आखिर कैसे पड़ा बाबा का सियाराम नाम,कैसी रही दिनचर्या

 

 

🔸संत सियाराम बाबा का प्रभु मिलन मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के महायोग में हुआ,यह संयोग बताता है आत्मा और महात्मा में अंतर ,,,
🔸खरगोन मप्र में संत सियाराम बाबा(95 वर्ष)ने बुधवार सुबह 6.10 मिनट पर अपनी देह त्याग दीपिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे
,इलाज के दौरान भी वे लगातार रामायण का पाठ कर रहे थे,,

🔸🚩बाबा पिछले 10 दिन से बीमार थे,कुछ दिनों पहले बाबा को निमोनिया की शिकायत पर सनावद के निजी अस्पताल में भर्ती किया था
इसके बाद बाबा की इच्छानुसार उनका आश्रम में ही जिला चिकित्सालय और कसरावद के डॉक्टर इलाज कर रहे थे,प्राप्त जानकारी अनुसार बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर में हुआ था,17 साल की उम्र में उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का फ़ैसला किया था,उन्होंने कई सालों तक गुरु के साथ शिक्षा और तीर्थ भ्रमण किया,वे 1962 में भट्याण आए थे।
🔸यहां उन्होंने एक पेड़ के नीचेमौन रहकर कठोर तपस्या की,जब उनकी साधना पूरी हुई तो उन्होंने ‘सियाराम’ का उच्चारण शुरू किया,,,जिसके बाद से ही वे सियाराम बाबा के नाम से जाने जाते हैं।

🔸बाबा प्रत्येक श्रद्धालु से मात्र 10 रुपये दान स्वरूप लेते थे। बाबा ने आश्रम के प्रभावित डूब क्षेत्र हिस्से के मिले मुआवजे के दो करोड़ 58 लाख रुपये क्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान नागलवाड़ी मंदिर में दान किए थे।
🔸🚩वही लगभग 20 लाख रुपये व चांदी का छत्र जाम घाट स्थित पार्वती माता मंदिर में दान किया। आश्रम से नर्मदा तक बनाया घाट भी सियाराम बाबा ने लगभग एक करोड़ रुपये की लागत से बनवाया था।

🔸उनकी दिनचर्या भगवान राम व मां नर्मदा की भक्ति से शुरू होकर यही खत्म होती थी,आश्रम पर आने वाले श्रद्धालुओं को स्वयं के हाथों से बनी चाय प्रसादी के रूप में वितरित करते थे,,

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