भारतीयता की साधना ही भारतीय राजनीति है। भारत की राजनीति को समझना भी भारत को समझने का एक उपक्रम है क्योंकि वह भी भारतीयता को सम्बोधित एक मजबूत अभिव्यक्ति है। भारतीयता ही भारत की आत्मा है। जिसकी सच्ची अभिव्यक्ति भारत की आत्मशक्ति आध्यात्मिकता के आधार भाव में होती है। भारतीयता का भान इतना सरल नहीं है, बस भारत को समझने में यहीं सामान्य-सी जटिलता है। मानव का पृथ्वी पर जो रिश्ता अपने पर्यावरण यानी वायुमंडल से है, ठीक वैसा ही एक भारतीय के लिए भारतीयता उसका प्राण-परिवेश है। जैसे वायुमंडल एक संतुलित समग्रता है, वैसे ही भारतीयता भारतीय मूल्यों, मान्यताओं, आचार-विचार और व्यवहार का वायुमंडल है। उसका रक्षण, संरक्षण और संवर्द्धन ही भारतीय राजनीति का अभीष्ट लक्ष्य रहा है। सिर्फ आर्थिक विकास कभी भी हमारा केन्द्रीय ध्येय नहीं रहा है। हां आजादी के बाद से भारतीय समाज के खण्डात्मक ढांचे में आधुनिक राजनीतिक संस्थाओं, मूल्यों और विचारों तथा नियम-कानूनों का प्रवेश तेज जरूर हुआ है। पर मूल स्वभाव में भारतीय समाज सदैव अराजनैतिक ही रहा है।
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया समाज को राजनीतिक व्यवस्था में प्रवेश के लिए प्रेरित करती रही है क्योंकि आधुनिक राष्ट्र-राज्य अपने लक्ष्यों और साधनों की प्राथमिकता का निर्धारण कुछ राजनैतिक नियमों के सहारे ही कर पाते हैं। स्वतंत्र भारत में राजनीति के हिस्से एक बड़ी जिम्मेदारी यह आयी कि एक प्राचीन और विविधता भरे समाज का आधुनिकीकरण कैसे हो? भारतीयता का वरण और संरक्षण भारतीय नेतृत्व कैसे करे? इन चुनौतीपूर्ण दुरुह कार्यों को भारतीय नेतृत्व ने गंभीरता से लेते हुए सोच-विचार कर सामाजिक-आर्थिक प्रबंध किए। अपने समाज के स्वभाव के अनुरूप राजनैतिक दक्षताएं और सतर्कताएं बरती। जिससे विकास प्रक्रिया के जरिये विभिन्न तत्वों को एकता के सूत्र मे पिरोया जा सके। एक मजबूत राष्ट्रीयता जो भारतीयता से भरी हो विकसित हो सके, यही भारतीय नेतृत्व की साधना रही। इस महान लक्ष्य की उत्तरोत्तर प्राप्ति ही भारतीय शासक, प्रशासक और जननायकों के जीवन का लक्ष्य रहा। उनकी राजनीतिक परिपक्वता और सूझबूझ से भरी भारतीयता की साधना ने ही सामाजिक-आर्थिक संबंधों को विकास की दिशा देने में अहम भूमिका निभायी है। इसी में भारतीय नेतृत्व की महानता निहित है और भारत के भारत होने का राज भी।
नयी-नयी चुनौतियां और समस्याएं भारत के लिए कोई नयी बात नहीं है। हमारे समाज का स्वरूप ही इतना जटिल है कि उसका संचालन सरल साधना से संभव नहीं है। जैसे-जैसे भारतीय समाज को आधुनिक चेतना चेतायेगी वैसे-वैसे भारतीय नेतृत्व को नये तनावों का सामना करना पड़ेगा। न्याय, समता, विविधता और जन-सहयोग के साथ उभरी जन समस्यायें नये-नये अर्थ उछालेगी। उन सबको भारतीयता की भाषा में सम्बोधन की दरकार रहेगी, तभी देश में भारत की सरकार रहेगी। अतीत के अनुभव बताते हैं कि यह इतनी सरल चुनौती भी नहीं है। मौजूदा भारतीय नेतृत्व को भी इन स्थितियों को समझने की जरूरत है। ऐसे में एक परिपक्व भारतीय बौद्धिक संस्कार का नेतृत्व ही भारतीय राजनीति की दृष्टि बन सकता है। भारतीय राजनीति इस तरह के नाजुक मोड़ों पर अक्सर परिपक्व दिखी है। उसी परिपक्वता की पूरी अपेक्षा वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व से देश को है। यह पूर्ण विश्वास है कि हमारी राष्ट्रीयता का भाव और हमारी भारतीयता का कवच हमारा संविधान इन संकटों से हमें उभार लेगा।
