*जनता को मुक्तखोरी की लत,नुकसान और फायदा किसका..?*
*टैक्सदाताओं का पैसा इस्तेमाल कर ये मुफ्त एवं खैरात बाटी जाती..!!*
*इस राजनीति का हम कब तक साथ देंगे..?*
देश में सत्ता हो या विपक्ष जब भी सत्ता में आती हैं तो फ्री की सौगात बाटकर हमेशा सत्ता में बने रहने की लालसा रखती हैं लेकिन किसी ने सोचा कि यह मुफ्त का साजो सामान कहा से आता हैं?कोई इस और नही सोचना चाहता हैं क्योंकि सबको अपनी पढ़ी हैं!देश की अर्थव्यवस्था और राज्य की माली हालत को ताक पर रखकर कुछ पार्टियों व सरकारों ने लेपटॉप बिजली व स्मार्टफोन से लेकर गेहूं चावल दूध तेल तक बांटा है या बांटने का वादा किया है!यह मुफ्तखोरी की पराकाष्ठा है! मुफ्त दवा मुफ्त जाँच लगभग मुफ्त राशन मुफ्त विवाह मुफ्त जमीन के पट्टे मुफ्त मकान बनाने के पैसे व बच्चा पैदा होने पर पैसे बच्चा पैदा नहीं (नसबंदी) करने पर पैसे स्कूल में खाना मुफ्त व मुफ्त जैसी बिजली एवं मुफ्त यात्रा! जन्म से लेकर मृत्यु तक सब मुफ्त!मुफ्त बाँटने की होड़ मची है फिर कोई काम क्यों करेगा? मुफ्त बांटने की संस्कृति से देश का विकास कैसे होगा? कैसे सरकारों का आर्थिक संतुलन बनेगा? पिछले दस सालों से लेकर आगे बीस सालों में एक ऐसी पूरी पीढ़ी तैयार हो रही है या हमारे नेता बना रहे हैं जो पूर्णतया मुफ्त खोर होगी! अगर आप उनको काम करने को कहेंगे तो व गाली देकर कहेंगे कि सरकार क्या कर रही है!विडम्बना एवं विभिन्न विशद की हदें पार हो रही हैं!ये मुफ्त एवं खैरात कोई भी पार्टी आपने फंड या तनख्वाह से नहीं देती है टैक्सदाताओं का पैसा इस्तेमाल किया जाता है हम नागरिक नहीं परजीवी तैयार कर रहे हैं! देश का टैक्स डिटेक्टर माइनॉरिटी क्लास फ्री खोर बहुसंख्यक समाज को कब तक चलेगा? जब ये आर्थिक गणना फैल जाएगी तब ये मुफ्त खोर पीढ़ी बीस तीस साल की हो जाएगी! उस जीवन में कभी मेहनत की रोटी नहीं होगी वह हमेशा मुफ्त की खायेगा! मिलने पर ये जनरेशन नहीं बनेगी मुफ्त खोर बन जाएगी पर काम नहीं कर पाएंगे!यह कैसा समाज बना रहे हैं? यह कैसी सुसंगत पूर्ण राजनीति है? राजनीति को छोड़कर गंभीरता से अवलोकन करने की आवश्यकता है!वर्तमान दौर की सत्ता लालसा की चिंगारी इतनी प्रस्फुटित हो चुकी है सत्ता के रसोस्वादन के लिए जनता और व्यवस्था को पंगु बनाने की राजनीति चल रही है! राजनीतिक दलों की बही खाते से सामाजिक सुधार रोजगार नए भर्ती का सृजन खेती को प्रोत्साहन ग्रामीण जीवन के पुनरुत्थान की प्राथमिक जिम्मेवारियां नदारद हो चुकी हैं बिना शर्त लगे ही हाथ पीले करने की फिराक में सभी राजनीतिक दल जुड़ गए हैं!जनता को मुक्तखोरी की लत से बचाने की जगह उसकी गिरफ्त में कर अपना राजनीतिक अधिकार प्रत्यक्ष करने लगे हैं! लोकतंत्र में लोगों को नकारा आलसी लोभी अकर्मण्य लुंज बनाना ही क्या राजनीतिक कर्त्ता धर्त्ताओं की मिसाल है? अपना हित एवं स्वार्थ-साधना ही सर्वांगपूर्ण हो गया है?सवाल यह खड़ा होता है कि इस चुप्पी की राजनीति का हम कब तक साथ देंगे? इस पर निशान का पहला अधिकार तो हम जनता पर ही है।