हिंदी में डाक्टरी की पढ़ाई: गैर जरूरी कवायदों पर फोकस करती सरकारें:

 

 

मेडिकल शिक्षा का हिन्दीकरण एक अव्यवहारिक कदम ही तो है जिसे सिर्फ प्रचार प्रसार के लिए उपयोग किया जा रहा है.

धार्मिक स्थलों का उत्थान, आंचलिक भाषाओं को प्रोत्साहन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ाना अच्छी बात है लेकिन यह एक सामान्य प्रक्रिया होनी चाहिए. आज देश को जरूरत है मंहगाई से निजात पाने की, औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने की और बेरोज़गारी दूर करने की.

सबसे बड़ी समस्या आज हमारे सामने है, वो है:

१. खाने पीने की वस्तुएं के दाम तेजी से बढ़ना

२. औद्योगिक उत्पादन का घटना

३. बढ़ती ब्याज दरें और व्यापारिक लागत

४. घटते रोजगार के अवसर, हाल में ही बाइजू कंपनी ने २५०० शिक्षकों को नौकरी से निकाला है

५. घटते रुपए की कीमत को नियंत्रित करने के लिए सोना खरीदना ताकि डालर पर निर्भरता कम हो सकें.

हाल में ही भारत में बढ़ती सोने की मांग को देखते हुए सरकार ने यूएई से २०० टन खरीदने की डील करी ताकि डालर में निर्भरता कम हो सकें और यही सोना आभूषण बनकर दुबई के मार्केट में बिकता है. ऐसा होने से हम ज्यूरिख जहां से लगभग अपने आयात का आधा सोना हम मंगाते हैं और डालर में पेमेंट देना होता है,‌ वह कम होगा.

यूएई दुबई से आयात निर्यात होने के कारण दोनों देशों की करेंसी में सैटलमेंट हो जायेगा और डालर लेनदेन से बचेंगे. ब्राजील, चीन, साऊथ अफ्रीका पिछले कुछ महीनों से ऐसा लेनदेन कर रहे हैं.

अब सोशल मीडिया पर यह प्रचारित किया जा रहा है कि एक प्रधानमंत्री सोना गिरवी रखता है तो दूसरा रुपए में सोने को खरीदता है, जबकि दोनों एक रणनीतिक निर्णय है.

*( सीए अनिल अग्रवाल की कलम से)*

*खैर इन समस्याओं को छोड़, बात हो रही है धार्मिक कारिडोर बनाने की और तकनीकी शिक्षा के हिन्दीकरण की. यह गैर जरूरी कवायद इसलिए है क्योंकि:*

१. नेशनल मेडिकल कमीशन साफ कर चुकी हैं कि वो मेडिकल शिक्षा को अंग्रेजी के अलावा किसी और भाषा में मान्यता नहीं देगी.

२. डायग्नोस्टिक करने में परेशानी

३. प्रस्क्रिपशन लिखने मे समस्या

४. एक दूसरे डाक्टर से बात करने और समझने में परेशानी

५. भारत में व्यक्ति पूरे देश में जहां उचित इलाज मिलता है वहां जाता है, अब भाषा के कारण इलाज में होने वाली परेशानी का कोई औचित्य नहीं है.

*सरकार का ध्यान ऐसे कठिन समय में मूलभूत समस्याओं के निराकरण पर होना चाहिए:*

१. खाने पीने की वस्तुएं के कारण बढ़ती मंहगाई पर नियंत्रण आवश्यक है. कृषि उत्पादन खासकर अनाज के रख रखाव और ट्रांसपोर्ट की खामियों से खराब होते अनाज पर रोक लगानी होगी.

२. लोकल उत्पादन को प्रोत्साहित कर, छोटे और मझोले उद्योग का उत्पादन बढ़ाना होगा.

३. शेयर बाजार से पैसे की उगाही सिर्फ वही कंपनी करें जो प्राफिट में हो.

४. हाल में ही सरकार ने जो स्टार्ट के लिए फंडिंग का ऐलान किया उसमें वहीं योग्य है जो पिछले १२ महीने से प्राफिट में है. ऐसे में नए जमाने की टेक कंपनियों ने घाटे में होने के बावजूद शेयर बाजार को लूटा है.

५. सोने की मांग देश में कम हो, ऐसी जागरूकता जरूरी है.

६. ब्याज दरें न बढ़े, कोशिश करनी होगी.

७. कारिडोर और परियोजना वही चलें जिससे रोजगार बढ़े न कि बड़ी और विदेशी कंपनियां द्वारा सब बनवाया जाता है और आम जनता से टिकट के रूप में पैसा वसूला जाता है.

सरकार से उम्मीद है कि वो लोगों की जेब में पैसे डालेगी, उल्टा लोगों से जरुरत की चीजों पर टैक्स वसूली कर पैसा निकाला जा रहा है.

*सरकारी खर्च पर नियंत्रण और योजनाओं के क्रियान्वयन पर कवायद न करके, गैर जरूरी मुद्दों पर कवायद कर प्रचार प्रसार करना सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक है, जनहित में कुछ भी नहीं है. अब सरकार को सोचना होगा कि आज जरुरी क्या है?*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

Shares