साइंटिफिक-एनालिसिस:
भारत के अन्दर संविधान को लागू हुये 75 वर्ष पूरे हो गये | संविधान दिवस 26 नवम्बर 2024 को वन नेशन वन संविधान के अन्दर राष्ट्रीय रूप से दो अलग-अलग कार्यक्रम बनाकर राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश के मध्य संवैधानिक दरार को पैदा की गई | अब यह पुरा मामला राष्ट्रपति के संज्ञान में ला दिया गया हैं। जिस पर उनका फैसला आना बाकी हैं कि संविधान की मर्यादा उनसे टूटी या मुख्य न्यायाधीश ने तोडी | इसके साथ दोषी के लिए क्या सजा तय होती हैं यह देखने वाली बात हैं जो संविधान के प्रति निष्ठा को उजागर करेगी |
इसी बिच संसद के दोनों सदन राज्यसभा व लोकसभा के अन्दर संविधान के अनुसार देश की असली मालिक आम जनता के मुंह के निवाले पर भी वसूले गये टैक्स से प्रति घंटे करीबन डेढ करोड खर्च करके चर्चा कराई गई | पहले ही टैक्स की परिभाषा को खींच-खींच कर हिस्सेदारी की परिभाषा में अतिक्रमण कराया जा चुका है। इसलिए पैसा खर्च हुआ या पानी की तरह बहा दिया गया, उसमें कही पर भी रूकावट का रतिभर भी व्यवधान नहीं आया | संविधान कहता हैं देश में आम नागरिकों की भारत-सरकार बनती हैं परन्तु पुरी बहस में बीजेपी की सरकार, कांग्रेस की सरकार, फलाना पार्टी की सरकार ही गुंजायमान रहे | दोनों सदनों के अध्यक्षों द्वारा इस पर चुप्पी से देश शंशय में आ गया कि उनकी सरकार का राजनैतिक दलों ने अपहरण कर लिया और उन्हे पता तक नहीं चला |
इस बहस में आगे व्यक्तिगत नाम आगे जोडकर सरकार का सम्बोधन हुआ परन्तु किसी भी अध्यक्ष ने उसे असंवैधानिक मानना तो दूर रिकार्ड से भी नहीं हटाया जबकि सरकार का अपहरण करना सबसे बड़ा राष्ट्रदोह हैं। शायद राष्ट्रपति ने जिस संविधान की शपथ दिलाई उसे उन्हें पढने को दिया ही नहीं लगता हैं | प्रधानमंत्री के प्रमुख वाली कार्यपालिका को अधिकांश लोग सरकार-सरकार कह रहे थे और उन्हें टेलिविजन पर देख रहीं नई पीढी अपने सिर खुंजा रही थी कि उनके शिक्षा के शब्दकोष में कार्यपालिका को अंग्रेजी में एक्ज्यूकेटिव लिखा हुआ है शायद संसद की आलिशान व विशाल लाइब्रेरी में गवर्मेंट लिख रखा होगा और उनकी किताबों में गलत छप गया दिखता हैं |
संसद की कैंटीन में रखे एक से बढकर एक पकवान व उनके सस्ते में उपलब्ध होने की छाप भाषणों के दौरान मौजूद कही जनप्रतिनिधीयों के चेहरे पर नजर आ रही थी | इसी बिच आरक्षण के नाम पर लोगों को धर्म के आधार पर बांटने की बात वो सभी लोग कर रहे थे जो संसद से करे गये संविधान संसोधनों को हमारी सरकार, हमारी पार्टी ने करा कह-कहकर क्रैडिट लूट रहे थे और संसद को ही टुकड़े-टुकड़े में बांट रहे थे | यह आरक्षण पर एक-दूसरे पर बंदरबाट करने का आरोप लगा रहे थे | संसद में एक बार पास हो चुके कानून व संविधान संसोधन संसद की बौद्धिक सम्पदा कहलाते हैं फिर मैं-मैं तू-तू करके लूट खसोट पर दोनों अध्यक्षों का चुप रहना या मुस्कराना चोर की दाढी में तिनका होने का शंक पैदा करता हैं | कानून बनाने व संविधान संसोधन के लिए मोटा तगड़ा मेहनताना लेने के साथ आलिशान सुख-सुविधाओं का भोग करने वाले जनप्रतिनिधी यानि जनता के नौकर स्वामीभक्ति व राष्ट्रभक्ति से मुकर चुके हुए नजर आये |
जनता के पैसों व उनसे मिले अधिकारों से अपना व अपने परिवार का पेट पालने वाले जनप्रतिनिधी यानि जनता के नौकर फुदक-फुदक करके यह कहते नजर आये कि हमने कानून बनाकर देश की मालिक जनता को अपनी जेब से यह दिया, वो दिया | इस पूरी चर्चा का नब्बे फिसदी से ज्यादा हिस्सा भूतकाल को गाने, बजाने व जो इन्हें संविधान व देश की जिम्मेदारी सौंप कर चले गये उन्हें कौसने, बुरा-भला व दोषी बताने में लगाया | वर्तमान पर नौ फिसदी से ज्यादा और भविष्य पर एक फिसदी से भी कम चर्चा हुई | भूतकाल को ला-लाकर उस पर अपनी-अपनी बुद्धि का ज्ञान बांटने से लोगों को दिल व दिमाग से लग रहा था कि कहीं उन्होंने बन्दरों के हाथ में उस्तरा तो नहीं पकड़ा दिया लगता हैं। हर वक्ता के बोलने के बिच में शौरगूल से पुष्टि हो रही थी कि बन्दर नकलची ही होते हैं |
संविधान की पुरी चर्चा के अन्दर संवैधानिक ढांचे, एक सौ छ संविधान संसोधनों को करके मूल संविधान की किताब में सभी के समन्वय पर, हजारों कानून बनाने व हटाने से 75 सालों में समय के साथ जो बिखराव हुआ उसे सही करने पर कोई योजना सामने नहीं आई | आधे लोग शेष आधे लोगों को संविधान बर्बाद करने का दोषी बता रहे थे और शेष आधे लोग बचे लोगों को संविधान बर्बाद करने का दोषी बता रहे थे कुल मिलाकर सभी छाती ठोककर देशवासी ही नहीं पुरी दुनिया को बता रहे थे कि एक सौ चालीस करोड लोगों के देश में हम गिनती के लोग ही हैं जिन्होंने भारत के संविधान को बर्बाद करने का काम किया | इस चर्चा में करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद शायद यही सारांश निकला कि नाचे कूदे बान्दरी खीर खाये फकीर
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक