केवल इतना ही नहीं, करीब 1,400 साल पहले, भारत और जापान के बीच आरंभ हुए सभ्यतागत संपर्कों के बाद इतिहास के विभिन्न चरणों के दौरान दोनों देशों के बीच कभी प्रतिकूलताएं नहीं रहीं हैं। यानि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध किसी भी प्रकार के विवाद-वैचारिक, सांस्कृतिक या भौगोलिक से बिल्कुल मुक्त रहे हैं। दोनों देशों के संबंध इतने प्रगाढ़ हो चुके हैं कि ये इनकी एक-दूसरे के प्रति सम्मान उदार भावनाओं एवं भंगिमाओं में प्रकट होता है। ऐसे में दोनों देश हमेशा जरूरत के समय एक-दूसरे का साथ देते हैं। ज्ञात हो, 1903 में भारत-जापान संघ का गठन किया गया था। आज यह जापान में सबसे पुरानी अंतर्राष्ट्रीय मैत्री संस्थाओं में से एक है।
क्यों बढ़ी दोनों देशों में एक-दूसरे के प्रति रुचि ?
आज अनेक कारणों की वजह से भारत में जापान की रुचि लगातार बढ़ती जा रही है। दरअसल, इसमें भारत का विशाल एवं बढ़ता बाजार और इसके संसाधन, विशेष रूप से मानव संसाधन शामिल हैं। इसी क्रम में जापान की आधिकारिक विकास सहायता लंबे समय से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों का आधार रही है। इस रिश्ते के चलते जापान ने भारत के अवसंरचना विकास के लिए दीर्घावधिक ऋृण प्रदान करने का अहम कार्य किया। आज भारत में मेट्रो नेटवर्क जापान की सहायता से ही तैयार हो रहा है। सबसे पहले इसने दिल्ली मेट्रो परियोजना की संकल्पना तैयार करने तथा निष्पादित करने में भारत की बड़ी मदद की। महज इतना ही नहीं पश्चिम समर्पित फ्रेट कोरिडोर (डी एफ सी), आठ नए औद्योगिक कॉरिडोर (सी बी आई सी) की मदद से जापान भारत के औद्योगिक क्षेत्र को भी बदलने में बड़ी मदद कर रहा है।
भारत और जापान का द्विपक्षीय व्यापार 20.75 अरब डॉलर
ज्ञात हो वित्त वर्ष 2013-14 में भारत और जापान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 16.31 बिलियन अमरीकी डॉलर का था जबकि बीते वर्ष दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 20.75 अरब डॉलर का रहा। यह अब तक का सबसे अधिक व्यापार रहा है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है। बताना चाहेंगे भारत की ओर से जापान को जिन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है, उनमें मुख्य रूप से पेट्रोलियम, उत्पाद, रसायन, एलिमेंट, कंपाउंड, गैर मैटेलिक मिनरल वेयर, मछली एवं मछली के पकवान, मेटफेरस, अयस्क एवं स्क्रैप, कपड़ा एवं एसेसरीज, लोहा एवं इस्पात के उत्पाद, टेक्सटाइल यार्न फैब्रिक एवं मशीनरी आदि शामिल हैं।
जापान में भारतीयों के पहुंचने की ऐसे हुई थी शुरुआत
व्यवसाय और वाणिज्य हितों के लिए 1870 के दशक में जापान में भारतीयों के पहुंचने की शुरुआत हुई थी। उस दौरान भारतीयों ने याकोहामा और कोबे के दो प्रमुख बंदरगाहों से इसकी शुरुआत की थी। इसके पश्चात प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अधिक भारतीय जापान में प्रवेश कर पाए क्योंकि तब जापान के उत्पादों को मांग में अंतर को पाटने के लिए मंगाया गया जिसे युद्ध त्रस्त यूरोप पूरा नहीं कर पा रहा था। 1923 में भयंकर कांटो भूकंप के बाद याकोहामा में रहने वाले अधिकांश भारतीय उस क्षेत्र को छोड़कर कंसाई क्षेत्र जिसे आज ओसाका-कोबे के नाम से जाना जाता है, वहां चले गए। आज जापान के इस शहर में सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय रहते हैं।
याकोहामा के प्राधिकारियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कांटों में अपने पुराने बेस को फिर से जिंदा करने करने के लिए भारतीय समुदाय को विशेष प्रोत्साहन की पेशकश की। इसी का नतीजा यह निकला कि भारतीय समुदाय ने 1929 में याकोहामा में भारतीय सौदागर संघ (आईएमएवाई) का गठन किया। पहले जहां भारत केवल टेक्सटाइल, पण और इलेक्ट्रॉनिक्स के व्यापार पर फोकस कर रहा था, बाद में रत्न और जवाहरात पर भी काम करने लगा। यह जापान में एक नया भारतीय समुदाय बनकर उभरा।
हाल के वर्षों की बात करें तो जापान में भारी संख्या में प्रोफेशनल्स के पहुंचने की वजह से भारतीय समुदाय की संरचना में बदलाव आ गया है। इनमें आईटी प्रोफेशनल और इंजीनियर आदि शामिल हैं जो भारत एवं जापान की फर्मों के लिए काम कर रहे हैं। ये प्रोफेशनल प्रबंधन, वित्त, शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान में काम कर रहे हैं, जिन्हें बहुराष्ट्रीय संगठनों के अलावा भारतीय एवं जापानी संगठनों द्वारा नियुक्त किया गया है। टोक्यो में इन्हीं प्रोफेशनल की बदौलत निशिकसाई क्षेत्र लघु भारत के रूप में उभर चुका है। उनकी संख्या की वृद्धि की वजह से ही टोक्यो एवं याकोहामा में दो भारतीय स्कूल खोलने की आवश्यकता उत्पन्न हुई। भारत और जापान के प्रगाढ़ रिश्तों के इसी इतिहास को देखते हुए आगे भी ये उम्मीद की जा सकती हैं दोनों देशों के रिश्तों को और अधिक मजबूती मिलती रहेगी।