जबलपुर शहर के भाग्य में शायद घोषणाएं और वादों की टोकरी लिखी है और यही कारण है इतने नामी जन प्रतिनिधि होने के बावजूद किसी भी योजना का क्रियान्वयन नहीं हो सका और शहर में न उद्योग पनप पाए और न ही रोजगार. युवा वर्ग का पलायन शहर से जारी रहा और बचे सिर्फ बड़े बड़े वादे करने वाले जनप्रतिनिधि.
मिष्ठान और नमकीन कलस्टर की शहर को जो सौगात वर्षों पहले मिली उसकी दुर्दशा इसका जीता जागता उदाहरण है कि शहर कैसे योजनाओं के क्रियान्वयन की बाट जोह रहा है.
2015 में जबलपुर मिष्ठान एवं नमकीन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का गठन हुआ था जिसमें तय किया गया था कि करीब 3 एकड़ भूमि रिछाई में आवंटित की जाएगी और 15 करोड़ रुपये से इसका विकास किया जावेगा.
मिष्ठान क्लस्टर में खोवा निर्माण, मसाले, पनीर, बेसन, मैदा और ड्रायफ्रूट के पेस्ट तैयार करने के अलावा अन्य काम होंगे। इसके लिए रिछाई औद्योगिक क्षेत्र में जमीन चिन्हित है। इसमें मिष्ठान एव नमकीन उत्पादकों का अंशदान करीब 2 करोड़ 41 लाख रुपए होगा। राज्य शासन का करीब 4 करोड़ 57 लाख तो केन्द्र सरकार का अंशदान 11 करोड़ 73 लाख रुपए का होगा।
200 हितधारक इस कंपनी से जुड़ेंगे जिनको भूमि आवंटित होगी और शहर के सभी नमकीन और मिष्ठान विक्रेता यहाँ पर अपने उद्यम लगाकर सारे देश विदेश में अपना माल बेचेंगे, शहर का नाम रौशन होगा, उद्योगिकरण बढ़ेगा, सरकार को राजस्व मिलेगा और शहर के हजारों युवाओं को रोजगार.
लेकिन अब हकीकत देखिए और समझिये:
- सात साल गुजरने के बाद भूमि आवंटित हुई 03/03/2022 को, वो भी लगभग 2.25 एकड़ जबकि प्रोजेक्ट 3 एकड़ पर प्रस्तावित था.
- लगभग 15 करोड़ रुपये इस जगह के विकास के लिए सरकार की तरफ से प्रस्तावित थे, वो भी 7 वर्ष पहले और आज भी वही है. ऐसे में इस कलस्टर का गठन कैसे संभव होगा, वित्त स्थिति का आंकलन संदेहास्पद है.
- सरकार की तरफ से 15 करोड़ रुपये कब प्राप्त होंगे, क्या प्रावधान है और कब तक इस कलस्टर का निर्माण हो पाएगा, इस बारे में कोई निर्धारित समय है और न ही तारीख़.
- मिष्ठान और नमकीन हितधारकों को करीब 2.41 करोड़ रुपये लगाने है, जिसके बारे में कागजों पर कुछ नहीं आया है.
साफ है इस कलस्टर निर्माण में, भूमि आवंटन में, प्रावधान तय करने में, अन्य प्रशासनिक प्रक्रिया को पूरा करने में जितना वक्त लग गया है उसने इसे लगभग खत्म कर दिया है. ऐसे में प्रशासन और सरकारी जन प्रतिनिधि कैसे शहर का उत्थान करेंगे, यह समझ से परे है. इतना समय लगने के बाद कोई भी कलस्टर या प्रोजेक्ट का पुनः वित्तीय निर्धारण और आंकलन किए बिना लागू करना सिर्फ पैसे बरबादी और दुर्दशा ही करेंगे और शहर को मिलेगी मात्र कोरी घोषणाएं जो हकीकत से है कोसों दूर.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल