आरटीआई एक्ट में लोक सूचना अधिकारी जानकारी देने से मना करें तो आप करा सकते हैं मामला दर्ज़

 

करवाए गए कुछ आपराधिक अभियोग निम्नलिखित है:

1. एफआईआर नंबर -124/2013 दिनांक 22.01.2013 पुलिस थाना कोटपुतली, जिला-जयपुर राजस्थान :
इस एफ आई आर में राजस्थान पुलिस के लोक सूचनाधिकारी के पास उपलब्ध सूचना को भी यह कहकर देने से इनकार किया गया था कि सूचना उपलब्ध नहीं हैं. 6 माह बाद तीसरे आवेदन में वही सूचनाएं उपलब्ध करवा दी गयी थी नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई और प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

2. एफआईआर नंबर -738/2019 दिनांक 07.09.2019, पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)
इस प्रकरण में लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय के कर्मचारियों के साथ आपराधिक षड्यंत्र रचकर अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं में कांट-छांट करके, दस्तावेज में से सूचनाओं को मिटा कर आधी अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

3 एफआईआर नंबर -981/2013 दिनांक 10.011.2013, पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)
इस प्रकरण में राजस्थान पुलिस के लोक सूचनाधिकारी के पास उपलब्ध सूचना में से अधूरी सूचना उपलब्ध करवाई गयी थीं और आवेदक को देर रात फोन करके धमकाया गया था. नतीजा उक्त एफ आई आर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

4. एफआईआर नंबर 1006/2013 दिनांक 19.11.2013 पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)
इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं के बजाय कूटरचित सूचनाएं तैयार करके आधी-अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई. प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

5. एफआईआर नंबर -76/2015 दिनांक 23.02.2015, पुलिस थाना – मॉडल टाउन जिला रेवाड़ी, हरियाणा
इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी ने अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं को छुपाया और बजाय सम्पूर्ण सूचनाओं के आधी अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी। नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

6. एफआईआर नंबर 528/2015 दिनांक 15.09.2015, पुलिस थाना मॉडल टाउन, जिला रेवारी, हरियाणा
इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं के छुपाया और दुर्भावनापूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं करवाया और नाजायज अड़चन डालकर आवेदक को सदोष हानि कारित की गयी. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

7. एफआईआर नंबर -397/2021 दिनांक 15.08.2021 पुलिस थाना- प्रागपुरा जिला-जयपुर ग्रामीण राजस्थान
इस प्रकरण में लोक सूचनाधिकारी नें भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित चीनी एप कैमस्कैनर का इस्तेमाल करते हुए जो सूचनाए ई-मेल के माध्यम से उपलब्ध हुईं उनमें से अपने पूर्ववर्ती दस्तावेज में खुद के कार्यालय में हुई वित्तीय अनियमितताओं और विभागीय नियमों के विरुद्ध किये गए कृत्यों से खुद और अधीनस्थ कार्मिकों को बचाने के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचकर कूटरचित पत्र (पहले वाले पत्र के पत्र क्रमांक डालकर) सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयीं जो कि कूटरचित थीं. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में अनुसन्धान में है।

आर टी एक्ट के दुरूपयोग एवं सदोष हानि बाबत दर्ज करवाए गए कुछ अन्य आपराधिक अभियोग:

1. केस नंबर – 774/2020 दिनांक 29.06.2020 न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट चुरू राजस्थान
इस मामले में प्रथम अपीलीय अधिकारी के बाद भी लोक सूचनाधिकारी नें कोई सूचना उपलब्ध नहीं करवाई। सम्पूर्ण प्रकरण दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित होने से अनुसन्धान आवश्यक नहीं है लिहाजा सीधे प्रसंज्ञान की प्रार्थना के साथ न्यायालय में परिवाद दायर किया गया। मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।

2. केस नंबर 775/2020 दिनांक 29.06.2020 न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट चुरू राजस्थान
इस मामले में लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में जिस सूचना का होना उपलब्ध होने से इनकार कहकर आवेदन का निस्तारण किया वह सूचना सहज ऑनलाइन सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थीं. जाहिर है कि उक्त अधिकारी नें झूठा जवाब दिया. सम्पूर्ण प्रकरण दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित होने से अनुसन्धान आवश्यक नहीं है लिहाजा सीधे प्रसंज्ञान की प्रार्थना के साथ न्यायालय में परिवाद दायर किया गया. मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-195(1)(क)(1)/(3),(ख)(1)/(2) सहपठित धारा-340
जब सूचना आयोग के समक्ष लम्बित किसी अपील में प्रत्यर्थी/प्रथम अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी होने के बाद वह प्रतिउत्तर में दस्तावेजी साक्ष्यों के विरुद्ध झूठा अंकन करते हुए जवाब प्रेषित करे को माननीय आयोग को धारा-195(1)(क)(1)/(3), (ख)(1)/(2) सहपठित धारा-340 दंड प्रक्रिया संहिता के विधान के तहत आवेदन देकर ऐसे अपराध के लिए अभियोजन चलाने को आवेदन पेश किया जा सकता है. सूचना आयोग द्वारा ऐसे किसी भी आवेदन पर विचार करना न्यायसंगत है।

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