मोरबी हादसे पर आक्षेप लगाने का यह वक्त सही न हो, लेकिन बात उन तक पहुंचनी जरूरी है जिनके लिए जिंदगी की कीमत मात्र १९ रुपए है.
सौ लोगों की क्षमता वाले ब्रिज देखने के लिए अंधाधुंध टिकट काटी गई. तो भैया टिकट तो काट दी, प्रवेश भी दें दिया लेकिन यह सुनिश्चित भी किया जाना चाहिए कि लोग ब्रिज से निकलते भी जाएं.
लेकिन देश में सरकारें घोर लापरवाही करने के बाद आम जनता को राम के सहारे छोड़ देती है और फिर लगाई जाती है चोटों और जिंदगियों की कीमत. आखिर यह कीमत और हजारों करोड़ रुपए का बचाव कार्य में किया गया खर्च किसकी जेब से जाता है?
क्या राजनेता, प्रशासन या सरकार अपने फंड से पैसा देती है, नहीं यह तो आम जनता पेट्रोल डीजल गैस पर टैक्स देकर लुटती है और साथ में १९ रुपए भी देती है.
आज बात हो रही है इस घोर लापरवाही पर जवाबदेही तय करने की. चाहे केबल कार हादसा हो, चाहे वो केबल ब्रिज हो या चाहे ही भगदड़ हादसा हो – जनता को लूटकर मुआवजा देकर सब रफा दफा हो जाता है और उससे सीख लेने के बजाय इंतजार किया जाता है अगले हादसे का.
क्या हम इतने लापरवाह और निष्ठुर हो गए हैं कि ऐसे पर्यटन स्थल और धार्मिक जगहों पर नियम कानून न बना सके या जवाबदेही न तय कर सकें. और जनता भगवान की इच्छा मानकर ऐसी सरकारों, अधिकारियों या संचालन कर्ताओं को क्लीन चिट दे दे, वो भी १९ रुपए देकर.
वाह रे मेरे देश और विदेशी बोलते हैं हमारे लोगों में सहिष्णुता नहीं है जबकि हम तो सहिष्णुता के भंडार है जो हमारे खूनी को भी क्लीन चिट दे देते हैं.
*( सीए अनिल अग्रवाल की कलम से)*
*अब समय आ गया है कि हम यदि अपने देश को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहते हैं तो इन नामी, राष्ट्रीय और प्रादेशिक मान्यता प्राप्त पर्यटन और धार्मिक स्थलों के लिए नियम और मापदंड तैयार करने होंगे ताकि जवाबदेही तय हो सकें और जनता के पैसे एवं जिंदगी बच सकें. क्या होना चाहिए:*
१. सभी स्थलों का वहां पर उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से क्षमता तय की जावे.
२. क्षमता अनुसार ही प्रवेश और टिकट काटे जावे एवं यह सारी प्रक्रिया आनलाइन होनी चाहिए. आनलाइन जनरेटेड टिकट के आधार पर ही प्रवेश दिया जाएगा.
३. टिकट के दाम में रेलवे की तरह इंश्योरेंस चार्ज शामिल हो ताकि किसी अनहोनी की स्थिति में मुआवजा इंश्योरेंस कंपनी देगी न की सरकारें.
४. आस्था और भीड़भाड़ के दिनों में प्रशासन को विशेष रूप से मानिटरिंग करनी होगी.
५. इन स्थलों पर वीवीआईपी और वीआईपी कल्चर पूरी तरह से खत्म होना चाहिए.
६. बुजुर्ग और दिव्यांग के लिए अलग व्यवस्था हो.
७. टिकट की कीमत और संचालनकर्ता की जवाबदेही तय करने के नियम बनें.
८. पर्यटकों और भक्तों के लिए टिकट पर घूमने फिरने के नियम प्रदर्शित हो ताकि कोई भी व्यक्ति नियमों के विपरीत यदि आचरण करें तो उसका नुकसान उसे वहन करना पड़ेगा.
९. महिने में एक दिन सिर्फ और सिर्फ गरीब जनता के लिए मुफ्त यह स्थल खुले हों लेकिन क्षमता और आनलाइन पर ही सुविधा उपलब्ध हो.
१०. इमरजेंसी बचाव व्यवस्था का समयानुसार माकड्रिल होना चाहिए ताकि त्वरित बचाव प्रक्रिया शुरू हो सकें.
११. और अंत में लापरवाही पर हो नुकसान की पूर्ति और सजा का प्रावधान ताकि कानूनी पेंच में मामला न उलझकर तुरंत कार्यवाही हो.
*क्या हम विश्व गुरु ऐसे कहलाएंगे जहां जिंदगी की कीमत मात्र १९ रुपए हो!*
*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर