे।

कांस जब तक फूलेंगे, मौसम बदलते रहेंगे, चांदनी झरती रहेगी, मेघ बरसते रहेंगे, संधि-सेतु बनते रहेंगे, जीवन की नदी बहती रहेगी।

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