सीएम की भावनाओं को पलीता

 

मुख्यमंत्री ने स्कूल शिक्षा का स्तर और व्यवस्था सुधारने के उद्देश्य से सीएम राइज स्कूल खोलने की योजना प्रदेश में लागू कराई थी। सोचा और कहा ये गया था कि जिस तरह पहले माडल स्कूल और फिर एक्सीलेंस स्कूल खोले गए थे, उसी तरह इन स्कूलों में विशेष व्यवस्थाएं होंगी और ये सरकारी स्कूलों के लिए आदर्श साबित होंगे। परंतु फिलहाल तो ऐसा होता नहीं दिख रहा है। आधा सत्र बीतने के बाद भी न तो शिक्षा गति पकड़ सकी है और न ही वहां बेहतर व्यवस्थाएं हो पा रही हैं।
आज की ही खबर है। कई जिलों में सीएम राइज स्कूलों में अधिकतर पद खाली हैं। दूसरी ओर कई स्कूल ऐसे हैं, जहां 10-10 टीचर तक अतिशेष हैं। इन स्कूलों के बच्चों के लिए बस भी प्रारंभ नहीं की जा सकी है। खास बात यह कि इन स्कूलों में अध्यापकों की पदस्थापना में ही पूरी तरह असफल रहने वाले अधिकारियों को मप्र गौरव सम्मान दे दिया गया। यहां के शिक्षकों और स्टाफ की पदस्थापना के लिए शिक्षा विभाग ने महीनों लंबी प्रक्रिया अपनाई थी। स्थापना शाखा में पदस्थ सहायक संचालक कामना आचार्य तक को बदलने की नौबत आ गई थी।
सीएम राइज स्कूल के प्राचार्य के लिए परीक्षा हुई। हाईस्कूल-हायर सेकंडरी प्राचार्य दोनों को पात्र पाया गया। हाईस्कूल प्राचार्य को सीएम राइज हायर सेकेंडरी स्कूल का प्राचार्य और हायर सेकंडरी स्कूल प्राचार्य को हाईस्कूल का प्राचार्य बना दिया। निशातपुरा हायर सेकंडरी स्कूल में हाईस्कूल प्राचार्य है। बर्रई स्थित सीएम राइज हाई स्कूल में हायर सेकंडरी प्राचार्य को पदस्थ कर दिया गया। बैरसिया हायर सेकंडरी स्कूल प्राचार्य का पद रिक्त है। परीक्षा के आधार पर शिक्षक पदस्थ किए। लेकिन पुराने शिक्षकों के तबादले नहीं किए। परिणाम यह हुआ कि महात्मा गांधी हायर सेकंडरी स्कूल भेल में 10 से12, गोविंदपुरा हायर सेकंडरी स्कूल में 3, कमला नेहरू टीटी नगर में 3 से 4 शिक्षक अतिशेष हैं। ये तो भोपाल की बात है, अन्य स्कूलों में भी यही हाल है। सीएम राइज स्कूल में बस व्यवस्था के लिए टेंडर में रेट इतने कम रखे कि ट्रांसपोर्टर भरने ही नहीं आए। इससे कई जगह बस शुरू नहीं हो सकी।
रीवा, सिंगरौली समेत दूरदराज के सीएम राइज स्कूलों में लगभग सारे पद रिक्त हैं। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के गांव ढेरा और विधानसभा क्षेत्र देवतालाब के सीएम राइज स्कूल में शिक्षकों के कई पद रिक्त पड़े हुए हैं। इन स्कूलों में जो शिक्षक पदस्थ हुए, उन्हें यहां काम ज्यादा दिखा। इस बीच ट्रांसफर खुले। इन्हें भी ट्रांसफर लेने की पात्रता दी गई। महात्मा गांधी स्कूल में 5-6, कमला नेहरू में 3-4 और ऐसे ही कई स्कूलों में शिक्षकों ने ट्रांसफर करा लिए। इसके बाद इन्हें पूरे सत्र में रिलीव होने पर रोक लगा दी गई। बाहर की बात तो छोड़ो राजधानी भोपाल के हाल ये हैं कि जिले के सभी सीएम राइज स्कूलों का औसत रिजल्ट 40 प्रतिशत के आसपास रहा। पूरे प्रदेश के 245 सीएम राइज स्कूलों का रिजल्ट इससे भी खराब बताया गया। जबकि इससे बेहतर परिणाम माडल स्कूल के आए। एक्सीलेंस स्कूलों की स्थिति भी बेहतर ही रही।
पहला सवाल तो यही है कि जब माडल और एक्सीलेंस स्कूल थे तो मुख्यमंत्री को सीएम राइज स्कूल खोलने की सलाह क्यों दी गई? फिर, जब मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी, कुछ स्कूलों को सीएम राइज स्कूल बना दिया गया, तो वहां बेहतर व्यवस्थाएं क्यों नहीं की गईं? प्रदेश का शिक्षा विभाग बीच सत्र में तबादलों में ही उलझा रहा। मंत्री ने आनलाइन व्यवस्था कराई, इसके बाद भी तबादलों में भारी लेन-देन होने की बातें सामने आईं। निजी स्कूलों के मुकाबले शिक्षा विभाग का बजट भी बढ़ाया गया है और शिक्षकों का वेतन भी बहुत बेहतर है, फिर व्यवस्थाओं और पढ़ाई के मामले में क्यों पिछड़ रहे हैं? कहीं न कहीं गड़बड़ तो है। स्थाई शिक्षकों और व्याख्याताओं के साथ ही कभी संविदा तो कभी शिक्षा मित्र या अन्य योजनाओं के तहत भर्ती की जाती है, लेकिन अधिकांश सरकारी स्कूल अपनी छाप नहीं छोड़ पा रहे हैं। छोटे कस्बों और गांवों तक में निजी स्कूलों का व्यवसाय पनप रहा है, लेकिन सरकारी स्कूल सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं। अंत में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जो विभाग मुख्यमंत्री की भावनाओं की कद्र नहीं कर पा रहा है, वो जनता की भावनाओं की क्या कद्र करेगा? अब सीएम राइज स्कूलों का भी भगवान ही मालिक है।
-संजय सक्सेना

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