चुनौतियों को अवसरों में ढालने में माहिर भारतीय नेतृत्व अपनी परम्परा से प्रेरणा लेता हुआ आगे बढ़ता है। उन्हें अपने मूल्य-परिवेश में ढालकर रोज अपनी भारतीयता का निर्माण करता है। अपने देश की विशालता, अपने समाज की विविधता, अपनी सांस्कृतिक विरासत की विराटता और साभ्यतिक वैभव की साझी सोच को श्रेय देते हुए आगे बढ़ना भारतीयता है। भारतीयता का यह भाव ही हमारे राष्ट्र और आजादी को संजोकर रखे हुए है। नित नयी घनिष्टता का वातावरण बने यही भारतीयता की साधना है। भारत में धर्म, संस्कृति और इतिहास की अपनी क्षेत्रीयताएं हैं, उनके साथ जबरन खींचतान अच्छा नहीं है। अतीत के अनुभव बताते हैं विविधता के सम्मान में उदारता ही उतरेगी, संकीर्णता कभी किसी का सम्मान नहीं करती है। भारत की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए भारतीय नेतृत्व का परम दायित्व यही है कि वह समाज के पुराने संकीर्ण संस्कारों के खण्डात्मक जाति-समप्रदाय वाले घेरों को सद्भाव के बड़े घेरो में बदले। एक अखण्ड सोच का निर्माण करे, जो अपनेपन की चैहद्दी का विस्तार करती हो। सब भारतीयों को समाहित करती हो। यह भारत की परम्परा है, यही भारतीयता है। क्योंकि भारत सिर्फ विविधता से भरा समाज नहीं है, यहां दरिद्रता और असमानता भी भरी पड़ी है। भारतीय संविधान की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि हमारे नेतृत्व ने इन सब समस्याओं से जुड़े सवालों को न्यायसंगत ढंग से सम्बोधित करते हुए भारतीय संविधान का निर्माण किया है। भारतीय नेतृत्व की यह दूर-दृष्टि उसे भारतीयता का साधक बनाती है और महान भी।
राजनीति भारत के लिए मात्र आर्थिक विकास का साधन कभी नहीं रही है। यह भारतीय राजनीति का ध्येय कभी रहा ही नहीं है। भारत की एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखना ही उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। भारतीय नेतृत्व से हर पीढ़ी की पहली अपेक्षा यही रही है कि भारतीयता का विकास और विस्तार कैसे हो। विविधता के बीच सबको जोड़ने वाली नयी संस्कृति भारतीयता के सनातन मूल्यों को कैसे सहेजकर रखे। सबका साथ-सबका विकास वाली भारतीय परम्परा का नित नये संस्कारों से संवर्द्धन कर सच्ची भारतीयता का निर्माण कैसे करे। देश को दरिद्रता से सम्पन्नता की ओर, गैर-बराबरी से समानता की ओर ले जाने वाले सतत सकारात्मक संघर्ष ही वास्तविक भारतीयता से भरे अभ्यास हैं। जो नये संबंधों का आधार बनते हैं और नित नये भारत का निर्माण करते हैं। ऐसी भारतीयता का निर्माण करना ही भारतीय राजनीति का नित्यकर्म है और हर भारतीय का दायित्व भी। तभी हम एक समर्थ, शांतिपूर्ण और सभ्य तथा सशक्त विकसित भारत के निर्माण की दिशा में बढ़ सकेंगे।—
डाॅ. राकेश राणा
(लेखक समाजशास्त्री हैं।)