*जल संसाधन विभाग का नया बॉस लक्ष्मीकांत उपाध्याय!*
*तृतीय श्रेणी कर्मचारी लक्ष्मीकांत उपाध्याय है मंत्री तुलसी सिलावट का निज सहायक*
*मंत्री के सभी काले कारनामे करने की जिम्मेदारी उपाध्याय पर*
*क्या ऐसे भ्रष्ट मंत्री तुलसी सिलावट को मिलनी चाहिए टिकट?*
*विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन*
अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत को प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने चरितार्थ किया है। भ्रष्टाचार के अड्डे के रूप में कुख्यात जल संसाधन विभाग में रोज नये कारनामे उजागर हो रहे हैं। अब एक कारनामा सामने आया है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट के बंगले पर पदस्थ निज सहायक एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी है। लक्ष्मीकांत उपाध्याय नाम का यह कर्मचारी वैसे तो जल संसाधन विभाग में 01 नवम्बर 1989 को बतौर दैनिक वेतन भोगी के पद पर पदस्थ हुआ था। जो धीरे-धीरे अमीन (अमीन मतलब कृषकों से नहरों द्वारा दिये जाने वाले पानी की वसूली करता है) के पद तक पहुंच गया। वर्तमान में लक्ष्मीकांत उपाध्याय जल संसाधन मंत्री के बंगले पर ऑफ द रिकार्ड निज सहायक के रूप में कार्य कर रहा है। यहां पर इसे वह सारी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं जो निज सहायक के पद पर पदस्थ अधिकारी को मिलती हैं। जैसे गाड़ी, ड्राईवर, नौकर और भोपाल में सरकारी आवास। मंत्री के बंगले पर इसका एक बड़ा सा कैबिन है जहां इससे मिलने वालों का तांता लगा रहता है। विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि मंत्री सिलावट ने उपाध्याय को अपने बंगले में जानबूझकर अटैच किया है। ताकि मंत्री जी के बंगले से होने वाले सभी काले गोरखधंधों को संभाला जा सके। क्योंकि उपाध्याय का पिछला रिकार्ड संदेस्हास्पद रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास दो नम्बर की हैसियत रखने वाले मंत्री तुलसीराम सिलावट ने अपने स्टाफ में इतने भ्रष्ट व अनियमितता की सारी हदें पार करने वाले दैनिक वेतन भोगी से अमीन तक पहुंचे अब पूरे प्रदेश पर हुक्म चलाने के लिये मंत्री स्टॉफ में पदस्थ किया है।
यहां हम सकते हैं कि मंत्री सिलावट ने जानबूझकर ऐसे भ्रष्ट कर्मचारी को अपने स्टॉफ में रखा है ताकि मंत्री अपने सारे काले कारनामों को इस अदने से कर्मचारी पर थोप सके। कहा जाता है कि मंत्री की सारी अवैध कमाई को एकत्रित करने का काम यही उपाध्याय करता है। वैसे भी मंत्री के नाम से ग्वालियर चंबल संभाग में जल संसाधन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से अवैध वसूली करने के आरोप भी लगे हैं। दैविभो कर्मचारी से यहां तक पहुंचने में उपाध्याय ने भ्रष्टाचार की कई सीढि़यां चढ़ी हैं। जिसमें इसके उच्च अधिकारियों ने भी पूरा सहयोग किया है। कई मामले हैं जिनमें लक्ष्मीकांत उपाध्याय को शक के दायरे में देखा जाता है। वैसे भी इन्हें काले कारनामे करने में महारत हासिल है। यही कारण है कि मंत्री सिलावट ने इसे अपने स्टॉफ में रखा है। लेकिन ताज्जुब वाली बात है कि मंत्री के बंगले में एक ऐसे कर्मचारी को निज सहायक बनाया गया है। इस पर कई संगीन भ्रष्टाचार और अनियमितताएं करने के आरोप लगे हैं। इसके साथ ही इस कर्मचारी के द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की जांच की मांग को लेकर मुख्यमंत्री से लेकर मध्यप्रदेश लोकायुक्त को भी शिकायती आवेदन दिए गए लेकिन अपनी लंबी पहुंच रखने के कारण आज तक उनका कोई कुछ नही बिगाड़ सका। प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट भ्रष्टाचार करने में अव्वल है। प्रदेश में बांधों का टूटना, नहरों का फूटना घटिया निर्माण और कमीशनखोरी का ही नतीजा है। अब उनके स्टॉफ में ऐसे व्यक्ति भी सम्मिलित हो गए हैं या किये गये हैं जिनको भ्रष्टाचार करने में महारत हासिल है। निश्चित है कि भ्रष्टों को अपने साथ रखकर भ्रष्टाचार को सही तरीके से किया जा सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस मामले पर जरूर ध्यान देना चाहिए।
भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपी लक्ष्मीकांत उपाध्याय जल संसाधन विभाग में वर्तमान समय में अमीन के पद पर पदस्थ हैं। इनके कारनामों और भ्रष्टाचार की सूची 11 फाईलों में इतनी लंबी है कि देखकर ऐसा लगता है कि इन जैसे लोगों के लिये कानून नाम का कुछ है ही नहीं। यमुना कछार जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री से लेकर मुख्य अभियंता तक लक्ष्मीकांत उपाध्याय जैसे भ्रष्ट कर्मचारी को बचाने और महिमामंडित करने में लगे हुये हैं। आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग द्वारा भी शिकायतों में लगाये गए आरोपों पर स्वयं अनुसंधान कर जल संसाधन विभाग मंत्रालय भोपाल को ही प्रकरण में खानापूर्ति कर दी। इसका परिणाम यह निकला कि उपाध्याय के प्रकरण में जो अधिकारी सम्मिलित रहे सभी शिकायतें उन्हीं के पास लौटकर पहुंच गई। इस तरह भ्रष्टाचार के लिए निर्मित जांच एजेंसियों एवं जल संसाधन विभाग ने न्याय का गला घोंटकर शिकायतकर्ताओं के साथ अन्याय किया है।
यदि इस तरह का कोई कर्मचारी-अधिकारी मंत्री के निजी स्टाफ में रहता है और उस पर अगर इस तरह के आरोप लगते हैं तो निश्चित ही वह मध्यप्रदेश सरकार और उस मंत्री की छवि खराब करने का काम करते हैं। एक अदने से कर्मचारी के पास यदि एक राजपत्रित अधिकारी से ऊपर का प्रभार हो तो यह संदेह के घेरे में आता है। निश्चित ही जिन अधिकारियों ने इस तरह के प्रभाव अमीन के पद पर पदस्थ कर्मचारी को दिए हैं वह भी इस मामले में पूरी तरह से दोषी हैं। साथ ही मंत्री सिलावट ने इस कर्मचारी को अपने स्टॉफ में क्यों रखा है इसकी भी तहकीकात होनी चाहिए।
*क्यों नहीं मिलना चाहिए सिलावट को टिकट?*
जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट वर्तमान में अपने विभाग में जमकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं। नहरों के घटिया निर्माण का मामला कारम बांध के हादसे से देखा जा रहा है। इस हादसे के लिए सीधे तौर पर मंत्री को दोषी ठहराया जा रहा है। हालांकि इसकी जांच में लीपापोती होने की बात भी कहीं जा रही है। इसके अलावा मंत्री अपने क्षेत्र सांवेर में भी हो रहे विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रहती हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इन्हें भ्रष्टाचार और गोरखधंधा करने की खुली छूट मिली हुई है। लेकिन ताज्जुब की बात है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मंत्री के काले कारनामों की जानकारी होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। यहां सवाल उठता है कि यदि यह सिलावट सिंधिया के खास नहीं होते तो क्या इतना भ्रष्टाचार कर सकते थे? शायद नहीं। लगता है सिंधिया के कारण मुख्यमंत्री के हाथ बंधे हुए हैं। लेकिन कहीं न कहीं इसका खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ेगा। पार्टी लाईन की बात करें तो ऐसे में तो सिलावट को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलना चाहिए।
*कौन है लक्ष्मीकांत उपाध्याय?*
लक्ष्मीकांत उपाध्याय ने जल संसाधन विभाग में 01 नवम्बर 1989 को बतौर दैनिक वेतन भोगी के पद पर काम शुरू किया था। जो धीरे-धीर अमीन के पद तक पहुंच गया। जिस समय यह दैनिक वेतन भोगी के पद पर पदस्थ हुए थे उसके बाद विभाग ने 05 मई 2011 को दैनिक वेतन भोगी सुपरवाइजर बनाकर नियुक्त कर दिया। इसके बाद लक्ष्मीकांत उपाध्याय को परिवीक्षाधीन अमीन के पद पर पदस्थ कर दिया गया। उपाध्याय की योग्यताओं पर भी प्रश्न चिह्न लगा चुका है। इतना तय है कि अपने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को खुश करके रखना और उनके इच्छाओं को पूरी करना और उसके बदले हर बार मनचाही मलाईदार पोस्टिंग पाना और फिर प्रचार करना यह उपाध्याय की फितरत में रहा है। विभाग के अदृश्य कर्मचारी के पास बड़ी-बड़ी मलाईदार पोस्टर रही है और एक समय में दो-दो तीन-तीन जगह का प्रभाव भी रहा है। उपाध्याय ने ऐसे भी काम किए हैं जिसका करने का उन्हें लीगली कोई पॉवर या अधिकार नहीं था। फिर भी अधिकारियों की मेहरबानी से उन्हें इस तरह के आदेश पारित करके और उनकी पद स्थापना की गई। जो काम सब इंजीनियर का है वह काम भी अमीन ने किया।इस लेख की समस्त जिम्मेदारी लेखक की है l