*महाकालेश्वर मंदिर को भी पर्यटन नहीं, तीर्थ क्षेत्र घोषित करें सरकार

 

डॉ. चन्दर सोनाने:-
हाल ही में झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ सम्मेद शिखर क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित करने पर जैन समाज ने देशव्यापी आंदोलन और धरना आंदोलन छेड़ दिया है। इसके लिए सकल जैन समाज पिछले अनेक दिनों से आंदोलनरत है। जिस प्रकार सम्मेद शिखर क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने पर सकल जैन समाज नाराज है और उसे तीर्थ क्षेत्र घोषित करने के लिए एकजुट होकर धरना और प्रदर्शन कर रहा है, उसी प्रकार उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर मंदिर को भी पर्यटन क्षेत्र के बजाय तीर्थ क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय की ओर से भारत के राजपत्र में 5 अगस्त 2019 को इस संबंध में एक अधिसूचना जारी हुई थी। इस अधिसूचना के अनुसार जैन समाज के पवित्र तीर्थ स्थल सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। जिस समय केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी की थी, उस समय झारखंड में भाजपा की ही सरकार थी। अब केन्द्र सरकार को तय करना है कि वह अपने पूर्व राजपत्र में घोषित पर्यटन स्थल को वापस लें और सम्मेद शिखर को तीर्थ क्षेत्र घोषित करें।
देशभर में जैन समाज का यह मानना है कि उनके एक प्रमुख तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के बाद वहाँ जैन समाज के अलावा अन्य समाज के लोगों के भी काफी तादाद में आने से वहाँ का माहौल जैन समाज के रीति रिवाजों के अनुरूप पूजा पद्धति का नहीं रहा है। इससे जैन समाज की भावनाओं को आघात लग रहा है। इसी मुख्य कारण से सकल जैन समाज आंदोलन कर रहा है कि उनके प्रमुख तीर्थ क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के कारण उसे आय के साधन के रूप में भी उपयोग किया जा रहा है। यह नहीं होना चाहिए। इसलिए देशभर के जैन समाज के लोग व्यथित और आंदोलनरत है।
जैन मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने कहा भी है कि जैन समाज ने आज तक कभी कुछ माँगा नहीं है। बल्कि सरकार को दिया ही है। हमारे तीर्थ क्षेत्र की जो स्थिति है, उसे यथावत रखे। यह भावनात्मक मुद्दा है। सम्मेद शिखर जैनियों का प्राण है। प्राणों पर आघात होगा तो चीख-पुकार तो मचेगी ही। उनकी माँग है कि इको टूरिज्म की जगह इको तीर्थाटन बनाया जाए और उसे पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में घोषित किया जाए। सकल जैन समाज भी अपने महाराज के अनुसार सरकार से माँग की पूर्ति करने के लिए प्रयासरत है।
जिस प्रकार जैन समाज अपने पवित्र तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने से नाराज है। पर्यटन क्षेत्र घोषित होने से आ रही बुराईयों से व्यथित है, उसी प्रकार उज्जैन के प्रसिद्ध दक्षिणमुखी ज्योर्तिलिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर को भी पर्यटन क्षेत्र घोषित करने से अनेक श्रद्धालु व्यथित है। उज्जैन के प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि  श्रीराम दवे का इस मामले में स्पष्ट मत है कि जबसे महाकालेश्वर मंदिर को तीर्थ क्षेत्र में विकसित करने की बजाय पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, तब से वे सब बुराईयाँ भी उज्जैन में आनी शुरू हो गई है, जो एक पर्यटन क्षेत्र में होती रही है। उनका दृढ़ मत है कि जिस प्रकार जैन समाज के पवित्र तीर्थ स्थल सम्मेद शिखर को पर्यटन नहीं बल्कि तीर्थ क्षेत्र के रूप में घोषित करने की जैन समाज के द्वारा माँग की जा रही है, उसी प्रकार हमारे आराध्य कालों के काल बाबा महाकाल के लिए भी होना ही चाहिए। यह जायज भी है।
