पुरानी कर व्यवस्था को चुनें या नई के साथ रहें?

पुरानी कर व्यवस्था को चुनें या नई के साथ रहें? समय पर चुनाव करने पर मिलती रहेगी छूट

 

जट में किए गए प्रावधान के मुताबिक आयकर रिटर्न के लिए नई कर व्यवस्था (income tax regime) ‘डिफॉल्ट’ रहेगी। इसका मतलब यह हुआ कि यदि कोई टैक्सपयेर चुनाव नहीं करता है तो स्वत ही नई कर व्यवस्था (New income tax regime) लागू हो जाएगी और उसी के अनुरूप टैक्स देय होगा।

इसलिए यह जरूरी है कि आप समय रहते अपनी आय और उस पर मिलने वाली कर छूट के अनुसार किसी एक व्यवस्था का चयन करें। ऐसा न करने पर कई फायदों से आप वंचित रह सकते हैं।

नियोक्ता को बतानी होगी पंसद

आयकर विभाग ने हाल ही में नियोक्ता और कर्मचारियों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके मुताबिक नियोक्ताओं को कर्मचारियों से चालू वित्त वर्ष में उनकी पसंदीदा कर व्यवस्था के बारे में पूछना होगा और उसके अनुसार ही स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) करनी होगी। यदि कोई कर्मचारी अपने नियोक्ता को अपनी पसंद की कर व्यवस्था के बारे में नहीं बताता है, तो यह माना जाएगा कि कर्मचारी ‘डिफॉल्ट’ नई कर व्यवस्था में बने रहना चाहता है। ध्यान दें कि पुरानी व्यवस्था के तहत कुछ कटौती और छूट उपलब्ध हैं, लेकिन नई व्यवस्था के तहत नहीं।

हर साल बदल सकते हैं विकल्प

वेतनभोगी लोगों के लिए पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच चयन करने का विकल्प हर साल उपलब्ध होगा। यहां तक की आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करते समय भी पुरानी से नई व्यवस्था या पुरानी से नई कर व्यवस्था में भी तब्दीली कर सकते हैं। आयकर दाता के लिए जो कर व्यवस्था फायदेमंद होगी, वह आईटीआर के वक्त भी बदल सकता है। कर व्यवस्था बदलने का विकल्प सिर्फ वेतनभोगियों को ही मिलेगा।

देर से आईटीआर दाखिल करने पर नई व्यवस्था होगी लागू

यदि कोई कर्मचारी आईटीआर निर्धारित समय सीमा के भीतर दाखिल नहीं करता है तो वह पुरानी कर व्यवस्था का पात्र नहीं रह जाएगा। भले ही उसने पुरानी व्यवस्था का चयन किया हो, उसकी कर देनदारी नई व्यवस्था के तहत ही देय होगी। उसे पुरानी व्यवस्था के तहत मिलने वाली छूट और कटौतियों की लाभ भी नहीं मिलेगा।

कर व्यवस्था बदलने पर छूट का लाभ नहीं

यदि कोई वेतनभोगी शुरू में नई कर व्यवस्था का चुनाव करता है लेकिन आईटीआर दाखिल करते समय पुरानी को अपनाना चाहता है तो उसे छूट होगी। हालांकि, ऐसा करने पर मिलने वाली कुछ छूट से वंचित रह सकते हैं। उन्हें कुछ कटौतियों का ही लाभ मिलेगा।

इसे ऐसे समझें

1. यहां छूट नहीं मिलेगी – कोई नई व्यवस्था का चुनाव करता है। इसमें कोई भत्ता छूट नहीं है, इसलिए नियोक्ता सैलरी स्ट्रक्चर में शामिल मकान किराया भत्ता (एचआरए), अवकाश यात्रा भत्ता (एलटीए) आदि पर विचार नहीं करता है। उसी के अनुसार कर कटौती करता है, लेकिन बाद में आयकर दाता पुरानी कर व्यवस्था में एचआरए छूट का लाभ चाहता है तो वह इसका पात्र नहीं होगा क्योंकि नियोक्ता ने कर गणना करते समय एचआरए को सैलरी स्ट्रक्चर का हिस्सा नहीं माना।

2. यहां जारी रहेगी – नई से पुरानी कर व्यवस्था में जाने पर आवास ऋण ब्याज पर दो लाख तक की कटौती की छूट जारी रहेगी। इसके अलावा आयकर की धारा 80सी और 80डी के तहत मिलने वाली कुछ छूट भी जारी रहेगी।

7 लाख से ऊपर मामूली अतिरिक्त आय पर ही टैक्स लगेगा

नई कर व्यवस्था में यदि किसी करदाता की वार्षिक आय सात लाख रुपये है तो उसे कोई कर अदा नहीं करना होता। लेकिन यदि आय सात लाख 100 रुपये है तो इस पर 25,010 रुपये का टैक्स देना पड़ता है। 100 रुपये की इस अतिरिक्त आय की वजह से करदाताओं पर बोझ बढ़ रहा था। इन्हें राहत देते हुए वित्त मंत्रालय ने संशोधन किया है कि अब सात लाख रुपये से ऊपर कुछ मामूली आय पर ही कर लगेगा। हालांकि, सात लाख रुपये से कितनी अधिक आय होने पर राहत मिलेगी, इसकी सीमा अभी तय नहीं की गई है।

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