कोयले उत्पादन में कमी को देखते हुए कोल इंडिया लिमिटेड ने फिलहाल अस्थायी रूप से कोयले की सप्लाई गैर बिजली कंपनियों के लिए रोक दी है.
गैर बिजली उत्पाद कंपनियां और कारखाने बिजली आपूर्ति के लिए जिनके निजी केप्टिव पावर प्लांट है, वहाँ मंहगे दाम पर कोयले को आयात कर चला रहे हैं.
कुछ युनिट्स जेनरेटर में डीजल उपयोग कर उस माध्यम से बिजली आपूर्ति कर रहे हैं, तो कुछ खासकर छोटे और मझोले उद्योग बिजली की कमी से बंद होने की कगार पर है.
और जो उद्योग निजी केप्टिव प्लांट या जनरेटर के माध्यम से काम कर रहे हैं, उन्हें लागत बिजली की मंहगी पड़ने के कारण, बाजार में उत्पाद महंगे होते जा रहे हैं. सबसे ज्यादा मार स्टील, एलूमीनियम, सीमेंट संबंधित उत्पादों पर असर पड़ रहा है और रीयल एस्टेट क्षेत्र में मंहगाई से लगभग हर क्षेत्र पर असर पड़ रहा है.
बिजली क्षेत्र हमारी प्राथमिकता है और कोयले की सप्लाई को नहीं रोका जा सकता, लेकिन गैर बिजली क्षेत्रों में कोयले के संकट से इससे जुड़े लगभग 8000 छोटे उद्योग बंद होने की कगार पर है.
इसका असर न केवल निर्यात पर होगा पर साथ ही लाखों लोग बेरोजगार होंगे सो अलग, जो हमारी आर्थिक विकास दर को भी प्रभावित करेगा.
कोयला संकट इन क्षेत्रों में व्यापक रूप से देखा जा रहा है-
- स्टील
बड़े स्टील उत्पादकों के पास अपने कैप्टिव पावर प्लांट हैं, इसलिए अभी उनको किसी बिजली संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा. लेकिन अगर कोयले की मौजूदा तंगी को दूर नहीं किया गया तो अगले दो महीने में उनकी भी हालत खराब हो सकती है.
यही नहीं यदि स्मेल्टिंग कार्यों में लगी छोटी मिलों को यदि बिजली आपूर्ति में बाधा आई तो उन्हें उत्पादन में कटौती का सामना करना पड़ सकता है.
- ऑयल रिफाइनरीज
भारत में कोयले के बाद प्राकृतिक गैस बिजली उत्पादन के सबसे बड़े स्रोत हैं. कोयले की कमी का असर यह होगा कि गैस की मांग बढ़ेगी यानी रिफाइनरीज के लिए डिमांड काफी बढ़ सकती है.
स्टील की तरह ही भारत में बड़े तेल रिफाइनरीज के पास अपना कैप्टिव पावर प्लांट है, इसलिए कोयले की कमी का उन पर असर नहीं होगा. लेकिन उन्हें मांग पूरी करने के लिए एलएनजी का आयात बढ़ाना होगा और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन दिनों एलएनजी काफी महंगा चल रहा है. इस तरह कोयला संकट का असर तेल एवं गैस की कीमतों पर पड़ सकता है.
- प्लास्टिक एवं सिंथेटिक रबर उत्पादन के छोटे कारखानों के पास अपनी पावर यूनिट नहीं होती तो बिजली कटौती की स्थिति में वे डीजल जनरेटर का इस्तेमाल करेंगे. इससे उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी.
- फ्रोजेन फूड
रेफ्रिजरेट की जरूरत वाला फ्रोजेन फ्रूड इंडस्ट्री बिजली संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है.
ग्रिड बिजली कटौती की स्थिति में यह इंडस्ट्री डीजल जनरेटर पर भरोसा कर सकती है, लेकिन डीजल की ऊंची लागत की वजह से उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी और मुनाफा प्रभावित होगा.
बिजली कटौती की स्थति में पॉल्ट्री, मीट और डेयरी इंडस्ट्री को भी इसी तरह के हालात का सामना करना पड़ सकता है.