यहाँ उज्जैन के प्रसिद्ध साहित्यकार  श्रीराम दवे की बात और भावनाओं पर गौर किया जाना चाहिए ! जबसे महाकालेश्वर मंदिर के परिसर को विकसित किया गया है, तब से लोगों का आना कई गुना बढ़ गया है। जो श्रद्धालु आ रहे हैं, उनमें से अधिकांश महाकाल मंदिर के दर्शन करने के लिए नहीं, बल्कि परिसर की मूर्तियों को देखने के लिए आ रहे हैं और परिसर देखकर ही लौट भी रहे हैं। महाकाल लोक बनने के बाद से महाकालेश्वर मंदिर एक पर्यटन स्थल के रूप में देशभर में प्रसिद्ध हो गया है। देशभर से काफी तादाद में लोग प्रतिदिन आ रहे है। शनिवार, रविवार और सोमवार को तो यहाँ पर्यटकों की अत्यधिक भीड़ हो जाती है, जिस कारण जो श्रद्धालु महाकाल मंदिर के दर्शन करने के लिए आना चाहता है, उन्हें बहुत असुविधा भी हो रही है।
अभी कुछ दिन पहले ही प्रसिद्ध अभिनेता  अनुपम खैर महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए आए। दर्शन के बाद वे पत्रकारों से भी रूबरू हुए। किन्तु वे पत्रकारों से मिले कहाँ ? वे पत्रकारों से मिले, हाल ही में विकसित किए गए मंदिर परिसर में बनाई गई भव्य मूर्तियों की पृष्ठभूमि में। इसका जो वीडियो जारी हुआ और जो वायरल हुआ, उसमें मंदिर कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। जो दिख रहा है, वह सिर्फ विकसित परिसर क्षेत्र है और श्री अनुपम खैर विकसित परिसर में निर्मित मूर्तियों को इशारा करते हुए जय महाकाल बोल रहे है। जैसे वे जिस भगवान शिव की मूर्ति को बता रहे है, वह मूर्ति ही बाबा महाकाल है ! महाकाल मंदिर के परिसर को जो पिछले दिनों विकसित किया गया है, उसे महाकाल लोक नाम दिया गया है। इस महाकाल लोक में भगवान शंकर, पार्वती और विभिन्न देवी देवताओं की विशाल, आकर्षक और भव्य मूर्तियां बनाई गई है। निश्चित रूप से यह एक पिकनिक स्थल के रूप में विकसित और प्रसिद्ध हो रहा है। दिनोंदिन इस महाकाल लोक को देखने के लिए पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे क्या संदेश जा रहा है ? आप खुद सोचे।
उल्लेखनीय है कि हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध और पावन पर्व कुंभ और सिंहस्थ देशभर में केवल चार स्थानों पर मनाए जाते हैं। उसमें एक उज्जैन भी है, जहाँ सिंहस्थ लगता है। और यह क्षेत्र पुराणों में महाकाल वन के रूप में वर्णित है। इस मान से भी केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की जवाबदारी है कि यह पवित्र क्षेत्र बना रहे और इसके लिए जो भी आवश्यक कदम है, उसे तुरंत उठाने चाहिए। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि उज्जैन में जब सिंहस्थ लगता है, तब इसे पवित्र तीर्थ क्षेत्र घोषित करने के मामले में सिंहस्थ में पधारे 13 अखाड़ों के साथ देशभर के संत भी अपनी यही बात पूर्व में भी अनेक बार रख चुके है। खास बात यह यह भी है कि उज्जैन के एक संत प्रतीतराम रामस्नेही तथा अनेक संत भी उज्जैन को तीर्थ क्षेत्र घोषित करने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे हैं।
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के पुजारियों, भक्तों, श्रद्धालुओं और जनप्रतिनिधियों के साथ देशभर के हिन्दू धर्म का झंडा उठाने वाले को चाहिए कि वे भी राज्य सरकार और केन्द्र सरकार से अनुरोध करें कि पुराणों में वर्णित महाकाल वन एवं महाकाल मंदिर को भी पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने की बजाय पवित्र तीर्थ क्षेत्र के रूप में घोषित करें। मंदिर के आसपास मांस-मदिरा बेचना ,खरीदना और उपयोग करना सख्ती से प्रतिबंधित किया जाए। इसके साथ ही तीर्थ क्षेत्र के लिए जो भी जरूरी व्यवस्थाएँ है, वह भी की जाए। यह शीघ्र किया जाना चाहिए।
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