प्रकृति के प्रति हम संवेदनशील हो सकें इसके लिए हम धार्मिक हों-न-हों, आस्तिक हों-न-हों, पर हमें आध्यात्मिक अवश्य ही होना चाहिए।
*संवेदनशील होना ही आध्यात्मिक होना है।* आध्यात्मिक व्यक्ति ही संवेदनशील हो सकता है। आध्यात्मिक व्यक्ति ही किसी के सुख-दुःख को आसानी से अनुभव कर सकता है और उसकी सेवा कर सकता है। हमें अपनी जीवन शैली में अध्यात्म को अर्थात सेवा, संयम, संवेदना, निश्छलता, निष्कपटता, निष्पापता, पवित्रता को शामिल करना ही चाहिए, जिससे कि हम प्रकृति के प्रति संवेदनशील हो सकें।
आध्यात्मिक व्यक्ति की आवश्यकताएँ कम होती हैं। वह न्यूनतम में अपना जीवन निर्वाह कर पाता है। वह संकीर्ण स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टिगत हित में सोचता है। वह *’सर्वे भवन्तु सुखिनः’* व *’वसुधैव कुटुम्बकम्’* की भावना में विश्वास करता है। वह व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है और उनका बखूबी निर्वहन भी करता है।
आध्यात्मिक होकर ही, संवेदनशील होकर ही हम प्रकृति के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं और सही मायने में प्रकृति की पूजा, सम्मान व संरक्षण कर सकते हैं। हम प्रकृति की व्यथा को, कष्ट को महसूस कर सकते हैं।