रेल मंत्री का कवच सिस्टम बनाम बालासोर का खौफनाक मंजर

 

 

– संजय सक्सेना:
बालासोर का खौफनाक मंजर। अंधेरे में अपनों को तलाशते दहशतजदा लोग। बिखरे शव। सैकड़ों जिंदा लोग, किसी का हाथ कट गया है तो किसी का पांव। कोई बिलख रहा है। कोई अपनी चोट भूल कर अपने परिजनों को तलाश रहा है। दिल दहलाने वाला दृश्य। खबर पढ़ते-पढ़ते आंखों में आंसू ही नहीं आते, फूट-फूटकर रोने को दिल करता है। लेकिन क्या किसी का इस्तीफा हुआ? क्यों हो? मरने वालों को कुछ नकद, घायलों को कुछ मदद। बैठकें, बयान और फिर जांच की नौटंकी। बस…।
रेलवे स्टेशन निजी हाथों में दे दो। ट्रेन भी निजी हाथों में दे दो। फिलहाल, हम नई-नई वंदे भारत टे्रन शुरू करवा रहे हैं, जो एक जानवर से भी टकराकर टूट जाती है। और हरी झंडी दिखवा रहे हैं प्रधानमंत्री से। लेकिन रेलवे के उस कवच का क्या हुआ, जिसकी बड़ी पब्लिसिटी की जा रही थी। किराया से लेकर सब कुछ बढ़ा दिया, रेलवे बेचने तक की तैयारी है, लेकिन रेल दुर्घटनाएं रोकने की ठोस बात नहीं हो रही। ओडिशा के बालासोर में हुई रेल दुर्घटना ने रेलवे के तमाम दावों की बखिया उधेड़ दी है। सारे सिस्टम की पोल खुल गई है। और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव एकदम नाकारा ही साबित हो रहे हैं।
और रेल मंत्री का कवच सिस्टम, वो भी जुमला निकला? रेलवे प्रवक्ता अमिताभ शर्मा कहते हैं, इस रूट पर कवच उपलब्ध नहीं था। दरअसल, भारतीय रेलवे ने चलती हुई ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कवच नामक एक स्वचलित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली विकसित की है। यह प्रणाली ट्रेन ड्राइवरों की एक विश्वसनीय साथी है। यदि ड्राइवर कहीं स्पीड कंट्रोल करना या ब्रेक लगाना भूल जाता है तो कवच प्रणाली ब्रेक इंटरफेस यूनिट द्वारा ट्रेन को कंट्रोल कर लेती है।
अब इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? एक या कुछ रेल अधिकारी? फिर, मंत्रालय क्या घास खोदने के लिए बनाया गया है? क्या रेल मंत्री और दिल्ली में बैठे उनके अफसर केवल मुफ्त की तनख्वाह लेने और ऐश करने के लिए बने हैं?
कुछ महीने पहले ट्रेन की टक्कर रोकने के लिए बनाए गए कवच सिस्टम के लिए रेल मंत्री छाती ठोक रहे थे, अब ये क्या हुआ हर किसी को यह पूछना चाहिए। जब एक ट्रेन डिरेल होकर दूसरे ट्रैक पर आ गयी थी, तब कवच कहाँ था? 300 के आसपास मौतें, करीब 1000 लोग घायल। इन दर्दनाक मौतों के लिए कोई तो जिम्मेदार होगा? एक नही, दो नही, 3-3 ट्रेनें आपस में टकराई, तब भारत का कवच कहां था? सिग्नल फेल होने से इतना बड़ा हादसा विश्वास से परे और आश्चर्यजनक है। हादसे ने कुछ गंभीर सवाल खड़े किए हैं जिनका जवाब आना चाहिए। अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि तीनों ट्रेनें एक-दूसरे पर कैसे चढ़ गईं। शुरुआती खबरों में कहा गया है कि डाउन लाइन पर बेंगलुरु-हावड़ा ट्रेन शाम 6.55 बजे पटरी से उतर गई और कोरोमंडल शाम 7 बजे अप लाइन पर पटरी से उतर गई। कोरोमंडल के पटरी से उतरे डिब्बे पहले बेंगलुरु-हावड़ा और फिर मालगाड़ी से टकरा गए। सरकार का ध्यान केवल लक्जरी ट्रेनों पर है जबकि आम लोगों के लिए ट्रेनें और पटरियां उपेक्षित हैं। उड़ीसा में हुई मौतें इसी का परिणाम हैं। रेल मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए।
रेल सुरक्षा के नाम पर लाखों-करोड़ो रुपये खर्च पर भी सवाल उठना लाजिमी है। सोशल मीडिया पर लिखा गया है कि ट्रेनों की टक्कर रोकने के लिए कवच के नाम पर 50 लाख प्रतिकिलोमीटर खर्च किए गए। इसके बावजूद लेकिन अभी भी लोग मर रहे हैं। आखिर टैक्सपेयर्स के पैसों का क्या हो रहा है? टैक्सपेयर्स तो ठीक, जो लोग किराया देकर रेलों में यात्रा कर रहे हैं, उनके पैसे काहे में जा रहे हैं? कर्मचारियों, अधिकारियों के वेतन में? सेफ्टी अपग्रेड के नाम 34 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। काहे में खर्च हुए? क्या हम दुर्घटना में मृत लोगों की जिंदगी वापस दे सकते हैं? अपंग होने वालों के अंग वापस दे सकते हैं? संवेदनाओं के नाम पर बयानबाजी..और बयानबाजी..। तर्क-कुतर्क..। और फिर सब कुछ सामान्य। चलाओ दुरंतो। चलाओ वंदे भारत। और करते रहो हजारों लोगों को शहीद।
और अंत में..
संदर्भ के अनुसार देश के पूर्व रेल मंत्री रहे सर्वश्री लालबहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, कमलापति त्रिपाठी एवं माधवराव सिंधिया ने रेल दुर्घटना के बाद नैतिकता के आधार पर जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया था। अब देखना है वर्तमान रेल मंत्री का इस्तीफा कब होता है? और होता भी है या नहीं?

Shares