- ईंट भट्ठा
देश में ज्यादातर ईंट भट्ठों में ईंधन के रूप में आयातित कोयले का इस्तेमाल किया जाता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयला कीमतों में तेजी आने से ईंट भट्ठों को घरेलू कोयले पर निर्भर रहना पड़ सकता है. इसमें देश में कोयला आपूर्ति पर दबाव और बढ़ेगा.
कोयले की सप्लाई में कमी से स्टील और एल्यूमीनियम इंडस्ट्री की दुर्दशा हो रही है.
कोयले की कमी के कारण निजी बिजली संयंत्रों के भरोसे काम करने वाले उद्योग और छोटे-मझोले उद्योग बंद होने के कगार पर है. जो प्रोडक्ट बन रहे हैं उन पर लागतों का बोझ काफी अधिक है.
यह बोझ अब उपभोक्ताओं पर डाला जा रहा है. इससे हर चीज महंगा होने की आशंका बढ़ गई है.
एफएमसीजी प्रोडक्ट, दवाओं की पैकेजिंग से लेकर गाड़ियां बनाने में एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है.
स्टील इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों के मुताबिक एक तो कोयला काफी कम उपलब्ध है. अगर उपलब्ध भी है तो इसकी कीमत बढ़कर 2.80 प्रति मेगा/सीएएल तक पहुंच गई है, जो आम तौर पर 0.70 मेगा/सीएएल होती है.
घरेलू स्पंज आयरन की कीमत अब 36,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई है. तीन महीने पहले यह 27,000 रुपये प्रति टन और छह महीने पहले 22,000 रुपये प्रति टन थी.
गैर बिजली क्षेत्रों जैसे एल्यूमीनियम, सीमेंट और स्टील को कोल इंडिया उनकी जरूरत का आधा ही सप्लाई कर पा रही है.
कोयले के रैक की सप्लाई अब हर दिन 50 से घट कर 25 रह गई है. पिछले दो महीने से ऐसी ही स्थिति है. इसलिए एल्यूमीनियम, सीमेंट और स्टील इंडस्ट्री के संयंत्रों में अब एक या दो दिन का ही कोयला बचा है.
सीमेंट उद्योग में पिछले तीन महीने में कोयले की कीमत दोगुने से भी ज्यादा हो गई है. जिस तरह से लागत बढ़ रही है उससे आने वाले दिनों में इसकी कीमतों में काफी इजाफा हो सकता है.
यदि प्राथमिक एल्युमीनियम उद्योग के वर्तमान कोयला संकट का तत्काल समाधान नहीं किया गया तो इन एसएमई को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
कोल इंडिया का घरेलू कोयला उत्पादन में 80 प्रतिशत से अधिक का योगदान है।
भारतीय एसएमई का एक बड़ा हिस्सा, जिनके व्यवसाय गहराई से एल्युमीनियम उद्योग से जुड़े हुए हैं.
गैर-बिजली कंपनियों, विशेष रूप से प्राथमिक एल्युमीनियम निर्माताओं के लिए कोयले की भारी कमी, इन संयंत्रों को जोखिम में डाल सकती है।
अगर वर्तमान अनिश्चित स्थिति का तुरंत समाधान नहीं किया जाता है, तो देश का फलता-फूलता मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र भी संभावित रूप से प्रभावित हो सकता है।
इसके अलावा प्रमुख उद्योगों को कच्चे माल और एल्युमीनियम की कमी से कई उद्योगों के आयात में वृद्धि होगी और निर्यात आय में कमी आएगी।
इसमें कोई शक नहीं कि स्थिति विकराल है जो हमारी आर्थिक वृद्धि पर गहरा असर डाल सकती है और साथ ही छोटे उद्योगों को बचाना भी है.
ऐसे में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्रों का उपयोग, पवन चक्की, सौर ऊर्जा, जल संसाधन जैसे वैकल्पिक स्त्रोतों के साथ कोयला उत्पादन बढ़ाने पर फोकस करना पड़ेगा ताकि कोयले की आपूर्ति निर्बाध रुप से गैर बिजली क्षेत्रों को उपलब्ध होती रहें तभी हम चीन में आ रही आर्थिक सुस्ती मुकाबला करते हुए आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ेंगे.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल