पेट्रोल डीजल पर टैक्स कटौती की भरपाई जीएसटी दरें बढ़ाकर करने की तैयारी में सरकार!

सरकार जीएसटी से 3 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय चाहती है और उनके भरोसेमंद नौकरशाहों की कमिटी ने जीएसटी दरें बढ़ाने का सुझाव दिया है.

जूते, चप्पल, कपड़ों जैसे आम जरुरतों की चीजों पर 5% से 12% दरें बढ़ाई जा चुकी है और अब सोने चांदी ज्वेलरी पर 3% से बढ़ाकर 5% करने की तैयारी है. यही नहीं जीएसटी के 5% के स्लेब को 7% और 18% के स्लेब को 20% किया जा सकता है.

जीएसटी काउंसिल में राज्यों का साथ मिलें इसलिए कारण यह रखा जा रहा है कि केन्द्र सरकार राज्यों को जीएसटी शार्टफाल का जो मुआवजा देती है, उसकी मियाद जुलाई 22 में खत्म हो रही है और इसे जारी रखने के लिए जरूरी है ताकि राज्य भी इस निर्णय में केन्द्र का साथ दें.

मंहगाई का बोझ तो आम आदमी को सहना है. जीएसटी के 5 साल में व्यापारी अभी सहज हो भी नहीं पाया है कि सरकार फिर इसमें महत्वपूर्ण बदलाव करना चाहती है.

क्यों नहीं सरकार यह समझ पा रही है कि अनुपालनों या टैक्स बढ़ाकर राजस्व नहीं बढ़ता बल्कि इससे व्यापार करना मुश्किल होता है और व्यक्ति टैक्स चोरी करना चाहता है.

उचित टैक्स की दरें, सरल अनुपालन और स्थानीय व्यवस्था के हिसाब से बनाया गया कानून हमेशा जन सामान्य के लिए हितकर होता है.

आप पिछले एक साल में किए गए 10 बड़े आयकर और जीएसटी छापों पर गौर करें तो एक जैसे लेनदेन ही कर चोरी करने के लिए उपयोग में लाए गए हैं. मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, बेनामी संपत्ति एक्ट, नोटबंदी एवं ब्लैक मनी एक्ट के बावजूद कोई बदलाव टैक्स चोरी के लेनदेन में नजर नहीं आता.

रीयल एस्टेट प्रापर्टी लेनदेन आज भी टैक्स चोरी के लिए प्रमुखता से उपयोग में आ रहा है तो क्या यह जरूरी नहीं कि सरकार इस बार ऐसी नीति निर्धारण करें जो रीयल एस्टेट प्रापर्टी लेनदेन में टैक्स चोरी को रोकें. प्रापर्टी लेनदेन प्रावधानों को सरल एवं सहज बनाए.

इसी तरह कैश में बिक्री, कैश में खर्च करना, फर्जी बिलों के द्वारा व्यापार से पैसे निकालना, फर्जी शेयरों की खरीद फरोख्त दिखाना और वो भी बड़े बड़े व्यापारिक समूह द्वारा करना गलत नीयत तो दर्शाता है लेकिन सरकार की नीति निर्धारण पर भी सवाल उठाता है कि कहीं न कहीं कर नीति खामियों से भरी है जो व्यापारियों को या व्यक्ति को कर चोरी करने के लिए मजबूर कर रही है.

ऊपर से सरकार के विशेषज्ञ और नौकरशाह जिनकी सलाह किताबी ज्ञान से ज्यादा और कुछ नहीं लगती. ऐसा लगता है इन्होंने कभी देश और स्थानीय समस्या को समझा ही नहीं है और विदेशी ज्ञान प्राप्त कर देशवासियों पर अपनाना चाहते हैं जिसका देश की स्थिति से कोई सरोकार ही नहीं है.

जब तक क्षेत्र के विशेषज्ञ और जमीनी स्तर से जुड़े लोगों का सहयोग सरकार द्वारा नीति निर्धारण में नहीं लिया जाएगा आम आदमी और व्यापारी परेशानी सहता रहेगा, विरोध करता रहेगा, टैक्स चोरी करता रहेगा, सरकार छापे मारती रहेगी लेकिन राजस्व में कभी भी जीडीपी के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज नहीं होगी.

*आप यदि इस आंकड़े पर ध्यान दें तो आपको आश्चर्य होगा कि बाजार में आज करीब 35 लाख करोड़ रुपये का कैश सरकुलेशन में है और यदि इसका 8% भी ले तो हर महीने जीएसटी का कलेक्शन 3 लाख करोड़ रुपये महीने का होना चाहिए जो आज पांच साल बाद भी मात्र 1 लाख करोड़ रुपये महीने पर सिमटा हुआ है.

तस्वीर साफ है सरकार को तय करने है कि किन क्षेत्रों में नियमों और अनुपालनों की कमी से टैक्स चोरी रोकी जा सकती है और राजस्व बढ़ाया जा सकता है नहीं तो राज्यों में शराब और जुए की लत लगाए जाने की कोशिश तो हो ही रही है.

लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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