एक तरफ मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव इस बात की माफी मांग रहे हैं कि हमारे प्रदेश में नदियों में सीवेज का पानी बहाया जा रहा है, तो दूसरी तरफ राज्य के कई शहरों में हवा सांस लेने लायक नहीं बची है। वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलता धुआं स्मॉग हवा को जहरीला बना रहा है। सबसे ज्यादा खराब हालत ग्वालियर, भोपाल और सिंगरौली की है। यहां वायु प्रदूषण मापने वाला एयर क्वालिटी इंडेक्स यानि एक्यूआई खतरे के निशान 300 के पार तक चला गया। इससे दमा और दिल संबंधी बीमारी वालों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है।
आज प्रकाशित एक खबर के अनुसार कल शुक्रवार को ग्वालियर और भोपाल में दिन में एक बार हवा में प्रदूषण का स्तर 325 के पार पहुंच गया। सिंगरौली में भी एक्यूआई 300 के पार चला गया। रात 2 बजे के बाद प्रदेश भर में प्रदूषण का लेवल सबसे ज्यादा रहा। भोपाल, ग्वालियर जैसे शहरों में यह 400 के पार चला गया। इंदौर, उज्जैन और जबलपुर में भी यह 150 के पार तक चला गया।
मध्यप्रदेश में पिछले 10 दिन से लगातार पॉल्यूशन का लेवल बढ़ रहा है। अधिकांश शहरों में कुछ दिन को छोड़ दें, तो यह शुक्रवार की तरह ही खतरे के निशान के आसपास रहा। अभी तक सबसे ज्यादा खराब हालत रात 1 बजे के बाद सुबह 5 बजे तक थी, लेकिन अब दोपहर तक भी प्रदूषण का लेवल ज्यादा रह रहा है।
असल में सर्दियों के दिनों में स्मॉग के कारण हवा ऊपर नहीं जा पाती। इस कारण प्रदूषण बढ़ रहा है। इस साल भी इस समय एक्यूआई का स्तर खतरनाक बना हुआ है। दिन में वाहनों का आवागमन, फैक्ट्रियों से निकला धुआं भी कारण है। इस कारण शरीर में सांस और हृदय संबंधी समस्याओं के अलावा, गंभीर त्वचा संक्रमण का खतरा रहता है। लेकिन जहरीली हवा उस प्रदेश की हो रही है, जिसका दो तिहाई हिस्सा वनों से आच्छादित होने का दावा किया जाता है। और राजधानी भोपाल की बात करें तो यहां भी वनों का अच्छा खासा क्षेत्रफल है। और केवल सर्दियों में होने वाले स्माग की बात करें तो इन शहरों की हालत बाकी मौसम में भी कोई बहुत अच्छी नहीं रहती।
मध्यप्रदेश में वन हैं, तो ये हाल है। लेकिन इसका विकल्प केवल वृक्षारोपण भी तो नहीं है। देखा जाए तो बढ़ते प्रदूषण के लिए न केवल सरकारी योजनाएं और सरकार में बैठे लोग जिम्मेदार हैं, अपितु आम आदमी भी उतना ही जिम्मेदार है। हम वनों की सघनता कम करते जा रहे हैं। जंगल न केवल अंधाधुंध काटे जा रहे हैं, अपितु अतिक्रमण और कब्जों का सिलसिला भी जारी है। पहाड़ों पर बड़े-बड़े भवन बनाते जा रहे हैं। भोपाल में तो सारी पहाडिय़ां खत्म करने का जैसे बीड़ा उठा लिया गया है। उन्हें विस्फोट के माध्यम से बर्बाद किया जा रहा है। जल संग्रहण क्षेत्र भी बर्बाद करते जा रहे हैं। यहां तो जंगल के इलाके में ही राजनेताओं से लेकर अफसरों में आशियाने तान लिए हैं। आम आदमी के मकान तो तोड़ दिए जाते हैं, लेकिन इनके अवैध मकानों को कौन तोड़ेगा?
और शहरों में हवाओं में घुलते जहर के लिए कल-कारखाने तो पहले से ही जिम्मेदार थे, बेहिसाब बढ़ते वाहन सबसे ज्यादा जिम्मेदार माने जा रहे हैं। भोपाल के जिन इलाकों में वाहनों सबसे ज्यादा चलते दिखते हैं, वहां की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित रहती है। हमीदिया रोड से अधिक जहर तो एमपी नगर वाले इलाके की हवा में घुला हुआ मिलता है। इस पर तो विचार करना ही होगा। मुख्य सचिव महोदय ने केवल नदियों की बात की है, साहेब, बड़े तालाब में भी तो सीवेज लाइनों की गंदगी जा रही है। यह तो राजधानी है। यहां तो कम से कम इस पर रोक लगाई जा सकती है। लेकिन लगाए कौन? जो कर सकते हैं, वो खुद प्रदूषण बढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं। अनदेखी भी तो कहीं न कहीं अपराध बन जाती है।
कुल मिलाकर हम दिल्ली की हवाओं में घुले जहर खबरों के साथ ही हमें अपने घर की भी चिंता करनी होगी। प्रदूषण के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं और हम सबकी ही जिम्मेदारी यह भी है कि इसे कम करने के लिए अब जाग जाएं। दूसरों को उपदेश देने और बातें करने या सोशल मीडिया पर दुकान जमाने के बजाय प्रदूषण कम करने में अपनी भूमिका तय करें। स्वयं से शुरू करें तो कुछ होगा, नहीं तो..। हालात बिगड़ रहे हैं, और बिगड़ेंगे।
-संजय सक्सेना
—